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ओपीएससी के पूर्व चेयरमैन शोभन कानूनगो के निधन पर शोक, दी गयी श्रद्धांजलि

सुधाकर कुमार शाही, भुवनेश्वर

भुवनेश्वर. ओडिशा पब्लिक सर्विस कमिशन (ओपीएससी) के पूर्व चेयरमैन और पूर्व नौकरशाह शोभन कानूनगो के निधन से शोक व्यक्त है. उन्होंने 25 मई को अंतिम सांस ली थी.

आज यहां ओपीएससी कार्यालय में उनको श्रद्धांजलि अर्पित की गयी. इस मौके पर ओपीएससी के वर्तमान चेयरमैन सत्यजीत मोहंती समेत अन्य सहयोगी कर्मचारियों ने उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर अपनी श्रद्धा जतायी. इस मौके पर संस्थान के डा बी पटनायक, प्रो एसएस रथ, एन साहू, प्रो एस रथ समेत अन्य कर्मचारी और सहयोगी उपस्थित थे. इस दौरान उपस्थित लोगों ने स्वर्गीय कानूनगो के योगदानों को याद किया तथा कहा कि उनके निधन से अपूरणीय क्षति हुई है. उनका स्थान सदैव रिक्त रहेगा.

उल्लेखनीय है कि शोभन कानूनगो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल के पूर्व केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री नित्यानंद कानूनगो के पुत्र थे. वह अपनी ईमानदारी के साथ-साथ प्रशासनिक कौशल के लिए भी जाने जाते थे.

शोभन कानूनगो ने सेवानिवृत्ति के बाद ओडिशा लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. पूर्व नागरिक उड्डयन सचिव और ओडिशा कैडर के एक आईएएस अधिकारी रहे कानूनगो ने लगभग एक सप्ताह तक कोविद-19 से जूझने के बाद मंगलवार को भुवनेश्वर के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. 85 वर्षीय कानूनगो के परिवार में उनकी पत्नी और पूर्व पत्रकार बेटी प्रिया हैं.

अपने परिवार के साथ भुवनेश्वर में रहने वाले 1960 बैच के इस अधिकारी की कोरोना जांच रिपोर्ट 18 मई को पाजिटिव पायी गयी और उन्हें एक कोविद अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने 25 मई को इस बीमारी के कारण दम तोड़ दिया.

कानूनगो को उनकी ईमानदारी के साथ-साथ प्रशासनिक कौशल के लिए जाना जाता है. उन्होंने दिल्ली जाने से पहले सत्तर के दशक के अंत और अस्सी के दशक की शुरुआत में ओडिशा में वित्त सचिव के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने 1992 और 1994 के बीच नागरिक उड्डयन सचिव के रूप में सेवा करने से पहले विभिन्न मंत्रालयों में कार्य किया. इसके बाद उन्होंने बिजली विभाग में सुधार को लेकर काम किया तथा 2014 में उन्होंने एक पुस्तक “ए ब्यूरोक्रेट स्पीक्स” लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा कि कैसे राजनीतिक अवसरवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार ने पूरे शासन को नष्ट कर दिया, जिससे लोग निराश और निंदक हो गए हैं. पुस्तक में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह सहित राजनीतिक अभिजात वर्ग से निपटने के बारे में उनके अनुभवों को विस्तृत किया गया है.

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