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ओडिशा सरकार की क्रूज योजनाओं को लेकर पर्यावरण विदों ने जतायी चिंता

  • कहा- वन्य और जल जीवों के जीवन पर पड़ेगा बुरा असर

भुवनेश्वर. ओडिशा सरकार की पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बनायी गयी क्रूज योजनाओं को लेकर पर्यावरण विदों ने चिंता जतायी है. उनका मानना है कि इससे वन्य और जलजीवों के जीवन पर बुरा असर पड़ेगा. राज्य सरकार ने ने चिलिका झील, महानदी, भितरकनिका, सतकोसिया गॉर्ज और हीराकुद जलाशय में दिन की क्रूज सेवा शुरू करने का फैसला लिया है. इसने पर्यावरण विदों और हरियाली को लेकर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की चिंता बढ़ा दी है. इस योजना को पीपीटी मोड में संचालित करने की योजना है और पर्यटन विभाग ने संभावित आवेदकों से एक महीने की समय सीमा के भीतर प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं.

चिलिका सहित प्रमुख नदियों, जलाशयों और जल निकायों की एक लंबी तट रेखा समेत लगभग 482 किमी तक जल खेल, साहसिक खेल, हाउस बोट, क्रूज पर्यटन और एक्वा-पार्कों जैसी परियोजनाओं के लिए योजना बनायी गयी है. इन परियोजनाओं के लिए कई वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किये जाने की बात है. निवेश और ब्याज सब्सिडी की व्यवस्था भी है. इससे पहले भी केंद्र ने चिलिका में समुद्री विमान सेवा स्थापित करने की परिकल्पना की थी, जिसे पर्यावरणीय कारकों के कारण लागू नहीं किया जा सका.

पर्यावरण विदों का मानना है कि एक बड़े जहाज पर एक दिनी क्रूज सेवा पर्यटकों को आकर्षित तो करेगी, लेकिन जल निकायों के पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके पड़ने वाले प्रभाव पर भी विचार करना चाहिए. चिलिका, सतकोसिया और भितरकनिका नाजुक और संरक्षित स्थल हैं. यह क्षेत्र पहले से ही समस्याओं का सामना कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में परियोजनाओं पर चलने से पहले इस तरह के नदी पर्यटन पर प्रभाव का विस्तार से अध्ययन किया जाना चाहिए. ये तीनों क्षेत्र संवेदनशी,ल वनस्पतियों और जीवों के साथ अधिसूचित और संरक्षित क्षेत्र हैं. चिलिका में डॉल्फिन की आबादी कम है, भितरकनिका में खारे पानी के मगरमच्छ और नाजुक मैन्ग्रोव हैं. सतकोसिया गार्ज परियोजना टाइगर क्षेत्र के भीतर आता है और मगरमच्छ और घड़ियाल भी हैं.

ऐसी स्थिति में मशीनीकृत नावें शुरू करने के कई खतरे इनके समक्ष आएंगे. खासकर वायु, जल, तेल, रसायन और ध्वनि प्रदूषण इनकी जीवन को प्रभावित करेगा. नियमित रूप से जहाज पर आने वाले गंदे पानी जैसे सिंक, शौचालय आदि से कचरे निकलेंगे और जिसमें नाइट्रोजन और फास्फोरस भी होते हैं, जो यूट्रोफिकेशन का कारण बनते हैं और ऑक्सीजन की कमी के कारण पौधों की घनी वृद्धि और समुद्री जीवों की मृत्यु को बढ़ावा देते हैं. समुद्री डीजल इंजन कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी विभिन्न ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करेंगे. यहां तक ​​कि क्रूज नौकाओं से उत्पन्न होने वाली आवाज समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को परेशान करेगी. जहाजों की मशीनरी से ध्वनि प्रदूषण के अलावा उस पर मनोरंजक गतिविधियों के कारण बहुत अधिक शोर होता है. ये शोर डॉल्फिन सहित समुद्री जानवरों और स्तनधारियों को परेशान करते हैं. इससे उनको काफी नुकसान पहुंचता है, जिससे अक्सर उनकी मृत्यु हो जाती है और इको-सिस्टम को एक बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचता है.

इंटेक ओडिशा के प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर अनिल धीर ने कहा कि क्रूज, बोट्स, बड़ी नावों का प्रयोग खतरनाक होगा. इनका समुद्री वन्यजीवों के जीवन पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ता है. डॉल्फ़िन, कछुए, ऊदबिलाव और अन्य बड़ी मछलियों को काफी नुकसान होगा. वे इनके टक्कर और पतरवारों की मार नहीं झेल पायेंगी. सातपड़ा में नावों की चोट से मरी कई डॉल्फिनों के शव पाये गये थे.

धीर ने ऐसी गतिविधि का उदाहरण दिया है, जो भोपाल की ऊपरी झील में बन रही थी और उसे रोक दिया गया. मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम ने क्रूज नाव यात्रा की योजना बनाई थी. भोपाल नगर निगम ने पर्यटन निगम पर इससे झील को प्रदूषित करने का आरोप लगाया था. धीर ने कहा कि वे हीराकुद जलाशय और महानदी में क्रूज की योजना बना सकते हैं, लेकिन तीन संरक्षित स्थलों पर नहीं.

ग्रीनपीस इंडिया के जाने माने पर्यावरणविद् और चेयरमैन डॉ विश्वजीत मोहंती के अनुसार, पर्यटन विभाग की योजनाओं की गहन समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि योजनाएं अत्यधिक जैव विविधता और समृद्ध वन्यजीव क्षेत्रों के लिए हैं. इसमें टाइगर रिज़र्व का मुख्य क्षेत्र भी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार, टाइगर रिज़र्व के मुख्य क्षेत्रों में पर्यटन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. उन्होंने कहा कि इन योजनाओं से जीवों को काफी नुकसान होगा. इसलिए इस पर विचार किया जाना चाहिए.

 

 

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