-
टाटा पॉवर का विस्तार बना विकास की नई कहानी का सूत्रधार
-
सामाजिक बदलाव और विकास की दिशा में साबित हो रहा मील का पत्थर
-
दूर्गम क्षेत्रों में बिजली की पहुंच से उद्योग स्थापना हुए सुगम
-
रायगड़ा और मालकानगिरि जैसे नक्सली क्षेत्रों की बदल रही है विकास की तस्वीर
-
शिकायतों के समाधान के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया है कॉल सेंटर
भुवनेश्वर। कभी रौशनी के लिए मोहताज ओडिशा के आदिवासी और माओवादी प्रभावित इलाकों में टाटा पॉवर अब तस्वीर बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर सामाजिक बदलाव और विकास की नई कहानी लिखने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रहा है। घने वन और दूर्गम क्षेत्रों में व्याप्त अंधकार की जगह ना सिर्फ उजाला फैला रहा है, अपितु रोजगार सृजन के साथ-साथ उद्योग स्थापना के लिए सुगमता भी प्रदान कर रहा है। इन क्षेत्रों के परिवर्तन में यह एक महत्वपूर्ण केंद्रबिंदु बनकर उभरा है।
कंपनी ने उन दुर्गम पहाड़ी और वन क्षेत्रों तक बिजली पहुंचाई है, जहां कभी उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी। कभी हिंसा के लिए विख्यात रायगड़ा और मालकानगिरि जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में अब उद्योग स्थापित हो रहे हैं, रोजगार के अवसर सृजित हो रहे हैं, जिससे लोगों के जीवन ने नया रूप धारण कर लिया है।
ग्रामीणों की सुविधा के लिए टाटा पॉवर ने क्षेत्रीय भाषाओं में कॉल सेंटर की सुविधा भी शुरू की है, जिससे शिकायतों का समाधान पहले से कहीं अधिक तेज और सरल हो गया है। यह पहल न केवल बिजली पहुंचाने का कार्य है, बल्कि सामाजिक बदलाव और विकास की नई कहानी लिखने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी द्वारा निर्धारित साल 2036 तक विकसित ओडिशा के मिशन में टाटा पॉवर एक महत्वपूर्ण भूमिका निर्हवन कर रहा है। मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने राज्य के हर जिले में उद्योग स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो बिजली आपूर्ति के बिना असंभव है। यहीं पर टाटा पॉवर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में जुट गया है और इसका फल दुर्गम क्षेत्रों में देखने को मिलने लगा है।
सहज बिजली आपूर्ति के कारण ही रायगड़ा और मालकानगिरि जैसे दूर्गम जिलों में दूरसंचार कंपनियों ने तेजी से मोबाइल नेटवर्क प्रदान करने के लिए मोबाइल टावर भी स्थापित करने लगे हैं।
पेश है टाटा पॉवर और ओडिशा सरकार के संयुक्त उद्यम टाटा पॉवर साउदर्न ओडिशा डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड (टीपीएसओडीएल) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमित कुमार गर्ग के साथ की गई विशेष बातचीत का प्रमुख अंश।
प्रश्न: दूरदराज जनजातीय क्षेत्रों में बिजली पहुंचाना कितना चुनौतीपूर्ण है?
उत्तर: पहाड़ी इलाकों में नेटवर्क विस्तार और रखरखाव दोनों चुनौतीपूर्ण हैं, लेकिन हमने स्काडा, जीआईएस और फीडर ऑटोमेशन के जरिए इन इलाकों में भी विश्वसनीय बिजली पहुंचाई है। बहुभाषी कॉल सेंटर और स्थानीय कर्मियों की मदद से अब शिकायतें जल्दी सुलझाई जाती हैं। साथ ही लीएसआर कार्यक्रमों से स्कूल, स्थ्य केंद्र और लघु उद्योगों को भी ऊर्जा सहायता दी जा रही है।
प्रश्न: रायगड़ा, मालकानगिरि और नवरंगपुर जैसे जिलों में स्थिति कैसे सुधरी है?
