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DGP CONFRANCE डीजीपी-आईजीपी सम्मेलन की खबर के लिए नजरें टिकाए रहे पत्रकार

डीजीपी-आईजीपी सम्मेलन की खबर के लिए नजरें टिकाए रहे पत्रकार

  • दिनभर एक-दूसरे से पूछते रहे कुछ ब्रिफिंग हुई क्या

  • ओडिशा में 100-120 साल में पहली बार हो रहे सम्मेलन को लेकर हर तरफ उत्सुकता का माहौल

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर।
ओडिशा में पहली बार आयोजित हो रहे डीजीपी-आईजीपी सम्मेलन को लेकर न केवल सुरक्षा बलों और अधिकारियों के बीच बल्कि पत्रकारों और आम लोगों के बीच भी उत्सुकता का माहौल है। इस सम्मेलन की नींव 100-125 साल पहले रखी गयी थी, लेकिन लंबे अंतराल के बाद ओडिशा इस महत्वपूर्ण आयोजन का साक्षी पहली बार बन रहा है, लेकिन इस आयोजन को लेकर मीडिया में सूचनाओं की कमी ने कई सवाल खड़े किए हैं।
देशभर से जुटे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों की इस बैठक में हो रही चर्चाओं, फैसलों और रणनीतियों की जानकारी पाने के लिए मीडियाकर्मी लगातार सक्रिय दिखे। दिनभर पत्रकार आपस में चर्चा करते और पूछते दिखे, “कुछ ब्रिफिंग हुई क्या?”, क्योंकि इस आयोजन को लेकर कोई विशेष सूचना या मीडियाकर्मियों को ब्रिफिंग उपलब्ध कराने को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की गयी है।
लोगों की जिज्ञासा के जवाब मीडिया के पास नहीं
चूंकि यह आयोजन पहली बार ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में हो रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तीन दिनों के लिए भुवनेश्वर में हैं और कल शुक्रवार को मोदी ने मंच से भी आयोजन का जिक्र किया था, जिससे आम लोग भी इस ऐतिहासिक आयोजन को लेकर उत्सुक हो गए, लेकिन आज शनिवार को सुबह से यह आयोजन सुर्खियों में नहीं है। ऐसे में लोग अपने परिचित मीडियाकर्मियों से सवाल पूछ रहे थे कि क्या सम्मेलन में कोई विशेष निर्णय लिया जा रहा है या किसी नई रणनीति पर चर्चा हो रही है। स्थानीय नागरिकों ने कहा कि इतने बड़े आयोजन के लिए ओडिशा का चयन गर्व की बात है, लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा है।
चूंकि ऐसा आयोजन पहली बार ओडिशा में हो रहा है, इसलिए मीडियाकर्मियों में भी कवरेज करने को लेकर उत्सुकता थी और ऐसे आयोजन को कवर करने का अनुभव भी हासिल करने का अवसर था, क्योंकि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कही जाती है, ऐसे बड़े और गोपनीय आयोजनों के लिए विशेष प्रशिक्षण और गहरी समझ की आवश्यकता भी होती है।
संवादहीनता और गोपनीयता के कारण पत्रकारों को न तो सम्मेलन से संबंधित विशेष जानकारी मिली, न ही सवाल पूछने का अवसर। इससे न केवल मीडियाकर्मियों बल्कि आम जनता को भी इस आयोजन की व्यापकता और महत्व समझ में नहीं आ रहा है।
आयोजन के प्रति उत्सुकता का कारण
इस सम्मेलन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जैसे शीर्ष नेता शामिल हुए। सम्मेलन में देशभर के डीजीपी और आईजीपी ने नई चुनौतियों से निपटने के लिए विचार-विमर्श कर रहे हैं। खासतौर पर नक्सलवाद, आतंकवाद, साइबर अपराध और सीमावर्ती सुरक्षा पर चर्चा विषय है।
क्या है सम्मेलन का उद्देश्य?
यह वार्षिक सम्मेलन देश में पुलिसिंग को मजबूत करने और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतियों पर विचार-विमर्श का मंच प्रदान करता है। इस बार ओडिशा का चयन, राज्य में बढ़ते नक्सलवाद और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों को देखते हुए किया गया, जो राज्य और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम हैं।
मीडियाकर्मियों की सीमित भूमिका
कई मीडियाकर्मियों ने माना कि ऐसे आयोजनों में गोपनीयता बनाए रखना सुरक्षा और रणनीतिक कारणों से जरूरी होता होगा, लेकिन लोकतंत्र में मीडिया की भी अपनी भूमिका है, ऐसे में कम से कम मीडियाकर्मियों को भी इसमें शामिल होने का मौका मिलना चाहिए। पूरे सत्र नहीं, लेकिन हर दिन एक से दो घंटे का समय मीडिया के लिए भी निर्धारित किया जाना चाहिए था, क्यों कुछ सामान्य जानकारी उपलब्ध कराई जाती, तो वे जनता को आयोजन के महत्व के बारे में बेहतर तरीके से समझा सकते थे।
पिछले आयोजनों से तुलना
इससे पहले आयोजित डीजीपी-आईजीपी सम्मेलन अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनते रहे हैं। मीडियाकर्मी और विशेषज्ञ सम्मेलन की कार्यवाही पर पैनी नजर रखते हैं, लेकिन इस बार ओडिशा में आयोजित सम्मेलन के दौरान सूचनाओं की कमी ने इसे कुछ हद तक अज्ञात और रहस्यमयी बना दिया।

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