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भाजपा नेत्री डा सुनीति मुंड

ओडिशा की राजनीति में वंशवाद को लेकर भाजपा नेत्री सुनीति मुंड का बड़ा हमला

  • कहा-लोकतंत्र के लिए दीमक बना सत्तारूढ़ दल में वंशवाद

  • बीजद में नेताओं की सूची गिनाई

भाजपा नेत्री डा सुनीति मुंड

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर।

भाजपा नेत्री तथा लेखिका डा सुनीति मुंड ने आज ओडिशा की राजनीति में सक्रिया वंशवाद को लेकर सत्तारूढ़ दल पर बड़ा हमला किया। उन्होंने ओडिशा में इसे दीमक करार दिया तथा लोकतंत्र के लिए इसे खतरा बताया। उन्होंने बीजू जनता दल में सक्रिय नेताओं की सूची भी गिनाई, जो अपने विरासत की दरबार संभाल रहे हैं।

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में नगर निगम के मेयर की चुनाव लड़ने वाली भाजपा नेत्री ने कहा कि इससे ओडिशा में लोकतंत्र खतरे में है।

इण्डो एशियन टाइम्स के साथ विशेष बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी सत्ता का लोभ और मोह लोगों के बीच जकड़कर रह गयी है। ओहदा जितना बड़ा, मोह उतना ही बड़ा। अगर इतिहास देखें, तो पुरुषोत्तम श्री राम और राजा हरिश्चंद जैसे गिने-चुने कुछ व्यक्तित्व ही मिलेंगे, जिन्होंने अपने वचनबद्धता और सत्यनिष्ठता के लिए सभी अवसरों और सत्ता का त्याग किया था। यह प्रसंग किसी को ज्ञान देने का प्रयास नहीं, अपितु कहने कहा मतलब है कि कोई कुछ करना चाहता है, तो उसे सुअवसर, सहयोग और समर्थन का जुगाड़ अत्यंत आवश्यक है। इसका उदाहरण स्वयं हमारे देवी-देवताओं ने भी समय-समय दिया है और उन्होंने किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दूसरों का सहयोग लिया है, जबकि वह सबकुछ करने में समक्ष हैं।

उन्होंने कहा कि यहां प्रसंग है राजनीति। वर्तमान लोकतांत्रिक समय में इस शब्द को लेकर अनेक सामयिक प्रश्न उठ रहे हैं कि राज या श्रेष्ठ नीति अपना महत्व, प्रकृति, सही उद्देश्य को बनाये रखा है कि नहीं, इसको लेकर चर्चा, तर्क-विर्तक और विश्लेषण किये जा रहे हैं, लेकिन निष्कर्ष शून्य, यह कहा नहीं जा सकता है। राजनीति में भागीदारी सुनिश्चित कराने को लेकर चुनाव आयोग की नीतियों में समय-समय पर बदलाव किये जा रहे हैं। उद्देश्य यह होना चाहिए कि राजनैतिक शब्द का वास्विक अर्थ और उसकी गरिमा को अटूट रखा जाये, लेकिन यह दिनों-दिन कुलशित हो रहा है और सुधरने का नाम नहीं ले रहा है।

डा सुनीति मुंड ने कहा कि ओडिशा की राजनीति में हमेशा युवा पीढ़ी को अवसर देने का दावा किया जा रहा है, लेकिन वास्तकिता इसके परे है और परिस्थितियां पदों के लोभ के नीचे दबी हुईं हैं। यदि हम वर्तमान परिदृश्य का अध्ययन करें, तो पता है कि युवा पीढ़ा का दावा करने वाले व्यक्तित्व पीढ़ीवाद को आगे कर रहे हैं। लगता है कि अवसरवादी नेता अपनी पीढ़ी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिज्ञा कर चुके हैं और वे नये नेताओं के लिए अपना रास्त नहीं छोड़ रहे हैं और ना ही सुअवसर सृजित कर रहे हैं।

