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लेटर ऑफ क्रेटिड का नाम लेते ही पहले मांगते हैं कलैटरल मॉर्गज
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केंद्र और राज्य सरकार की क्रेडिट गारंटी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
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मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव के सत्र में निर्यातकों ने उठाया वित्तीय अहयोग की चुनौतियों का मुद्दा
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर।
केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार देश में उद्योग स्थापना को लेकर स्टार्टअपों को बढ़ावा देने के लिए चाहे जितनी पॉलियां क्यों न बना लें, लेकिन बैंकिंग सेवाएं उनके मंसूबों पर पानी फेरती नजर आ रही हैं। बैंकर्स नये स्टार्टअप को सहयोग नहीं कर रहे हैं। बैंकर्स के सहयोग नहीं करने का मुद्दा कल मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव 2022 के सत्र में उठा। इस सत्र का आयोजन निर्यात को बढ़ाने को लेकर था, जिसमें राज्यभर के निर्यातक शामिल हुए थे। इस दौरान एक युवा स्टार्टअप ने बैंकों के असहयोग का मुद्दा उठा दिया, जिससे वहां मौजूद बैंकर्स असहज स्थिति में आ गये। इस स्टार्टअप निर्यातक ने कहा कि लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) का नाम लेते ही बैंकर्स सबसे पहले कलैटरल मॉर्गज की बात करते हैं। वे पूरी बात भी नहीं सुनते हैं। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें लगभग दो करोड़ रुपये तक के लोन कलैटरल मॉर्गज फ्री देने की गारंटी लेती हैं, लेकिन इसका भी लाभ उनको नहीं दिया जाता है।
कलैटरल मॉर्गज फ्री लोन योजनाओं का लाभ नहीं
देश में तथा राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देने को लेकर सरकारें युवाओं को उद्यमी बनाने के प्रयास में जुटी हैं। इसके लिए उन्होंने विभिन्न नीतियों के तहत कलैटरल मॉर्गज फ्री लोन का प्रावधान भी रखा है। कलैटरल मॉर्गज फ्री लोन के लिए केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) की क्रेडिट गारंटी स्कीम, एमएसएमई विभाग की योजनाएं, राज्यों की स्टार्टअप योजनाएं भी नये उद्यमियों को वित्तीय मदद करने के लिए हैं।
निर्यात में पेमेंट का आधार है एलसी
विश्वभर में आयात और निर्यात के लिए एलसी सबसे सुरक्षित पेमेंट मोड है। इसमें बैंक की गांरटी के साथ निर्यातक को पेमेंट का विकल्प होता है। इसके लिए एक बैंक दूसरे बैंक के साथ लिस्टेड भी होते हैं, इसके बावजूद बैंकर्स स्टार्टअप को तबज्जो नहीं देते हैं। लेटर ऑफ क्रेडिट लगभग चार प्रकार की होती है। इसमें एसबीएलएसी, डीएलसी, एलसी और यूसांस एलसी। निर्यातक अपनी सुविधाएं के हिसाब से लेटर ऑफ क्रेडिट के भुगतान की शर्तें रखता है। दोनों पक्षों के साथ-साथ इसमें बैंक की भूमिका गारंटर के रूप में शामिल होती है। एलसी को जारी करने वाला बैंक निर्यातक को यह गारंटी देता है कि तय शर्तों के अनुसार ऑर्डर की प्राप्ति के दस्तावेजों के आधार पर वह पेमेंट का भुगतान जारी कर देगा। इसके बावजूद भारतीय बैंकर्स का स्टार्टअप के प्रति असहयोग समझ से परे है।
समय पर ईपीसी भी नहीं मिलता
निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक्सपोर्ट पैकेजिंग क्रेडिट (ईपीसी) का प्रावधान बैंकों के पास उपलब्ध है, लेकिन इसका लाभ भी समय पर नहीं मिल पाता है। ऐसी स्थिति में निर्यातक वादे पर डिफाल्टर होने लगते हैं। लेटर ऑफ क्रेडिट आने और वस्तु खरीद के लिए तैयार होने बाद भी वे निर्यात नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें कलैटरल मॉर्गज फ्री एक्सपोर्ट पैकेजिंग क्रेडिट का लाभ नहीं मिल पाता है। ईपीसी एलसी आधार पर वस्तुओं की खरीद और निर्यात के खर्चे के लिए दिया जाता है तथा निर्यात के बाद मिलने वाली राशि से उसका भुगतान बैंकर्स को किया जाता है।
करोड़ों-अरबों में होती है सौदेबाजी
आयात-निर्यात के मामले में करोड़ों-अरबों रुपये में डील होती है। ऐसी स्थिति में एक युवा उद्यमी कहां से और किसकी संपत्ति कलैटरल मॉर्गज करेगा। कई मामलों में ऐसा होता है कि एक युवा उद्यमी के पास संपत्ती होने के बावजूद उसके नाम कुछ नहीं होता। यह संपत्तियां माता-पिता के नाम होती हैं। ऐसे में उनके समक्ष यह एक बड़ी चुनौती भी है।
एकल खिड़की से एडवांस ईपीसी की मांग
इस युवा निर्यातक ने कहा कि सरकार को यदि निर्यात या उद्यमिता को बढ़ावा देना है, तो सभी वित्तीय लाभदायक योजनाओं का एकीकरण जरूरी है और उन्हें एकल खिड़की से एडवांस उपयोग के लायक करने की जरूरत है, ताकि कई मामलों में वे स्टार्टअप के लिए कलैटरल मॉर्गज का काम कर सकें। उद्योगों की स्थापना में उद्यमी की लागत का वह हिस्सा बन सके और बैंक आसानी लोन दे सकें। निर्यात के मामले में कम से कम 10 करोड़ रुपये तक की एक्सपोर्ट पैकेजिंग क्रेडिट (ईपीसी) युवा उद्यमियों को दी जाये और एलसी की जांच के बाद उसे जारी कर दिया है। कई मामले में आयातक बैंकिंस सहयोग से संबंधित पत्र या ईपीसी का सर्टिफिकेट्स मांगते हैं।