कानपुर, अल नीनो की वजह से अक्सर दक्षिण अमेरिका, मध्य एशिया और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में बारिश अधिक होती है। इससे इन इलाकों में आखिरकार सूखे की स्थिति खत्म होने की उम्मीद जगती है। हालांकि इस जलवायु पैटर्न के कारण ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में सूखे का जोखिम बढ़ सकता है।
कानपुर स्थित चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन सुनील पांडे ने बताया कि इसी हफ्ते ऑस्ट्रेलिया ने चेतावनी दी थी कि अल नीनो के कारण भारत में गर्म और शुष्क दिनों में इजाफा होगा। ऑस्ट्रेलिया पहले ही जंगलों की आग के प्रति बेहद संवेदनशील है। जापान ने भी वसंत में रिकॉर्ड गर्मी के लिए अल नीनो को जिम्मेदार बताया है।
राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय संचालन (एनओएए) के मुताबिक अमेरिका में गर्मियों के दौरान अल नीनो का प्रभाव अपेक्षाकृत कमजोर होगा, लेकिन यह पतझड़ से मजबूत होने लगेगा और वसंत में भी यही स्थिति बनी रहेगी। एक ओर जहां अटलांटिक में तूफान की सक्रियता पर अल नीनो का असर निषेधात्मक होता है, वहीं मध्य और पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में आमतौर पर यह तेज आंधी-तूफान की संभावना बढ़ जाती है।
मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि जलवायु से जुड़ा यह पैटर्न औसतन हर दो से सात साल पर आता है। स्पैनिश भाषा में अल नीनो का मतलब होता है, लिटिल बॉय यानी छोटा लड़का। इसका संबंध अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन के गर्म चरण से है। मुख्य रूप से इसकी शुरुआत पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में असामान्य तौर पर गर्म पानी के कारण होती है। माना जाता है कि भूमध्यरेखीय प्रशांत के पास पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली ट्रेड विंड्स के धीमा होने या विपरीत दिशा में बहने पर यह पैटर्न बनता है।
अल नीनो के इस दौर के शुरू होने से पहले मई में समुद्र की सतह का औसत तापमान अब तक दर्ज किसी भी रिकॉर्ड से करीब 0.1 सेल्सियस अधिक था। पिछली बार अल नीनो का गर्म प्रभाव 2018 से 2019 के बीच आया था, इसके बाद एक ठंडा दौर चला, जिसे ला नीना कहते हैं। स्पैनिश में ला नीना का मतलब होता है लिटिल गर्ल, यानी छोटी लड़की। यह अल नीनो का ठंडा प्रतिरूप है। इस दौरान भूमध्यरेखा के पास पूर्वी और मध्य प्रशांत सागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम होता है।
साभार -हिस