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भारतीय गुरु परंपरा के वाहक बनें शिक्षक – राठौड़

  • अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा ऑनलाइन गुरु वंदन कार्यक्रम आयोजित

भुवनेश्वर. गुरु अखंड मंडलाकार ज्ञान का प्रतीक है, जिसका न प्रारंभ है ना कोई अंत. भारत की गौरवशाली गुरु परंपरा के वाहक आज के शिक्षक को बनना है. यह उद्गार ख्यातनाम विचारक एवं शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़ ने आज अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा ऑनलाइन आयोजित गुरु वंदन कार्यक्रम में व्यक्त किए.

हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा कि भारत की गुरु परंपरा अनादि काल से रही है. गुरु के सानिध्य में शिष्य को लौकिक और पारलौकिक दोनों जीवन के लिए भली-भांति तैयार किया जाता था, ज्ञान की पूर्णता इस परंपरा का लक्ष्य था. वर्तमान समय में हम इसे भूले हैं और इसलिए यह विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों के लिए आत्मचिंतन का दिन है. राठौड़ ने कहा कि मनुष्य कर्म योनि में संकल्प और विकल्प की छूट है. अतः समुचित मार्गदर्शन के बिना मनुष्य नराधम भी बन सकता है और नरोत्तम भी.

उन्होंने गुरु की तुलना वृत्त के व्यास से करते हुए कहा कि परिधि पर रहते केंद्र से गुजरना आवश्यक है और यह केंद्र भारत का मूल विचार और संस्कृति है. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष प्रोफेसर जेपी सिंघल ने कहा कि महासंघ भारतीय जीवन मूल्यों के आधार पर शिक्षकों के संगठन का कार्य कर रहा है. गुरु वंदन कार्यक्रम महासंघ द्वारा नियोजित स्थाई कार्यक्रमों में हैं, जिसका उद्देश्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय गुरु परंपरा से प्रेरणा लेकर शिक्षक समाज में आत्मबोध करने का है.

कार्यक्रम की शुरुआत महासंघ की संयुक्त सचिव ममता डी के द्वारा सरस्वती वंदना से हुई. महासंघ के महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी. कार्यक्रम का संचालन महासंघ की सचिव डॉ गीता भट्ट ने किया तथा आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष पी वेंकटराव ने किया. इस कार्यक्रम में देशभर के 500 से अधिक शिक्षक कार्यकर्ताओं ने सहभाग किया.

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