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दूसरे राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन 2025 के दूसरे इंटरैक्टिव सत्र में हुआ विचार-विमर्स
भुवनेश्वर। दूसरे राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन के दूसरे दिन का इंटरैक्टिव सत्र-II भारत में मध्यस्थता के पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाने पर आयोजित किया गया। इस सत्र में क्षेत्र-विशेष मध्यस्थता और कौशल एवं प्रक्रिया-उन्मुख प्रशिक्षण पर विस्तार से चर्चा की गई।
सत्र की अध्यक्षता भारत के सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति श्रीमती बीवी नागरथना ने की, जबकि सह-अध्यक्ष के रूप में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एन कोटिस्वर सिंह और हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधवलिया उपस्थित रहे।
क्षेत्र-विशेष मध्यस्थता में पर्यावरण और जलवायु विवादों, भूमि एवं जल से संबंधित संघर्षों, स्वास्थ्य और चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों, बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) जैसे कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और पेटेंट से जुड़े विवादों पर मध्यस्थता के माध्यम से समाधान पर चर्चा हुई। इसके अलावा, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, बोर्डरूम विवाद, शेयरहोल्डर संघर्ष, स्टार्ट-अप इकोसिस्टम, सार्वजनिक नीति और सरकारी अनुबंधों में मध्यस्थता, तथा आपराधिक न्याय और नाबालिग मामलों में मध्यस्थता पर भी विचार किया गया।
विधिक सटीकता पर जोर
कौशल और प्रक्रिया-उन्मुख प्रशिक्षण में मानव व्यवहार, भावनाओं और वार्ता रणनीतियों की समझ, वार्ता और मनाने की तकनीकें, संवेदनशील जानकारी के प्रबंधन में नैतिकता और गोपनीयता, तथा समझौता पत्र तैयार करने की विधिक सटीकता पर जोर दिया गया।
“विशेषज्ञ मध्यस्थों” की आवश्यकता
न्यायमूर्ति बीवी नागरथना ने कहा कि मध्यस्थता कानून द्वारा मानव संघर्ष को सुलझाने की प्रक्रिया है। पर्यावरणीय विवादों और सतत समाधान के लिए “ग्रीन मध्यस्थ” और कॉर्पोरेट व आईपीआर मामलों के लिए “विशेषज्ञ मध्यस्थों” की आवश्यकता है। भय कारकों को समाप्त करना और प्रक्रिया में लचीलापन बढ़ाना मध्यस्थता को आसान बनाता है।
मध्यस्थता में वकीलों की दक्षता और पेशेवर प्रशिक्षण पर जोर
इस सत्र में अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी भाग लिया, जिनमें कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी, महाराष्ट्र के एटॉर्नी जनरल वीरेन्द्र सराफ, छत्तीसगढ़ के एटॉर्नी जनरल प्रफुल एन भारत और वरिष्ठ अधिवक्ता जावद एजे शामिल थे। उन्होंने मध्यस्थता में वकीलों की दक्षता और पेशेवर प्रशिक्षण पर जोर दिया और मध्यस्थता के भविष्य के लिए उचित संस्थागत ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया। सत्र का संचालन वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री गीता रामसेशन ने किया।