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हनुमान जी के शौर्य पर प्रभु श्री राम ने कहा…!!!

  • जैसे श्रीकृष्ण ने सुदामा को तीनों लोक अर्पित कर दिए थे, भगवान श्रीराम ने तो अपनी प्रभुता ही हनुमानजी को समर्पित कर दी और अपने समस्त कार्यों का श्रेय एकमात्र उनपर डाल दिया

बात तब की है जब भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हो गया था। तब चारों दिशाओं के ऋषि श्रीराम का अभिनन्दन करने अयोध्या आए.
उस अवसर पर प्रश्न उठा क्या रावण सबसे शक्तिशाली था ?
तो महर्षि अगस्त्य ने कहा – नहीं! और रावण के सहस्रबाहु अर्जुन और वानरराज बाली से करारी हार की कहानी सुनाई!
फिर महर्षि अगस्त्य जी ने कहा – इन सबमें सबसे शक्तिशाली था इंद्रजीत, और इंद्रजीत की कथा सुनाई.
रावण, मेघनाद, बाली आदि की कथाएं सुन-सुनकर श्रीराम को कोफ्त सी उठी.
और जब अगस्त्य जी ने कहा – अत्यधिक बलशाली बाली को भी आपने दग्ध कर डाला.
तो श्रीराम भावुक से हो गए और अपने परमप्रिय हनुमानजी का अतुलित शौर्य याद करके रोमांचित हो उठे.
श्रीराम को हनुमानजी की जगह अन्य लोगों के शौर्य का यशोगान सुन एक टीस सी उठी.
करुणानिधान भगवान रघुवर अगस्त्य जी से
बोले -“महर्षे ! निस्संदेह, बाली और रावण का बल अतुलनीय था, पर मेरा ऐसा मानना है कि इन दोनों का बल भी हनुमानजी के बल की बराबरी नहीं कर सकता.
शूरता, दक्षता, बल, धैर्य, बुद्धिमत्ता, नीति, पराक्रम और प्रभाव, इन सद्गुणों ने हनुमानजी के भीतर घर कर रखा है.”
“समुद्र को देखते ही वानरसेना घबरा उठी थी, पर ये महाबाहु हनुमानजी सेना को धैर्य बंधाकर एक ही छलांग में सौ योजन समुद्र लांघ गए थे. फिर लंकिनी को परास्त कर ये रावण के अन्तःपुर में घुस गये.
अशोकवाटिका में जानकीजी से मिले और उन्हें भी धैर्य बंधाया. वहाँ अशोकवन में इन्होंने अकेले ही रावण के सेनापतियों, मन्त्रिकुमारों, किंकरों और रावणपुत्र अक्षकुमार मार गिराया.”
“फिर ये हनुमानजी मेघनाद के नागपाश से बंधकर स्वयं ही मुक्त हो गए थे. फिर रावण से भी इन्होंने वार्तालाप किया, पर जैसे प्रलयकाल की आग ने यह सारी पृथ्वी जलाई थी, वैसे ही इन्होंने लंकापुरी जलाकर भस्म कर दिया था .”
“युद्ध में इन श्रीहनुमानजी के जो पराक्रम देखे गए हैं, ऐसे वीरतापूर्ण कर्म न तो काल ने किए, न इन्द्र ने, न वरुण ने, यहाँ तक कि भगवान विष्णु के भी नहीं सुने जाते.”
“हे मुनिराज ! सच कहूँ, तो मैंने तो इन्हीं श्रीहनुमानजी के बाहुबल से ही विभीषण के लिए लंका, शत्रुओं पर विजय, अयोध्या का राज्य, सीताजी, लक्ष्मण व मित्रों बन्धुओं को प्राप्त किया है.
यदि मुझे वानरराज सुग्रीव के सखा ये श्रीहनुमानजी न मिलते तो सीताजी का पता लगाने में कौन समर्थ हो सकता था ?
हे भगवन ! मुझे तो आप इन परमप्रतापी श्रीहनुमानजी की कथा ही विस्तार से सुनाइये!”
श्रीरामचन्द्रजी के ये प्रेमभरे वचन सुनकर, हनुमानजी की तरफ देखते हुए अगस्त्यजी बोले – “श्रीराम ! आपकी सब बातें सच हैं. बल, पराक्रम, बुद्धि और गति में इनकी तुलना कौन कर सकता है?”
अगस्त्यजी से पूरी हनुमानजी की जीवनकथा सुनने के बाद श्रीरामजी बड़े प्रसन्न और विस्मित हुए.
भगवान का इतना प्रेम पाने वाले भक्तराज एकमात्र प्रभु हनुमानजी ही हुए हैं, जहाँ भक्त भगवान की कथा सुनने को नहीं बल्कि भगवान खुद ही भक्त की कथा सुनने को लालायित हैं.
जैसे श्रीकृष्ण ने सुदामा को तीनों लोक अर्पित कर दिए थे, भगवान श्रीराम ने तो अपनी प्रभुता ही हनुमानजी को समर्पित कर दी और अपने समस्त कार्यों का श्रेय एकमात्र उनपर डाल दिया !
श्रीराम ने हनुमानजी को अपने हृदय में स्थान दिया, और स्वयं हनुमानजी के हृदय में विराजित हो गए.
भगवान के काज करने को आतुर, ऐसे श्रीहनुमानजी हमें भी रामकाज में लगाएं !!
पवनतनय संकट हरण मंगलमूर्ति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप।।

साभार पी श्रीवास्तव

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