ओडिशा में सृजित हो रहे हैं पारिवारिक नेता या वंशवादी नेता 

अगर हम कहें कि ओडिशा में युवा नेताओं को सृजित करने की जगह पारिवारिक नेता या वंशवादी नेता सृजित किये जा रहे हैं, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अगर हम पीढ़ीगत और वंशानुगत परंपरा को त्यागते हैं, तो नई सोच शासन को एक नई दिशा प्रदान करेगी। इसके लिए हमारा राज्य ओडिशा हर दृष्टिकोण से संपन्न है। पढ़े-लिखे नवजवानों की फौज है, उनकी नई आधुनिक सोच है, लेकिन अवसर नहीं मिलने से उनका राजनीति की तरफ कोई झुकाव या रुझान नहीं दिख रहा है। अगर इन युवाओं को अवसर मिला, तो वास्तव में ओडिशा को नई दिशा मिलेगी और राज्य की जनता आर्थिक और सामाजिक तौर पर मजबूत होगी। नई सोच पुरानी व्यवस्थाओं को पंख लगाएंगे।

युवा स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को वंशवाद ने मिट्टी में मिलाने का प्रयास किया

ऐसे उदहारण पहले कई बार देखे गये हैं। आप स्वतंत्रता के समय की परिस्थितियों को ही देखिए, तो पता चलेगा कि गुलामी की जंरीरों को तोड़ने में युवा स्वतंत्रता सेनानियों की सोच किस कदर लाभदायी रही है, लेकिन वंशवाद रूपी दीमक उनके योगदानों को मिट्टी में मिलाने का प्रयास किया। ठीक ऐसे ही अब मौजूदा हालात में वंशवाद रूपी दीमक ओडिशा की राजनीति और लोकतंत्र को मिट्टी में मिलाने का प्रयास कर रहा है। काली करतूतों को छुपाने के लिए राजनीति में रोपा गया वंशवाद का बीज कुरीतियों को पनपा रहा है और नई सोच की राहत में रोड़ा अटका रहा है।

वंशवाद न होता तो न जाने देश में कितने बापू होते

उन्होंने कहा कि हमारे कहने का तात्पर्य है कि अगर वंशवाद न होता तो न जाने देश में कितने बापू होते और आगे भी होते रहते। इसलिए हमारा मानना है कि परिवारवाद, वंशवाद और जातिवाद जैसे विचारधाराएं लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी बजा रही हैं। यह बात सभी समझ रहे हैं, लेकिन खुद सुधरने की जगह एक-दूसरे पर अंगुली उठा रहे हैं। अगर हम सिर्फ ओडिशा में सत्ता के पास रहे वंशवाद या परिवारवाद के परिदृश्य को देखें, तो कई उदाहरण जीवंत हैं। जैसे कि ओडिशा में मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में जिम्मेदारियों को संभालने वाली नंदनी सतपथि के छोटे बेटे तथागत सतपथि भी मां की तरह राजनीति में प्रवेश किये और कई बार सांसद और विधायक चुने गये। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री जानकी बल्लभ पटनायक की पत्नी जयंती पटनायक सांसद बनीं तथा इनके दामाद सौम्यरंजन पटनायक भी राजनीति में आये। इसी क्रम में डाक्टर हरेकृष्ण महताब के परिवार से भतृहरि महताब, नीलमणि राउतराय के परिवार से विजयश्री राउतराय, बसंत विश्वाल के बेटे रंजीब विश्वाल और चिरंजीव विश्वाल, प्रभुल्ल घड़ेई के पुत्र प्रीति रंजन घड़ेई, अशोक दास के पुत्र प्रणव प्रकाश दास, प्रभात विश्वाल के बेटे सौविक विश्वाल, प्रभात त्रिपाठी के बेटे देवी रंजन त्रिपाठी आदि ने अपने-अपने पिता दरबार को संभाला है। इस प्रकार ओडिशा में परिवारवाद और वंशवाद पकड़ मजबूत होती जा रही है। अब सवाल यह उठना लाजमी है कि इसके पीछे का कारण क्या है? इस सवाल का जवाब जागरूक मतदाता को जरूर ढूढंना चाहिए।

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