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15 दिनों के लिए बंद हुए श्रीमंदिर के कपाट

  •  महास्नान के बाद महाप्रभु श्री जगन्नाथ, देव बलभद्र और देवी सुभद्रा बीमार

  • ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ के दर्शन करने पहुंचने लगी भक्तों की भीड़

पुरी। महास्नान के बाद महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा अब बुखार से पीड़ित हैं और उनकी 15 दिन की संगरोध अवधि शुरू हो गई है। इस अवधि के दौरान देवताओं को सार्वजनिक दर्शन से दूर रखा जाता है। भक्त पुरी से लगभग 25 किलोमीटर दूर ब्रह्मगिरि में अलारनाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ के अवतार माने जाने वाले भगवान अलारनाथ के दर्शन के लिए पहुंचने लगे हैं।

ऐसा माना जाता है कि भक्त भगवान अलारनाथ के दर्शन करके भगवान जगन्नाथ के समान आशीर्वाद और भाग्य का लाभ उठा सकते हैं।

15 दिवसीय संगरोध अवधि के दौरान अलारनाथ मंदिर जाने वाले भक्तों को यहां के ‘आनंद बाजार’ में ‘महाप्रसाद’ भी मिलता है, जैसा कि उन्हें पुरी के श्रीमंदिर में मिलता है।

गौरतलब है कि सामान्य दिनों में जितना प्रसाद भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है उतना ही भगवान अलारनाथ को भी चढ़ाया जाता है। इसके अलावा यहां भगवान अलारनाथ की प्रिय खीर भी मिलती है। जबकि मंदिर के ‘आनंद बाजार’ में साल भर के लिए ‘खीर’ उपलब्ध होती है, इस ‘अनसार’ अवधि के दौरान आइटम की मांग काफी बढ़ जाती है क्योंकि इस अवधि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त मंदिर आते हैं।

पुरी जिला प्रशासन ने भक्तों के लिए भगवान अलारनाथ के परेशानी मुक्त दर्शन के लिए विस्तृत व्यवस्था की है। बैरिकेड्स लगाए गए हैं, कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पुलिस बल के छह प्लाटून तैनात किए गए हैं।

श्रीमंदिर का मुख्य कपाट 15 दिनों के लिए हुआ बंद

श्रीमंदिर का मुख्य कपाट आगामी 15 दिनों के लिए समस्त जगन्नाथ भक्तों के लिए बन्द कर दिया गया है। इसलिए अब भक्त यहां महाप्रभु श्री जगन्नाथ और अन्य देवों के दर्शन नहीं कर पाएंगे।

अलारनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्माजी ने ही किया

वैष्णव मतानुसार ओडिशा के ब्रह्मगिरि के विख्यात भगवान अलारनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्माजी ने ही किया था। 09वीं सदी में राजा चतुर्थ भानुदेव ने इस मंदिर का निर्माण किया था जो स्वयं दक्षिण भारत के एक लोकप्रिय वैष्णव भक्त थे। ऐसी भी जानकारी है कि  इस मंदिर का पूर्णरुपेण विकास 14वीं सदी में हुआ। इस मंदिर में भगवान अलारनाथ जी की प्रस्तर की काली और अतिमोहक चतुर्भुज नारायण की साढ़े पांच फीट की अति सुंदर देवमूर्ति है। यह मंदिर मुख्य रुप से श्रीकृष्ण भक्तों का मंदिर है। ब्रह्मगिरि के अधिसंख्यक स्थानीय लोग वैष्णव हैं जो प्रतिदिन मंदिर में जाकर भगवान अलारनाथ की पूजा करते हैं। दक्षिण भारत में आज भी विष्णुभक्त चतुर्भुज नारायण के रुप में ही भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

रथयात्रा के क्रम में बढ़ता है इस मंदिर का महत्व

इस मंदिर का महत्त्व प्रतिवर्ष भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के क्रम में उस समय बढ़ जाता है, जब प्रतिवर्ष देवस्नानपूर्णिमा के दिन चतुर्धा देवविग्रह अत्यधिक स्नान करने के कारण बीमार हो जाते हैं और उन्हें अगले 15 दिनों के लिए इलाज के लिए उनके बीमार कक्ष में एकांतवास करा दिया जाता है।

नवकलेवर वर्ष में ब्रह्मगिरि में 45 दिनों तक रहती है रौनक

गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ के नवकलेवर वर्ष में ब्रह्मगिरि में कुल 45 दिनों तक भक्तों की रौनक रहती है, क्योंकि उस समय भगवान जगन्नाथ को ज्येष्ठ देवस्नानपूर्णिमा के दिन महास्नान के बाद कुल 45 दिनों तक उनके बीमार कक्ष में एकांतवास कराकर उनका लगातार 45 दिनों तक आर्युर्वेदसम्मत उपचार होता है जबकि प्रतिवर्ष यह इलाज मात्र 15 दिनों का होता है। श्रीमंदिर का मुख्य कपाट अगले 15 दिनों के लिए जगन्नाथ भक्तों के दर्शन के लिए बन्द कर दिया जाता है। कहते हैं कि 1510 ई. में अनन्य श्रीकृष्ण भक्त महाप्रभु चैतन्यदेवजी स्वयं यहां आकर भगवान अलारनाथ के दर्शन किये थे। प्रकृति के सुरम्य परिवेश में अवस्थित ब्रह्मगिरि पर्वत तथा भगवान अलारनाथ का मंदिर आज कई दशकों से सैलानियों का स्वर्ग बना हुआ है।

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