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विश्व का तोरण द्वार है हिंदी- डा जे बी पाण्डेय

कोरापुट,आज उड़ीसा केन्द्रीय विश्वविद्यालय कोरापुट में हिंदी विभाग के तत्वावधान में विश्वविद्यालय के कुलपति डा चक्रधर त्रिपाठी की अध्यक्षता में विश्व हिंदी दिवस बड़े धूम धाम से मनाया गया।समारोह के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर डा जंग बहादुर पाण्डेय थे।उन्होंने हिन्दी की अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कि हिंदी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है और अब यह केवल भारत वर्ष की सीमाओं तक सीमित नहीं रही यह सात समुंदर पार विश्व के अनेकख देशों में सम्मान पहुंच चुकी है। हिन्दी के लिए चीन अब हिमालय पार नहीं रहा।पाकिस्तान में इसने अपने होने का परचम फहराया है।समुद्र पार जाकर अब यह विश्व के अनेकानेक देशो में इंटरनेट,ई- मेल, एवम् कंप्यूटर के माध्यम से अपनी सामर्थ्य का एहसास कराकर अब विश्व गलोब पर पूरी तरह स्थापित हो चुकी है।अर्थात् विश्व धरातल पर ज्ञान एवम् व्यवहार के नये नये खुलते क्षितिजों से जन्मी अपेक्षाओं के संदर्भ में आधुनिक हिन्दी भाषा ने अर्थवत्ता का एहसास कराया है।हिंदी भाषा की उपादेयता इस बात से प्रमाणित होती है कि यह हमारे बहुसंख्यक लोगों की भाषा है,साहित्यकार और कवियों की भाषा है,लोकप्रिय फिल्मों की भाषा है,इसमें विज्ञान और व्यापार की अद्यतन जानकारियां हैं।यह वोट मांगने की भाषा है।
गुलामी के बाद पश्चिम के समृद्ध समाज ने कदम से कदम मिलाने की चाह ने अंग्रेजी को अपनाया,अंग्रेजीयत को ओढ़ा लेकिन अंग्रेजी से लोगों को आत्मगौरव और प्यार का अनुभव नहीं हुआ।आज दिखावा और आत्मगौरव के बीच द्वंद्व है और इन सब के मध्य हिंदी हमारी अस्मिता और हमारे आत्म गौरव की भाषा है।विश्व के 95 देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन अध्यापन हो रहा है,यह गौरव का संदर्भ है।मैं स्वयं भारतीय सांस्कृतिक संबध परिषद् के द्वारा जर्मनी के जोहान्स गुटेन बर्ग और फिनलैंड के हेलसिंकी विश्वविद्यालय में हिन्दी का अध्यापन कर चुका हूँ।यह हिंदी के लिए गौरव का संदर्भ है।हिंदी के प्रचार प्रसार के निमित्त 11 विश्व हिन्दी सम्मेलन अब तक हो चुके हैं और 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन 15,16,17,फरवरी 2023 को फिजी में समायोजित है।हिंदी के लिए वह दिन दूर नहीं जब वह संयुक्त राष्ट्र संघ की 7 वीं अधिकृत भाषा बनेगी।
उन्होंने आगे कहा कि हिंदी संस्कृति और संस्कार की भाषा है और विश्व का तोरण द्वार है:-
केश है कंघा है कच्छा कड़ा,
सिख धर्म के हाथ कठार है हिंदी।
बात करो दिन रात जहाँ मन,
चाहे बेतार का तार है हिंदी।
पूजा से पूर्व पुरोहित हाथ,
सजायी हुई यह थार है हिंदी।
संस्कृति और संस्कार लिए हुई,
विश्व का तोरण द्वार है हिंदी।
विशिष्ट अतिथि के रूप में अंग्रेजी के विजिटिंग प्रोफेसर डा हिमांशु शेखर महापात्र ने कहा कि हिंदी भारत की राजभाषा और राष्ट्र भाषा है हमें हिन्दी का सम्मान करना चाहिए। अध्यक्षता करते हुए कुलपति डा चक्रधर त्रिपाठी ने हिंदी की वकालत करते हुए कहा कि हिंदी भारत मां की विंदी है और राष्ट्र भाषा हिंदी के बिना राष्ट्र गूंगा है।हिंदी प्रेम और एकता की भाषा है।हिंदी जोड़ने वाली भाषा है और हमे अपनी भाषा पर गर्व है।
इस अवसर पर डा संजीत कुमार दास रचित अंग्रेजी और डा आलोक बराल रचित उड़ीया पुस्तकों का अतिथियों द्वारा लोकार्पण किया गया।हिन्दी विभाग की कविता स्मारिका का भी लोकार्पण हुआ।इस अवसर पर अनेक विद्वानों ने हिंदी के पक्ष में हिंदी में अपने उद्गार व्यक्त किये जिनमें प्रमुख हैं-डा रानी सिंह डा सौम्य रंजन दास,डा साहब जी डा कपिल खेमुंदु, डा बी एन प्रधान डा प्रदोष कुमार रथ,डा आलोक बराल,डा जयंत कुमार नायक,डा मीनाती साहु,डा रूद्राणी आदि।सरस्वती वंदना सुश्री भारती रानी दास ने,संचालन डा संजीत कुमार दास ने और धन्यवाद ज्ञापन डा दुलुमनि तालूकदार ने किया।राष्ट्र गान से कार्यक्रम की पूर्णाहुति हुई।

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