उत्तर: हमने सब-स्टेशनों को अपग्रेड किया है, 33केवी लाइनों को सशक्त बनाया है और फीडर बिफर्केशन से ओवरलोड कम किया है। ऑटोमेशन से अब आउटेज कम हो रहे हैं और वोल्टेज स्थिर हुआ है। इसका असर स्थानीय व्यवसायों, स्कूलों और स्वास्थ्य सेवाओं पर भी दिख रहा है।
प्रश्न: ड्रोन, जीआईएस और एडीएमए जैसी तकनीकें बिजली वितरण को कैसे बदल रही हैं?
उत्तर: ड्रोन आधारित जीआईएस सर्वेक्षण से हमें छह सर्किलों में एसेट विजिबिलिटी मिली है। अब हम अपने नेटवर्क की सटीक स्थिति डिजिटल प्लेटफॉर्म पर देख सकते हैं। एडीएमए और एफएलआईएसआर जैसी तकनीकों से फॉल्ट का पता लगाना और बिजली बहाल करना पहले से कई गुना तेज हुआ है। इससे अब ‘रीयल टाइम’ अपडेट और तेज सेवा मिल रही है।
प्रश्न: बिजली की विश्वसनीयता बढ़ाने में स्काडा और एआई सिस्टम क्या भूमिका निभा रहे हैं?
उत्तर: स्काडा हमारे वितरण नेटवर्क का ‘कंट्रोल सेंटर’ है। अब तक 209 प्राथमिक सब-स्टेशन इसमें जोड़े जा चुके हैं और वीत्तय वर्ष 26 तक पूरी कवरेज का लक्ष्य है। एआई आधारित एनालिटिक्स से हम उपकरणों की स्थिति का पूर्वानुमान लगाकर खराबी से पहले कार्रवाई कर पाते हैं। इससे एसएआईएफआईI और एसएआईडीआई इंडिकेटर में उल्लेखनीय सुधार आया है। स्काडा (निगरानी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण प्रणाली ) सिस्टम के जरिए टीपीएसओडीएल हर सब-स्टेशन और फीडर पर निगरानी रखता है।
प्रश्न: टीपीएसओडीएल ने अपने कार्यालयों को सौर ऊर्जा से संचालित करना शुरू किया है। यह पहल कैसे बनी?
उत्तर: पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी हमारे डीएनए में है। हमारा कॉर्पोरेट ऑफिस पूरी तरह सौर ऊर्जा पर चलता है-100 केडबल्यूपी की रूफटॉप सोलर प्लांट से हर महीने 12–15 हजार यूनिट बिजली बनती है। हमने 18 और कार्यालयों को 438 केडबल्यूपी सोलर क्षमता से जोड़ा है, और बाकी इमारतों को भी जल्द सौर ऊर्जा से जोड़ने की योजना है। हमारा विजन है-हर कार्यालय ऊर्जा आत्मनिर्भर बने।
प्रश्न: टीपीएसओडीएल उपभोक्ता सौर अपनाने में अग्रणी कैसे बना?
उत्तर: “यूएलए मॉडल” छोटे घरों के लिए बेहद उपयोगी है। इस मॉडल में उपभोक्ता को केवल 8,747 (5,000 प्रोजेक्ट कॉस्ट +3,747 मीटर शुल्क) देकर 1 किलोवाट सोलर प्लांट मिल जाता है। हमने पहले चरण में 30,000 घरों का लक्ष्य तय किया है। अब तक 5.25 एमडबल्यू घरेलू और 5.9 एमडबल्यू वाणिज्यिक क्षेत्र में सौर क्षमता स्थापित की जा चुकी है। हर महीने 2–3 एमडबल्यू और जोड़े जा रहे हैं। इसके साथ ही पीएम-कुसुम योजना के तहत 20 एमडबल्यू टीपीपीए और 3.365 एमडबल्यू फीडर लेवल सोलराइज़ेशन पर भी काम जारी है। हमारा उद्देश्य है-हर घर में सौर ऊर्जा की पहुँच। यूएलए मॉडल ग्रामीण और छोटे उपभोक्ताओं को सस्ती सौर ऊर्जा देने का उदाहरण है।
प्रश्न: टीपीएसओडीएल उपभोक्ता अनुभव को कैसे आधुनिक बना रहा है?
