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अपनी कला के जरिए पुरी समुद्र तट पर विश्व पर्यटन दिवस की शुभकामनाएं देते विश्व विख्यात बालुका कलाकार मानस साहू.

हर कोना बोलता है इतिहास…!!!

अपनी कला के जरिए पुरी समुद्र तट पर विश्व पर्यटन दिवस की शुभकामनाएं देते विश्व विख्यात बालुका कलाकार मानस साहू.

विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर

उड़ीसा से ओडिशा तक सफर। प्राचीनता से आधुनिकता की ओर अग्रसर। आधुनिकता से प्राचीनता में अगर आपको ताक-झांक करनी हो, इतिहास को देखना और महसूस करना हो, तो सबसे अच्छा और लुभावना स्थल है ओडिशा।

जी हां! यह राज्य बाहर से नया है, किंतु भीतर से यह एक प्राचीन नगरी है। भारत में शायद ही अन्य ऐसा कोई नगर होगा, जहां विभिन्न कालखंडों में बने इतने स्मारक देखने को मिलते हों। यदि संजीदगी से देखें तो यहां के कोने-कोने में मंदिर, गुफाएं व शिलालेख  हैं। इनके विभिन्न रूपों में इतिहास बिखरा हुआ पड़ा है। राज्य के हर कोने में कुछ न कुछ इतिहास छिपा है।

हर दिशाओं में कुछ न कुछ जानने और सुुनने को मिलेगा। पश्चिम में धौली पहाड़ी के आधार पर सवा दो हजार साल पुराने अशोक कालीन शिलालेख व चिह्न मौजूद हैं, तो पूर्वी भाग में खंडगिरि व उदयगिरि की पहाडिय़ों में 2 हजार साल पहले बनी जैन सन्यासियों की गुफाएं हैं। राजधानी के पुराने हिस्से में 700 से 1300 साल पूर्व बने कई मंदिर हैं। इन संरचनाओं के अलावा भुवनेश्वर में नन्दनकानन प्राणी उद्यान, शान्ति स्तूप, रवींद्र मंडप, साइंस सेंटर, राज्य संग्रहालय आकर्षण के रूप में उभरे हैं। भुवनेश्वर भी कभी एक प्रसिद्ध मंदिर नगरी थी। कहा जाता है कि एक समय यहां 7000 मंदिर थे, लेकिन समय की मार, आक्रमणकारियों के हमलों, उपेक्षा व उचित रखरखाव के अभाव में एक के बाद एक मंदिर जमींदोज होते चले गए। भुवनेश्वर में उस काल के अवशेष मंदिर, यहां ही नहीं, बल्कि देश की उत्तर मध्य व मध्यकालीन शिल्पकला व स्थापत्य कौशल का दिग्दर्शन कराते हैं। कलिंग की इस धरती ने सत्ता संघर्ष की पराकाष्ठा को बेहद निकट से देखा है। पहली शती से सातवीं शती के मध्य कलिंग का इतिहास का बहुत धुंधला सा है। लेकिन अलग-अलग दौर में अनेक शासकों का यहां राज रहा। ईसा पूर्व पहली शती में कलिंग में छेदी साम्राज्य का उद्भव हुआ, जो जैन धर्म के अनुयायी थे। इस काल के तीसरे नरेश खारबेल का शासन उल्लेखनीय है जिस दौरान यहां खंडगिरि व उदयगिरि की पहाडिय़ों में बनी जैन संन्यासियों की गुफाएं बननी आरंभ हुई। दूसरी शताब्दी में यहां पर सातवाहन राजाओं के शासन का उल्लेख मिलता है। तीसरी शताब्दी में कुषाण व नागवंशियों ने भी कलिंग के कुछ हिस्से पर शासन किया। उसके उपरांत समुद्रगुप्त ने इस राज्य को अपने अधीन किया। चौथी शती के अन्त तक यहां मराठा शासन रहा, जिनके बाद पांचवीं शती में यहां पर पूर्वी गंग नरेशों का काल आया। लेकिन फिर सम्राट हर्षवर्धन ने इसे विजित किया। उनके बाद फिर बौद्ध धर्म के अनुयायी राजा भूमा रहे। इसके उपरांत कलिंग पर हिंदू राजाओं का पूरी तरह से अधिपत्य हुआ। आठवीं शती में हिंदू धर्म के पुनर्जागरण के बाद हर नरेश अपनी क्षमता व राज्य के संसाधनों से मंदिरों का निर्माण करवाता चला गया। आरंभ में भुवनेश्वर इसका केंद्र था। दसवीं शती के उत्तराद्र्ध में कलिंग की धरती पर सोमवंशी राजवंश का उदय हुआ, जिसके राजाओं ने 11वीं शती तक यहां अलग-अलग काल में राज किया।

