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ओडिशा हाईकोर्ट ने गर्भपात के लिए एसओपी तैयार करने का दिया निर्देश

  • 13 वर्षीय पीड़िता के मामले में सुनाया फैसला

भुवनेश्वर। ओडिशा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को गर्भपात (एमटीपी) के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओप) तैयार करने का आदेश दिया है, जिसे छह महीनों के भीतर लागू करना होगा। यह आदेश एक 13 वर्षीय आदिवासी लड़की के मामले की सुनवाई के दौरान आया, जो सिकल सेल एनीमिया और मिर्गी से पीड़ित थी और अगस्त 2024 में दुष्कर्म का शिकार होने के बाद गर्भवती हो गई थी।
इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एसके पाणिग्राही ने कहा कि चिकित्सकीय निर्णयों को कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलताओं के कारण बाधित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी चिंता जताई कि दुष्कर्म पीड़िताओं को गर्भपात की अनुमति देने में देरी होती है, क्योंकि स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कानूनी जटिलताओं का डर बना रहता है।
उल्लेखनीय है कि जिस मामले में यह आदेश आया है, उसमें 13 वर्षीय आदिवासी पीड़िता की गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो चुकी थी, जो कि न्यायिक अनुमति के बिना गर्भपात के लिए कानूनी सीमा से बाहर था। एमकेसीजी अस्पताल के एक मेडिकल बोर्ड ने पीड़िता के जीवन को बचाने के लिए तत्काल गर्भपात की सिफारिश की थी। बावजूद इसके, मामले को मेडिकल बोर्ड तक पहुंचाने में देरी हुई, जिससे न्यायालय ने इसमें हस्तक्षेप किया और प्रक्रिया में गंभीर खामियों को उजागर किया।
एसओपी में शामिल किए जाने वाले मुख्य प्रावधान
हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को गर्भपात के लिए विस्तृत एसओपी तैयार करने का निर्देश दिया है, जिसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल होंगे:
• तेजी से निर्णय लेने की प्रक्रिया ताकि मेडिकल बोर्ड की मंजूरी में देरी न हो।
• न्यायिक फैसलों और पूर्व के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए एसओपी तैयार की जाए।
स्त्री रोग विशेषज्ञ, प्रजनन स्वास्थ्य विशेषज्ञों और कानूनी विशेषज्ञों की सलाह से प्रक्रिया का निर्धारण।
• नाबालिगों के लिए विशेष प्रावधान, जिसमें योग्य मनोवैज्ञानिकों द्वारा परामर्श (काउंसलिंग) अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराया जाए।
• पुलिस को निर्देश कि ऐसे मामलों में तुरंत कानूनी सहायता सेवाओं को शामिल करें।
• छह महीने के भीतर लागू होगा निर्देश
सभी सरकारी और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में लागू होगा एसओपी
अदालत ने स्पष्ट किया कि एसओपी को सभी सरकारी और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में लागू किया जाएगा और इसकी नियमित समीक्षा भी की जाएगी। इस निर्देश को छह महीने के भीतर पूरी तरह से लागू करने की समय-सीमा तय की गई है।
अभी तक क्या है व्यवस्था
गर्भपात (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी – एमटीपी) का मतलब है गर्भ को सुरक्षित तरीके से समाप्त करना। भारत में यह प्रक्रिया कुछ खास परिस्थितियों में कानूनी रूप से मान्य है। अगर महिला की जान को खतरा हो, भ्रूण में कोई गंभीर समस्या हो, या गर्भधारण दुष्कर्म या नाबालिग उम्र में हुआ हो, तो 24 सप्ताह तक गर्भपात कराया जा सकता है। इसे दो तरीकों से किया जाता है—दवाइयों से (मेडिकल एबॉर्शन) या छोटी सर्जरी से (सर्जिकल एबॉर्शन)। डॉक्टर इस बात का ध्यान रखते हैं कि यह पूरी तरह सुरक्षित हो और महिला को किसी तरह की परेशानी न हो।
24 सप्ताह के बाद कोर्ट से लेनी पड़ती है अनुमति
गर्भपात से जुड़े कानून और सामाजिक धारणाएं अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन यह महिला के स्वास्थ्य और अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विषय है। कभी-कभी 24 सप्ताह से ज्यादा समय बीत जाने पर गर्भपात के लिए कोर्ट की अनुमति लेनी पड़ती है, जिससे प्रक्रिया में देर हो सकती है। खासकर दुष्कर्म पीड़िताओं और नाबालिग लड़कियों के मामलों में जल्दी और संवेदनशील तरीके से फैसला लेना जरूरी होता है। सरकार और अस्पतालों का दायित्व है कि वे महिलाओं को सही जानकारी, कानूनी सहायता और मानसिक समर्थन दें, ताकि वे अपने फैसले आत्मविश्वास से ले सकें।

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