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आदिपुरुष’ में ‘अपमान’ की लंका तो जलेगी ही

मुकुंद: लेखक, हिन्दुस्थान समाचार

फिल्म ‘आदिपुरुष’ का कानून की कसौटी पर कसा जाना तय है। जनता की अदालत तो अपना आक्रोश व्यक्त कर ही चुकी है। अब इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस फिल्म के खिलाफ दाखिल दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई में तीखी मौखिक टिप्पणी की है। खंडपीठ ने कहा है कि हिंदू सहिष्णु है। खंडपीठ ने सवाल किया है कि हर बार उसकी सहनशीलता की परीक्षा ली जाती है। वे सभ्य हैं तो उन्हें दबाना सही है क्या।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह की खंडपीठ ने फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर उर्फ मनोज शुक्ला को प्रतिवादी बनाए जाने के प्रार्थना पत्र पर यह तल्ख टिप्पणी की। न्यायविदों के इस रुख से धर्मावलंबियों का सीना गर्व से भर गया है। देश की जनता को अब लगा है कि उसकी आस्था पर चोट करने वाले सिनेमा ‘आदिपुरुष’ की लंका तो जलेगी ही। मगर हैरानी के साथ सबसे बड़ा सवाल यह है कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सेंसर बोर्ड) ने यह फिल्म पास कैसे कर दी। वह भी बोर्ड के कुछ सदस्यों के देखे बिना।

सेंसर बोर्ड के सदस्य विवेक अग्निहोत्री ने कहा है कि उन्होंने अभी तक यह फिल्म नहीं देखी है। उन्होंने जोर देकर कहा- ‘हम प्रमाणन के लिए फिल्म नहीं देखते। फिल्म को आम लोग देखते हैं। मुझे नहीं पता कि फिल्म का किस स्तर पर क्या हुआ और इसे किसने देखा। मैं ‘द वैक्सीन वॉर’ की शूटिंग में व्यस्त था। इसलिए, मुझे ‘आदिपुरुष’ के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।’

यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि यह महत्वपूर्ण संस्था केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की संवैधानिक इकाई है। यह संस्था 1952 के सिनेमेटोग्राफ एक्ट के तहत फिल्मों के प्रसारण पर नजर रखती है। देश में सेंसर बोर्ड को दिखाए बिना कोई भी फिल्म आम दर्शकों के लिए रिलीज नहीं की जा सकती है। बोर्ड के नए सदस्यों में विद्या बालन, विवेक अग्निहोत्री, गौतमी तडिमल्ला, नरेश चन्द्र लाल, नील हरबर्ट नॉनकिन्रिह, वामन केंद्र, टीएस नागभराण, रमेश पतंगे, वनी त्रिपाटी टिक्कू, जीविता राजशेखर और मिहिर भुत हैं। इन्हीं सदस्यों में से एक विवेक अग्निहोत्री की यह स्वीकारोक्ति खतरनाक संकेत देती है। क्या पता और भी सदस्यों ने यह फिल्म न देखी हो। तब भी इसे रिलीज के लिए अनुमति देना गैर जिम्मेदारी का ‘गंभीर’ उदाहरण है।

यह फिल्म अपने टीजर से ही विवादों में घिरी हुई है। विश्व हिंदू परिषद की नेता डॉ. प्राची साध्वी टीजर में दिखाए गए रावण के स्वरूप की निंदा कर चुकी हैं। दिल्ली भाजपा के नेता अजय सेहरावत भी ‘आदिपुरुष’ के रावण की तुलना ऐतिहासिक किरदार अलाउद्दीन खिलजी से करते हुए सवाल उठा चुके हैं। सबसे गंभीर चिंता संत चक्रपाणि महाराज की है। वह ट्विटर पर लिख चुके हैं-‘भगवान शिव के अनन्य उपासक लंकापति रावण की भूमिका में दक्षिण भारत की फिल्म आदिपुरुष में सैफ अली खान का चित्रण ऐसा किया गया है, जैसे इस्लामिक खिलजी या चंगेज खान या औरंगजेब है। माथे पर न तिलक न त्रिपुंड।’ वह चेता चुके हैं कि पौराणिक चरित्रों के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र भी इस फिल्म में पौराणिक देवता हनुमान जी के स्वरूप पर कड़ा विरोध दर्ज करा चुके हैं। इस फिल्म में हनुमान जी को चमड़े के बने हुए वस्त्र पहने दिखाया गया है। मिश्र का मानना है कि इस तरह के दृश्य धार्मिक भावना आहत करते हैं। इस फिल्म में मां सीता के एक संवाद पर समूचे नेपाल में तूफान आ चुका है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यह भी कहा है कि यह तो अच्छा है कि वर्तमान विवाद एक ऐसे धर्म के बारे में है, जिसे मानने वालों ने कहीं लोक व्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचाया। हमें उनका आभारी होना चाहिए। कुछ लोग सिनेमाहाल बंद कराने गए थे, लेकिन उन्होंने भी सिर्फ हाल बंद करवाया, वे और भी कुछ कर सकते थे। खंडपीठ की इस मौखिक टिप्पणी में गंभीर आहट है।

खंडपीठ ने इस फिल्म में दिखाए गए डिस्क्लेमर पर भी गंभीर टिप्पणी करते हुए सवाल उठाया है। कहा है- आप भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण और लंका दिखाते हैं और डिस्क्लेमर लगाते हैं कि यह रामायण नहीं है। क्या आपने देशवासियों को बेवकूफ समझा है। खंडपीठ ने यह टिप्पणी कुलदीप तिवारी और नवीन धवन की याचिका पर की है। तिवारी और धवन ने इस सिनेमा के तमाम आपत्तिजनक दृश्यों व संवादों को संदर्भित करते हुए सेंसर बोर्ड के जारी प्रमाण पत्र को निरस्त करने की मांग की है।

इस फिल्म का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। देश की सबसे बड़ी अदालत से याचिकाकर्ता ममता रानी ने गुहार लगाई है कि हिंदू महाकाव्य रामायण पर केंद्रित इस फिल्म से हिंदू देवताओं में आस्था रखने वाले लोगों की भावना आहत हुई है। इस फिल्म पर तत्काल प्रतिबंध लगना चाहिए। साथ ही सेंसर बोर्ड से मिले सर्टिफिकेट को रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि ये सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 की धारा 5बी के वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। ममता रानी ने कहा है कि पवित्र ग्रंथों पर समाज का हर व्यक्ति भरोसा करता है। उससे उसकी भावनाएं जुड़ी होती हैं। वो शख्स अपनी संस्कृति और परंपराओं के बिना पेड़ से गिरे सूखे पत्ते की तरह होता है। इस फिल्म के डिस्क्लेमर में ‘भ्रामकता’ है।

पोस्ट – इण्डो एशियन टाइम्स
सभार – हिस

 

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