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श्री जगन्नाथ धाम पुरी में रथ निर्माण का पवित्र कार्य युद्धस्तर पर जारी

  • केंद्र के फैसले का जगतगुरु शंकराचार्य, गजपति महाराज तथा श्रीमंदिर प्रशासन ने किया स्वागत

अशोक पाण्डेय, पुरी
श्री जगन्नाथ धाम पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आयोजित होनेवाली भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए रथों का निर्माण का कार्य श्रीमंदिर विधि-विधान के तहत श्रीधाम पुरी के बड़दाण्ड पर पुरी के गजपति महाराजा के राजमहल श्रीनाहर के सामने रथखाला में युद्धस्तर पर चल रहा है. रथ निर्माण की लगभग एक हजार वर्ष की पुरानी, सुदीर्घ और गौरवशाली परम्परा के तहत प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया से ही आरंभ होता है. प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आयोजित होती है. इस वर्ष 2020 में नये रथों के निर्माण का पवित्र कार्यं व्याप्त वैश्विक महामारी कोरानों के संक्रमण के चलते 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर श्रीमंदिर प्रांगण में ही आरंभ हुआ. 03 मई को लॉकडाउन-2 की समाप्ति के उपरांत तथा लॉकडाउन-3 के तहत ओडिशा प्रदेश सरकार ने केन्द्र सरकार से रथयात्रा के लिए नये रथ के निर्माण के लिए अनुमति मांगी. 08 मई को केन्द्र सरकार ने भगवान जगन्नाथ के 2020 विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथ के निर्माण की अपनी अनुमति प्रदान कर दी,


लेकिन राज्य सरकार को यह भी निर्देश दे दिया कि 23 जून को रथयात्रा आयोजित करने की जिम्मेदारी ओडिशा प्रदेश सरकार के जिम्मे रहेगी. इसकी जानकारी जैसे ही पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य परमपाद स्वामी निश्चलानंदजी सरस्वती महाराज, पुरी के गजपति महाराज श्री दिव्यसिंहदेवजी महाराजा तथा श्रीमंदिर प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों को मिली सभी के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे. वहीं रथयात्रा आयोजन से जुड़े समस्त दइतापति, सेवायत, विश्वकर्मा आदि ने केन्द्र सरकार के निर्णय का हार्दिक स्वागत किया है. रथों के निर्माण के लिए काष्ठ संग्रह का काम प्रतिवर्ष वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है. अक्षय तृतीया के दिन से नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ होता है तथा निर्माण में कुल लगभग 42 दिन लगते हैं. इस वर्ष 26 अप्रैल से लेकर 07 मई का समय तो नये रथ निर्माण के लिए निकल चुका है. बाकि बचे दिनों में नये रथों के निर्माण का भरोसा श्रीमंदिर प्रशासन पुरी धाम अवश्य जता रहा है.


रथ निर्माण
प्रतिवर्ष तीन नये रथ बनाये जाते हैं. रथ निमार्ण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा रही है. इस कार्य को वंशानुक्रम से सुनिश्चित बढ़इगर्ण ही करते हैं. निमार्ण का कार्य पूर्णतः शास्त्रसम्मत विधि से होता है. विशेषज्ञों का मानना है कि तीनों ही रथ जगन्नाथजी का नन्दिघोष रथ, बलभद्रजी का तालध्वज रथ और लाड़ली बहन सुभद्रा का देवदलन रथ पूरी तरह से आध्यात्मिक तथा शास्त्रसम्मत आधार पर निर्मित होते हैं. रथ निर्माण कार्य में कुल 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायत सहयोग करते हैं.

