Home / Odisha / हर जीव को जीने का अधिकार है, अहंकार से सिर्फ नुकसान होता है: राज्यपाल विश्व भूषण हरिचन्दन

हर जीव को जीने का अधिकार है, अहंकार से सिर्फ नुकसान होता है: राज्यपाल विश्व भूषण हरिचन्दन

  • विश्व शांति में अहिंसा की भूमिका संगोष्ठी आयोजित

  •  खुद को बड़ा समझने की बीमारी ने समाज में असमानता की खाई पैदा की है: मुनिश्री जिनेश कुमार

भुवनेश्वर. विश्व शांति में अहिंसा की भूमिका संगोष्ठी मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाण तीन के सानिध्य में रखी गयी. इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में आन्ध्रप्रदेश के राज्यपाल विश्वभुषण हरिचन्दन के साथ ही श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष मनसुख लाल सेठिया, भुवनेश्वर सभा अध्यक्ष बच्छराज बेताला, भवन समिति के अध्यक्ष सुभाष भुरा प्रमुख के साथ समाज के सभी विंग के सदस्य उपस्थित थे.
स्थानीय तेरापथं भवन में आयोजित इस संगोष्ठी समारोह को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचन्दन ने कहा कि हर जीव को जीने का अधिकार है. अहंकार से सिर्फ नुकसान होता है. राज्यपाल ने कहा कि सत्य, अहिंसा, शांति, करुणा को ध्यान में रखकर हर मानव को आगे बढ़ना चाहिए. उन्होंने अखिल भारतीय तेरापंथी सभा द्वारा समाज हित में किए जा रहे विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों की भी प्रशंसा की. राज्यपाल में जैन मुनिश्री द्वारा पूरे समाज के लिए अहिंसा, सद्भावना व नैतिकता के संदेश को अविस्मरणी बताते हुए कहा कि यदि हम इन संदेशों को अपने जीवन में अपना लेते हैं तो फिर ना सिर्फ हमारा बल्कि पूरे समाज का कल्याण हो जाएगा.

समारोह में जैन मुनिश्री जिनेश कुमार ने कहा कि मानव में अहिंसा के विकास के लिए मैत्री, करुणा, समानता, सद्भावना एवं सहिष्णुता का विकास होना जरूरी है. मुनिश्री ने एक व्यक्ति अहिंसा का मार्ग क्यों अपनाता है, उस संदर्भ में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आदमी रोटी के लिए हिंसा का रास्ता अपनाता है, आवेश में आने के बाद हिंसा के रास्ते पर चला जाता है, तनाम में हिंसा करता है, नशा में हिंसा करता है और प्रतिस्पर्धा के कारण हिंसा का रास्ता अख्तियार कर लेता है. ऐसे में अहिंसा के विकास के लिए मानव के हृदय में मैत्री, करूणा, समानता, सद्भावना, सहिष्णुता की भावना जागृत होना जरूरी है. मुनिश्री ने इस अवसर पर उपस्थित लोगों को कूरणा, सहिष्णुता, समानता, सद्भावना आदि के संदर्भ में विस्तृत जानकारी दी. मुनिश्री ने बताया करूणा के विकास से शांति संभव है. सब जीवों को अपनी आत्मा के समान समझाना चाहिए. खुद को बड़ा समझने की बीमारी ने समाज में असमानता की खाई पैदा की है. इससे अपराध बढ़ते हैं. हिंसा बढ़ती है.

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