उत्तर: हमने मल्टीलिंगुअल कॉल सेंटर, एआई चैटबॉट और मोबाइल ऐप्स शुरू किए हैं। ग्रामीण उपभोक्ता अपनी भाषा में शिकायत दर्ज करा सकते हैं और शहरी उपभोक्ता ऐप से बिलिंग या आउटेज की जानकारी ले सकते हैं। इससे पारदर्शिता बढ़ी है और शिकायत निस्तारण का समय घटा है।
प्रश्न: आपके सीएसआर कार्यक्रमों से क्या ठोस प्रभाव देखने को मिला है?
उत्तर: हमारे सीएसआर प्रयास शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और पर्यावरण पर केंद्रित हैं। जनजातीय युवाओं के लिए डिजिटल लर्निंग और व्यावसायिक प्रशिक्षण चल रहा है। स्वास्थ्य शिविरों, स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार और स्वच्छ ऊर्जा अभियानों से ग्रामीण जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। टीपीएसओडीएल का मानना है कि बिजली वितरण केवल तकनीकी काम नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है। सीएसआर प्रोजेक्ट्स के जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास में निवेश से ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।
प्रश्न: टीपीएसओडीएल ने महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कौन से प्रयोग किए हैं?
उत्तर: हमें गर्व है कि टीपीएसओडीएल में ऑल-वुमन कस्टमर रिलेशन सेंटर (सीआरसी) और ऑल-वुमन एनएबीएल मान्यता प्राप्त मीटर टेस्टिंग लैब जैसे मॉडल शुरू किए गए हैं। इसके अलावा, 12,000 से अधिक प्रशिक्षण घंटे पूरे किए गए हैं और “लीड सीरीज” जैसे कार्यक्रम कर्मचारियों को भविष्य की नेतृत्व भूमिकाओं के लिए तैयार कर रहे हैं। यह मॉडल न केवल संगठन के लिए लाभकारी है, बल्कि समाज में लैंगिक समानता को भी बढ़ावा देता है।
इसके अलावा, महिला स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) के साथ मिलकर हम “अनोखा धागा” और अगरबत्ती निर्माण जैसी पहलें चला रहे हैं। विशेष रूप से अनोखा धागा में महिलाएं कपड़े, बैग और अन्य दैनिक उपयोग के सामान बना रही हैं।
प्रश्न: फील्ड ऑपरेशन में सुरक्षा को लेकर टीपीएसओडीएल क्या कदम उठा रहा है?
उत्तर: सुरक्षा हमारी शीर्ष प्राथमिकता है। हर कर्मचारी को सुरक्षा उपकरण, प्रशिक्षण और निरीक्षण की सुविधा दी जाती है। हम “सेफ्टी वॉकथ्रू” और “सेफ्टी इंटरएक्शन” जैसे कार्यक्रम चलाते हैं, जिनमें वरिष्ठ अधिकारी भी भाग लेते हैं। हमारा मानना है-सुरक्षित कार्य संस्कृति ही सतत प्रगति की नींव है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए टीपीएसओडीएल ने कर्मचारियों के लिए नियमित ट्रेनिंग और निरीक्षण कार्यक्रम स्थापित किए हैं।
प्रश्न: नेतृत्व की नींव किन मूल्यों पर टिकी होती है?
उत्तर: मेरा मानना है कि किसी भी संस्था की सबसे बड़ी ताकत उसके लोग होते हैं। मैंने अपने करियर में हमेशा पारदर्शिता, जवाबदेही और टीमवर्क को प्राथमिकता दी है। हर कर्मचारी को ‘मालिकाना सोच’ के साथ काम करने का अवसर मिलना चाहिए। मैं खुद फील्ड विजिट करता हूँ, कर्मचारियों से सीधा संवाद रखता हूँ और सुरक्षा पर किसी तरह का समझौता नहीं करता। यही संस्कृति संगठन को लंबे समय तक मजबूत बनाती है।