ओम प्रकाश, कोलकाता
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली भाजपा के लाव लश्कर में शामिल बड़े से बड़े सूरमा को घुटनों पर लाने वाली ममता बनर्जी ने तीसरी बार राज्य की कमान संभाल ली है। इस बार विधानसभा का चुनाव काफी दिलचस्प था क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य शीर्ष नेताओं ने दीदी के किले को फतह करने के लिए चौतरफा घेराबंदी कर बंगाल में डेरा ही डाल दिया था। लेकिन नुकसान पहुंचाना तो दूर की बात, दीदी ने अपनी ताकत को और बढ़ा लिया तथा जिन क्षेत्रों में उनका जनाधार कमजोर था, वहां भी पैठ बनाने में सफल रही। ममता से सत्ता छीनने का ताना-बाना बुन रही भाजपा महज 77 सीटों पर सिमट गई और आंदोलन तथा संघर्षों में तप कर निकली बंगाल की “अग्नि कन्या” ने 2016 के मुकाबले अपनी सीटों में दो और बढ़ोतरी करते हुए 292 में से 213 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है। ‘दीदी’ के नाम से मशहूर ममता इस जीत के बाद देश की सबसे ताकतवर महिला के रूप में उभरी हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव के समय अगर विपक्ष एकजुट हो तो प्रधानमंत्री का विकल्प भी बन सकती हैं।
बनर्जी ने राज्य में लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनकर साबित कर दिया है कि वह राजनीतिक रूप से पारंगत नेता हैं और विरोधियों को पटखनी देने में उनका कोई मुकाबला नहीं है। बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को राज्य में भाजपा से कड़ी टक्कर मिल रही थी लेकिन उन्होंने सभी बाधाओं को पार करते हुये यह चुनावी लड़ाई जीत ली है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार बढ़ी है ममता की ताकत
बनर्जी (66) पहली बार वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री बनी थीं, जब उन्हाेंने तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाई वाले वाम मोर्चा को चुनाव में परास्त किया था और इसी के साथ 33 वर्षों के वाम मोर्चा शासन का अंत हो गया था। दूसरी बार उन्होंने वर्ष 2016 के चुनाव में 211 सीट जीतकर अपनी पार्टी की सत्ता बरकरार रखी। अब 2021 के विधानसभा चुनाव में सुश्री बनर्जी ने 213 सीटों पर चमत्कारिक जीत हासिल की। वह वर्ष 2011 से लगातार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। वह राज्य की आठवीं और पहली महिला मुख्यमंत्री हैं।
कांग्रेस से अलग होकर बनाई थी अपनी पार्टी
15 साल की उम्र से ही राजनीति में पैर रखने वाली ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होने के बाद 1998 में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की स्थापना कर इसकी पहली अध्यक्ष बनी थीं। उनके अनुयायी उन्हें ‘दीदी’ कहकर बुलाते थे और बाद में वह पूरे देश में ‘दीदी’ के नाम से मशहूर हो गईं। सुश्री बनर्जी इससे पहले दो बार रेल मंत्री रह चुकी हैं। वह रेल मंत्री बनने वाली देश की पहली महिला थीं। वह केंद्र में कोयला मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, युवा मामले एवं खेल, महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रह चुकी हैं।
मुफलिसी में बीता है बचपन, संघर्षमय रहा है जीवन
ममता बनर्जी की पहचान आज भी सिल्क की सफेद साड़ी और हवाई चप्पल पहनने वाली जमीन से जुड़ी नेत्री के तौर है। भले ही वह आज भारत की सबसे ताकतवर महिला के तौर पर देखी जा रही हैं लेकिन उनका बचपन मुफलिसी में बीता है और उनका जीवन संघर्षमय रहा है। शायद यही वजह है कि उन्होंने कभी भी गरीबों से अपने संबंध नहीं तोड़े। ममता बनर्जी का जन्म 1955 में कोलकाता (पूर्व में कलकत्ता) में एक बंगाली हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी थे। बनर्जी के पिता, प्रोमिलेश्वर की चिकित्सा के अभाव में मृत्यु हो गई, जब वह महज 17 वर्ष की थीं। 1970 में, ममता बनर्जी ने देशबन्धु शिशुपाल से उच्च माध्यमिक बोर्ड की परीक्षा पूरी की। उन्होंने जोगमाया देवी कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बाद में, उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इस्लामी इतिहास में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद श्री शिक्षाशयन कॉलेज से शिक्षा की डिग्री और जोगेश चन्द्र चौधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून की डिग्री प्राप्त की। उन्हें कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डस्ट्रियल टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी मिली। उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट ऑफ़ लिटरेचर (डी.लिट) की डिग्री से भी सम्मानित किया गया था।
कांग्रेस से जुड़कर की थी राजनीति की शुरुआत
ममता बनर्जी ने जोगमाया देवी कॉलेज में अध्ययन के दौरान कांग्रेस (आई) पार्टी की छात्र शाखा छात्र परिषद यूनियंस से जुड़ीं। जिसने समाजवादी एकता केन्द्र से संबद्ध अखिल भारतीय लोकतान्त्रिक छात्र संगठन को हराया। उसके बाद कांग्रेस की युवा इकाई का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से अनबन होने के बाद उन्होंने 1998 में तृणमूल कांग्रेस की नींव डाली थी। हिन्दुस्थान समाचार