इस काल में भुवनेश्वर सत्ता का केन्द्र रहा और उनके काल में ही पुरी स्थित जगन्नाथ मन्दिर की आधारशिला रखी गई। हालांकि इसका निर्माण गंग नरेश अनंग भीमदेव द्वितीय के काल में जाकर पूर्ण हुआ। पुरी के मंदिर परिसर में मंदिरों को विभिन्न राजाओं ने बनवाया। 11वीं शती में हुए ललाटेन्दु केसरी ने भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर की आधारशिला रखी। 12वीं शती में फिर से कलिंग में गंग साम्राज्य स्थापित हुआ, जिन्होंने कलिंग में सोमवंशी सत्ता को उखाड़ फेंका। राजा नरसिंह देव इस वंश के राजा थे, जिन्होंने कोणार्क में सूर्य मंदिर को बनवाया। उत्तर-मध्य और मध्यकालीन दौर में भुवनेश्वर में जो भी मंदिर निर्मित हुए उनकी कलात्मक, सुन्दरता व भव्यता किसी को मन्त्रमुग्ध करने को पर्याप्त है। इन पर लगा प्रत्येक पत्थर ऐसे लगा है, मानो वह कुछ न कुछ बोल रहा हो। पुराने शहर में कई अन्य मन्दिर भी हैं, जो पुराने हिस्से में बनी आवासीय कालोनियों के मध्य देखे जा सकते हैं। 7वीं शती से लेकर 13वीं शती का काल राज्य में स्थापत्य व शिल्पकला का चरम काल माना जाता है। भुवनेश्वर के मंदिरों में वैसे तो रामेश्वर, लक्ष्मणेश्वर, भरतेश्वर, शत्रुघ्नेश्वर, केदारेश्वर, सिद्धेश्वर, अनन्त वासुदेव, परशुरामेश्वर, मुक्तेश्वर, राजा-रानी, लिंगराज आदि हैं, किन्तु इनमें से अंतिम चार मन्दिर उल्लेखनीय हैं। इनमें से लिंगराज मन्दिर को छोड़ अन्य में आज पूजा-अर्चना नहीं होती है। ये मंदिर विभिन्न समयावधि में निर्मित हुए व अलग-अलग शैलियों के हैं। इनमें परशुरामेश्वर मन्दिर सबसे प्राचीन मन्दिर समझा जाता है। इसका निर्माण 650 ई. में हुआ माना जाता है। यद्यपि इस मंदिर का 1903 में जीर्णाद्धार किया गया किन्तु मन्दिर का गर्भगृह मूल रूप में हैं। 950 ई. में निर्मित मुक्तेश्वर मन्दिर मध्यकालीन भव्य मन्दिरों का लघु रूप है।

राजा-रानी मंदिर सुनने से लगता है कि इसका संबंध राजा-रानी से होगा किंतु ऐसा नहीं है। राज्य के चाहे आप जितने भी मंदिर देख लें, लेकिन यदि भुवनेश्वर का लिंगराज मन्दिर न देख पाएं तो कहा यही जाएगा कि भला आपने क्या देखा?

लिंगराज मन्दिर एक विशाल मन्दिर होने के साथ स्थापत्य, शिल्प में अद्वितीय मन्दिर है। वस्तुत: यह आधा शिव व आधा विष्णु मन्दिर माना जाता है, इसीलिए इसमें बेलपत्र व तुलसी के साथ पूजा होती है। मन्दिर परिसर के चारों ओर पत्थरों की ऊँची दीवार है। पहली बार देखने पर हर कोई इसकी भव्यता से दंग रह जाता है। इस पर जितनी बारीकी से काम हुआ है वैसी आज केवल कल्पना ही की जा सकती है। मन्दिर के बाहर कई देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हैं। मंदिर परिसर में ही लगभग छोटे-बड़े 150 अन्य मंदिर हैं। इन मंदिरों के अलावा भुवनेश्वर में रामेश्वर, अनन्त वासुदेव आदि मन्दिरों को भी देखा जा सकता है। यहां से 16 किमी दूर हीरापुर में 64 योगिनी मंदिर भी देखने लायक है। भुवनेश्वर में खंडगिरि-उदयगिरि की पहाडिय़ों पर जैन संन्यासियों की गुफाएं दर्शनीय हैं। ये गुफाएं चट्टानों को खोदकर बनाई गई हैं। इनमें से उदयगिरि में 18 गुफाएं हैं, जबकि खंडगिरी में 15 छोटी-बड़ी गुफाओं के अलावा जैन मंदिर हंै। उदयगिरि की गुफाओं में हाथीगुफा व रानीगुफा उल्लेखनीय हैं। भुवनेश्वर-पुरी मार्ग पर धौलीगिरि में कुछ बहुत नया है, तो कुछ बहुत प्राचीन। इस पहाड़ी के एक ओर दया नदी है, जिसके किनारे कलिंग व मगध की सेनाओं के बीच भंयकर युद्ध हुआ था। पहाड़ी के आधार पर अशोककालीन आदेश आज भी देखे जा सकते हैं। इसके समीप पत्थरों पर तराशा गया हाथी का मुख है, जो इंगित करता है कि अशोक के काल में शिल्प कला कितनी उन्नत रही होगी। पहाड़ी पर एक विशाल विश्व शान्ति स्तूप है। इसका निर्माण 1973 में किया गया था। स्तूप के चारों ओर अलग-अलग मुद्राओं में बुद्ध की चार मूर्तिया हैं। स्तूप में जातक कथाओं से संबंधित प्रसंग पत्थरों पर उकेरे गये हैं। भुवनेश्वर में पर्यटन अभिरुचि के अन्य स्थानों में नन्दनकानन प्राणी उद्यान भी है जो शहर से 20 किमी की दूरी पर है। यह चिडिय़ाघर एक विशाल क्षेत्रफल में है, जो जानवरों के लिए प्रसिद्ध है। यह उद्यान सफेद बाघों के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त यहां पर कई अन्य वन्य जन्तुओं भी देखा जा सकता है। भुवनेश्वर का राज्य संग्रहालय भी दर्शनीय है। भुवनेश्वर देश के हर भाग से सीधी रेल सेवा व विमान सेवा से जुड़ा है। राजधानी होने से हर प्रकार की आधुनिक सुविधाएं यहां मौजूद हैं। हरेक प्रकार के पर्यटक के लिए यहां पर सुविधाएं हैं। नगर की सैर के लिए ओडिशा पर्यटन विकास कॉरपोरेशन पैकेज टूर चलाता है। इसमें आप शहर के खास-खास स्थान देख सकते हैं। आप चाहें तो अलग से भी योजना बना कर घूम सकते हैं।

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