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इंडियन पॉलिटिकल सर्विस’ (आईपीएस) का थे हिस्सा
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रियासतों और ब्रिटिश सरकार के बीच प्रशासनिक संवाद और नियंत्रण का करती थी कार्य
भुवनेश्वर। भारतीय इतिहास के एक कम चर्चित लेकिन महत्वपूर्ण अध्याय में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर अली मिर्ज़ा ने 1945 में ओडिशा में ब्रिटिश शासन के दौरान ‘राजनीतिक एजेंट’ की भूमिका निभाई थी।
ब्रिटिश काल में मिर्ज़ा ‘इंडियन पॉलिटिकल सर्विस’ (आईपीएस) का हिस्सा थे, जो रियासतों और ब्रिटिश सरकार के बीच प्रशासनिक संवाद और नियंत्रण का कार्य करती थी। उस समय ओडिशा एक नया प्रांत था, जिसे 1936 में बनाया गया था और वहां प्रशासनिक पुनर्गठन चल रहा था। इसी दौरान मिर्ज़ा को ओडिशा की रियासतों की निगरानी, स्थानीय राजाओं से समन्वय और कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
यह कार्यकाल संभवतः उनका एकमात्र ऐसा समय था जिसे भारत में बिना विवाद के देखा गया।
कॉलोनियल सिस्टम की पैदाइश
1899 में बंगाल प्रेसिडेंसी के मुर्शिदाबाद में जन्मे मिर्ज़ा एक कुलीन परिवार से थे। उन्होंने ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कमीशन पाने के बाद प्रशासनिक सेवाओं की ओर रुख किया और विभिन्न प्रांतों में पदस्थापित हुए, जिनमें ओडिशा और नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर क्षेत्र शामिल हैं।
विभाजन के बाद तानाशाही की ओर रुख
1947 के विभाजन के बाद मिर्ज़ा पाकिस्तान चले गए और जल्द ही वहां के रक्षा सचिव बने। 1956 में वह पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति बने, लेकिन 1958 में उन्होंने संविधान को निलंबित कर मार्शल लॉ लागू कर दिया। उन्होंने सत्ता जनरल अयूब खान को सौंप दी, जिन्होंने बाद में मिर्ज़ा को देश से निष्कासित कर लंदन भेज दिया। वहीं 1969 में उनका निधन हुआ और उनका राजनीतिक जीवन नकारात्मक दृष्टिकोण के साथ इतिहास में दर्ज हो गया।
भारत-पाक संबंधों का एक विस्मृत अध्याय
आज जब भारत आतंकवाद और सीमा पार हमलों जैसी पाकिस्तान प्रायोजित गतिविधियों से जूझ रहा है, ऐसे में मिर्ज़ा का ओडिशा से जुड़ा यह प्रकरण दोनों देशों के गहरे ऐतिहासिक संबंधों की एक विडंबनापूर्ण याद दिलाता है।