-
108 घड़े से महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा ने किये स्नान
-
15 दिनों तक रहेंग अड़सर में
पुरी. महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान सुदर्शन का वार्षिक स्नान अनुष्ठान आज भक्तों की मौजूदगी में आयोजित किये गये. लगभग दो साल के बाद बड़े ही उत्साह पूर्वक माहौल में भक्तों के भागीदारी के देव स्नान पूर्णिमा आयोजित किया गया. नीतियों को पूरा करने के मौके पर गजपति महाराज भी मौजूद थे. यह अनुष्ठान वार्षिक विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. तय नीति के अनुसार सेवायतों ने श्रीमंदिर परिसर में ‘सुना कुआ’ नामक कुएं से खींचे गये 108 घड़े के पानी से देवताओं को स्नान कराया. इसके बाद फिर त्रिमूर्ति को गजवेश के रूप में सजाया गया. गजवेश में महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा अपने भक्तों को साल में एक बार दर्शन देते हैं.
108 घड़े से स्नान करने के अनुष्ठान के बाद सभी देव 15 दिनों तक बीमार होने के कारण अड़सर में रहते हैं. मान्यता है कि स्नान पूर्णिका के दिन अत्यधिक स्नान के कारण उन्हें बुखार हो जाता है. इसके जरिये मानवीय लीलाओं को प्रभु दर्शाते हैं.
बीते दो साल के बाद कोविद-19 के प्रकोप में आयी गिरावट के बाद स्नान बेदी पर देवों की एक झलक पाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां उमड़ पड़े. स्नानयात्रा की रस्मों के तहत मंगलार्पण के पूरा होने के बाद पहंडी बिजे अनुष्ठान सुबह लगभग 4 बजे शुरू हुआ. मंदिर के सेवायतों ने भगवान सुदर्शन के साथ पवित्र त्रिमूर्ति को ‘धाड़ी पहंड़ी’ में ले आये. सबसे पहले भगवान सुदर्शन को ‘स्नान बेदी’ तक पहुंचाया गया. उनके बाद भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ स्नान बेदी पर पहुंचे. सुबह करीब छह बजे देवताओं को स्नान वेदी पर विराजमान कराया गया. मान्यता है कि त्रिमूर्तियों से जुड़े 12 प्रमुख त्योहारों में से यह पहला है. कहा जाता है कि शास्त्र के अनुसार, यह वह दिन है जब भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का जन्म हुआ था. इसलिए यह प्रभु का जन्म पर्व है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी भगवान के दर्शन करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं. इसलिए इस दिन दुनिया भर से हजारों तीर्थयात्री यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.