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माटी की मूरत को तराश कर बनाया नायाब हीरा, माताओं के लिए बनीं मिसाल
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पांचवीं पुण्यतिथि पर अच्युत सामांत ने अर्पित की श्रद्धांजलि
अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर
जिंदगी के संघर्ष को सफलता में बदलकर नीलिमारानी सामंत आज किसी भी मां के लिए मिसाल हैं. कष्टों के दौर में इन्होंने अपनी जिंदगी को हंसकर जीया और अपनी मेहनत की बदौलत माटी के मूरत बच्चों को तराश कर नायाब हीरा बना दिया. आज यह हीरा हैं डा अच्युत सामंत, जो अपनी सेवाओं के कारण लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं. इनकी सोच और समाज के प्रति समर्पण ने इनको एक नयी पहचान दी. आज चिकित्सा का क्षेत्र हो या शिक्षा का क्षेत्र, सभी जगह इनकी सेवा अतुलनीय है. राजधानी स्थित कीट-कीस और कीम्स ने न सिर्फ ओडिशा, अपितु देश के साथ-साथ विदेशों में अपनी छवि बनाये हुए हैं. सादी जिंदगी जीने वाले तथा झोपड़ी से संसद का सफर कर चुके डा अच्युत सामंत इन सब का श्रेय अपनी मां स्वर्गीय नीलिमारानी सामंत को देते हैं. डा सामंत का कहना है कि यदि उन्होंने इतनी अच्छी परवरिस नहीं दी होती, तो शायद पिता का साया उठने के बाद वह बेहसहारा बच्चा कहां होता, कुछ भी पता नहीं. लेकिन मां की अच्छी शिक्षा की बदौलत हम यह सब करने के लिए प्रेरित हुए और हम नहीं चाहते कि कोई भी हमारी तरह संघर्ष करे.
दो अगस्त को कीट-कीस के संस्थापक तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत की स्वर्गीय मां तथा निःस्वार्थ समाजसेविका स्वर्गीया नीलिमारानी सामंत का पांचवीं पुण्यतिथि कोरोना महामारी के बीच भुवनेश्वर तथा उनके पैतृक गांव अविभाजित कटक जिले के स्मार्ट विलेज कलराबंक में मनायी गयी. इस अवसर पर भुवनेश्वर तथा कलराबंक में उनकी प्रस्तर की मूर्ति पर माल्यार्पणकर, उनको श्राद्ध अर्पण किया गया. प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपनी स्वर्गीय मां नीलिमारानी सामंत को एक निःस्वार्थ समाजसेविका के साथ-साथ असाधारण कामयाबी रचने वाला प्रतिभा करार दिया. उनके जीवन की वास्तविक प्रेरणा बताया. अपने गुजरे कल को याद करते हुए उन्होंने बताया कि जब वे मात्र चार साल के थे, उसी वक्त उनके पिताजी अनादि चरण सामंत का 19 मार्च, 1969 को एक रेल दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया. प्रोफेसर अच्युत सामंत की विधवा मां के सामने उनके अपने जीवनयापन के साथ-साथ उनके तीन बेटे तथा चार बेटियों के किसी प्रकार से लालन-पालन, भरण-पोषण तथा शिक्षा प्रदान करने की समस्या थी. अपने गांव की झोपड़ी में ऊपर से कोई छत भी नहीं थी. वह झोपड़ी सांपों का बसेरा भी था, लेकिन हमें साथ रहना सिख लिया था. प्रोफेसर सामंत की माताजी नीलिमारानी सामंत अपने जीवन की प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों में दूसरों के घरों में चौका-बर्तनकर, गन्ने से गुड़ तैयार कर तथा सब्जी उगाकर अपने साथ-साथ अपनी सात संतानों की परवरिश की. पढ़ा-लिखाकर उन्होंने स्वावलंबी बनाया.
उनके तीन बेटों में एक बेटा कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत हैं, जो आज विश्व के ऐसे महान शिक्षाविद् हैं जिसके यथार्थ सरल-मृदुल-आत्मीय व्यक्तित्व के सामने दुनिया सलाम करती है. उनको विश्व का युवा समुदाय अपना आदर्श मानते हैं. गौरतलब है कि नीलिमा रानी सामंत का जन्म 21 अगस्त, 1838 को हुआ तथा वे स्वर्गवासी हुईं दो अगस्त, 2016 को. इनके विषय में अंग्रेजी में एक पुस्तकः नीलिमारानी सामंतःमाई मदर, माई हीरो लिखकर उनको अपनी ओर से सच्ची श्रद्धांजलि दी है.