रथों का विवरण
तालध्वज रथ
यह रथ महाप्रभु जगन्नाथ के बड़े भाई बलभद्र का रथ है. इसे बहलध्वज भी कहते हैं. इसकी ऊंचाई 44 फीट है. इसमें 14 चक्के लगे होते हैं. इसके निर्माण में कुल 763 काष्ठ खण्ड़ों का प्रयोग होता है. इस रथ के सारथी का नाम मातली तथा रक्षक का नाम-वासुदेव हैं. इस पर लगे पताके का नाम उन्नानी है. इस रथ के नवीन परिधान का रंग लाल-हरा होता है. इसके घोड़ों का नाम-तीव्र, घोर, दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ है. घोड़ों रंग काला होता है. रस्से का नाम बासुकी है. पार्श्व देव-देवियों के नाम-गणेष, कार्तिकेय, सर्वमंगला, प्रलंबरी, हतयुधा, मृत्युंजय, नतंभरा, मुक्तेष्वर और शेषादेव है.

देवदलन रथ
यह रथ देवी सुभद्रा का है. देवदलन को दर्पदलन या पद्मध्वज भी कहते हैं. इसकी ऊँचाई 43 फीट होती है. इसके निर्माण में कुल 593 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है. इस पर लगे नवीन परिधान का रंग लाल-काला होता है. रथ में 12 चक्के होते हैं. इसके सारथी का नाम अर्जुन तथा रक्षक का नाम जयदुर्गा है. इस पर लगे पताके का नाम नदम्बिका है. इसके चार घोड़ों के नाम-रोचिका, मोचिका, जीत और अपराजिता है. घोड़ों का रंग भूरा होता है. इसके रस्से का नाम स्वर्णचूड़ है. इसकी नौ पार्श्व देवियां होती हैं- चंडी, चमुंडी, उग्रतारा, शूलीदुर्गा, वराही, श्यामाकाली, मंगला और विमला हैं.

नन्दिघोष रथ
यह रथ महाप्रभु श्री जगन्नाथ का रथ है. इसकी ऊँचाई 45 फीट होती है. इसमें 16 चक्के लगे होते हैं. इसके निर्माण में 832 काष्ठ खण्ड़ों का प्रयोग होता है. रथ पर लाल-पीला नवीन परिधान होता है. रथ पर लगे पताके का नाम त्रैलोक्यमोहिनी है. इसके सारथी दारुक तथा रक्षक गरुण हैं. इसमें चार घोड़े- शंख, बलाहक, सुस्वेत और हरिदाश्व होते हैं. घोड़ों का रंग सफेद होता है. इस रथ को इन्द्र ने उपहार स्वरुप भगवान जगन्नाथ को प्रदान किया था. इसके रस्से का नाम शंखचूड़ है. इसके पार्श्व देवों के नाम- वाराह, गोबर्धन, कृष्ण, गोपीकृष्ण, नरसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान और रुद्र हैं.
श्रीजगन्नाथजी के अनन्य भक्त प्रद्युम्न के अनुसार 2020 की भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा वैश्विक महामारी कोरोना के चलते प्रदेश सरकार, श्रीमंदिर प्रशासन, गोवर्द्धन पीठ तथा पुरी के गजपति महाराजा, श्रीमंदिर मुक्तिमण्डप, दइतापतिगण, विश्वकर्मा तथा सभी सहयोगी सेवायतों के पूर्ण सहयोग से 23 जून को निश्चित रुप में अवश्य आयोजित होगी. हालांकि अभी भी यह कहा नहीं जा सकता है कि किस रुप में और किस आकार में यह आयोजित होगा. जगन्नाथ भक्त प्रद्युम्न के अनुसार रथ निर्माण का कार्य निर्धारित समय से पूर्व ही संपन्न हो जाएगा. इसमें किसी प्रकार का संदेह भी नहीं है क्योंकि यह काम भी अवतारी श्रीजगन्नाथ भगवान का ही है. उनके अनुसार 08 मई को जिस प्रकार से पूरे विधि-विधान के साथ युद्धस्तर पर नये रथों के कार्य उन्होंने प्रत्यक्ष रुप में देखा वहीं सबसे बड़ा शुभ संदेश है.

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