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गुजरात दंगों में नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य लोगों को सुप्रीम कोर्ट से भी क्लीन चिट

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य लोगों की भूमिका को लेकर एसआईटी की ओर से दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पुलिस की कमी के बावजूद गुजरात प्रशासन ने दंगों को शांत करने की पूरी कोशिश की।
कोर्ट ने कहा कि बिना समय गंवाये केंद्रीय सुरक्षा बलों और सेना को सही वक्त पर बुलाया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शांति बनाए रखने के लिए जनता से कई बार अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट, श्रीकुमार और हरेन पांड्या ने निजी स्वार्थों के लिए झूठे आरोप लगाए। इन्होंने दावा किया कि मोदी के साथ बड़े अधिकारियों की मीटिंग में दंगों की साजिश रची गई और वो इस मीटिंग में मौजूद थे लेकिन हकीकत यह है कि वो उस मीटिंग में मौजूद ही नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2006 में जाकिया जाफरी की शिकायत के बाद निहित स्वार्थों के चलते इस मामले को 16 साल तक जिंदा रखा गया। कोर्ट ने कहा कि जो लोग भी कानूनी प्रकिया के गलत इस्तेमाल में शामिल हैं, उनके खिलाफ उचित कार्रवाई होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ऐसा लगता है कि जाकिया जाफरी किसी और के इशारे पर काम कर रही थीं। उनकी याचिका में कई बातें ऐसी लिखी हैं जो किसी और के हलफनामे दर्ज हैं और वो बातें झूठी पाई गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि एसआईटी ने सभी तथ्यों की ठीक से पड़ताल करके अपनी रिपोर्ट दी है। जांच के दौरान कोई ऐसे सबूत नहीं मिले, जिससे ये संदेह भी होता हो कि राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की साजिश उच्च स्तर पर रची गई। कोर्ट ने कहा कि हम एसआईटी की रिपोर्ट को स्वीकार करते हैं।
कोर्ट ने 9 दिसंबर, 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीस्ता सीतलवाड़ पर पिछले बीस वर्षों से गुजरात सरकार को बदनाम करने की साजिश करने का आरोप लगाया था। गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जाकिया जाफरी से हमें सहानुभूति है। उन्होंने अपने पति को खोया है लेकिन उनकी पीड़ा का लाभ उठाने की भी एक सीमा होती है। गवाहों को सिखाया-पढ़ाया गया। एसआईटी ने सीतलवाड़ के खिलाफ साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर निर्दोष लोगों को फंसाने का मुकदमा क्यों नहीं चलाया। मेहता ने कहा था कि 2021 में आरोप लगाकर मामले की दोबारा जांच की मांग की जा रही है। मेहता ने आरोप लगाया था कि सिटजन फॉर पीस एंड जस्टिस और सबरंग इंडिया ट्रस्ट का निजी हितों के लिए इस्तेमाल किया गया। इनके खातों का लंबे समय तक आडिट नहीं किया गया।
एसआईटी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने एसआईटी पर लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था कि एसआईटी ने काफी सूक्ष्मता से जांच की और उसकी जांच में कोई गड़बड़ी नहीं है। रोहतगी ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने गुलबर्गा सोसायटी दंगा मामले में 17 जून, 2016 को फैसला सुनाया। जाकिया जाफरी ने 2006 में शिकायत की। जब जाफरी अपना एफआईआर दर्ज करवाने की मांग के लिए हाईकोर्ट गईं तो उनके साथ एक एनजीओ की प्रमुख तीस्ता सीतलवाड़ भी शामिल हो गईं। हाईकोर्ट ने कहा था कि की तीस्ता सीतलवाड़ का इस केस से कोई लेना-देना नहीं है।
जाकिया जाफरी की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा था कि जांच के लिए महत्वपूर्ण गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए गए। हिंसा भड़काने के लिए झूठे प्रोपगेंडा फैलाए गए लेकिन किसी की जांच नहीं हुई। सिब्बल ने कहा था कि तहलका के स्टिंग पर पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। उस स्टिंग में कहा गया है कि अस्पताल के बाहर जुटी भीड़ पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। तहलका के स्टिंग की तस्दीक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सिटिजंस ट्रिब्यूनल और वुमन पार्लियामेंट्री कमेटी ने भी की लेकिन किसी से पूछताछ नहीं की गई।
साभार -हिस

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