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देसी आंदोलन में विदेशी परपंच – देश को अशांत करने की चल रही है गहरी साजिश

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विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)

किसान आंदोलन देसी है। मगर इसमें रचा जा रहा परपंच विदेशी है। इस आंदोलन का मुखौटा देसी है परंतु इसके सभी मुख्य पात्र विदेशी हैं। यहां तक कि आंदोलन की जमीन तो देसी है लेकिन इस देसी जमीन पर आंदोलन करने की पटकथा विदेशों में लिखी जा रही है। अगर यूं कहें कि किसान आंदोलन में पर्दे पर दिखाई देने वाले चेहरे देसी हैं लेकिन इस आंदोलन के लेखक, निर्माता, निर्देशक और अन्य मुख्य पात्र विदेशों में हैं तो गलत नहीं होगा। ग्रेटा थनबर्ग, रिहाना और मिया खलीफा का सोशल मीडिया के माध्यम से किसान आंदोलन का समर्थन इसका जीता जागता उदाहरण है। बात सिर्फ सोशल मीडिया के माध्यम से आंदोलन को समर्थन तक सीमित नहीं है। किसी भी विषय पर कोई भी इंसान अपना विचार व्यक्त कर सकता है। परंतु जब कोई इंसान या संगठन किसी देश को अशांत करने का मंशा रखता हो और बकायदा इसकी प्लानिंग करता हो तब वह खतरनाक हो जाता है।

26 जनवरी को हुई अराजक घटना से पहले जब इस तरह की आशंका जताई जा रही थी तो लोगों को यह हास्यास्पद लगता था। और लोग यह भी कहते थे कि इस तरह की बातें बोलकर आंदोलन को भटकाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इस किसान आंदोलन में एक के बाद विदेशी संलिप्तता की उजागर होने के बाद सभी प्रकार के भ्रम दूर हो चुके हैं। अगर कुछ और साफ साफ शब्दों में इस आंदोलन को समझाया जाए तो वह यह कि किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तान आंदोलन चलाया जा रहा है। यह बहुत बड़ी बात है और इस बात को समझने की आवश्यकता है। अपने दिमाग की सोंच का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। खालिस्तानी आंदोलन के समर्थन का वीडियो लगातार मिल रहा है।

हो सकता है खालिस्तानी समर्थक मो धालीवाल का वायरल वीडियो आपने भी देखा हो। इस वीडियो में धालीवाल खालिस्तानी प्रोपेगैंडा को उजागर कर रहा है। इसने किसान आंदोलन के बहाने खालिस्तान के एजेंडे को जोड़ा है। उसके अनुसार यदि कृषि कानून वापस हो जायेगा तो ये दुःख की बात होगी। क्योंकि इस आंदोलन को हर हाल में जीवित रखना है। कनाडा से टूल किट के माध्यम से इस प्रोपेगैंडा का उजागर हुआ है। स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने गलती से अपने ट्विटर अकाउंट से आंदोलन की पूरी पटकथा को ट्वीट कर दिया। हालाँकि उसने अपने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। इस टूलकिट में साफ साफ पूरी प्लानिंग का ब्यौरा दिया गया है। आपको और हमें ऐसा लगता है कि 26 जनवरी की शर्मनाक घटना अचानक हुई है। लेकिन इसकी पटकथा पहले से ही तैयार थी कि किसान आंदोलन के माध्यम से किस तारीख को किस जगह पर किस घटना को कैसे अंजाम देना है। आंदोलन का  दूसरा पक्ष पुलिस प्रशासन और सरकार की भी है। 26 जनवरी की घटना से पूरा देश आज भी आहत है। लेकिन इसमें संलिप्त गुनाहगार अभी भी गिरफ्त से बाहर हैं।

प्रमुख आरोपी लक्खा सधाना और दीप सिद्भू फेसबुक पर लगातार वीडियो जारी कर रहे हैं लेकिन हमारी ख़ुफ़िया तंत्र उनको पकड़ने में नाकाम है। 165 लोग गिरफ्तार हैं लेकिन अभी भी मुख्य आरोपी पकड़ से बाहर हैं। ये सरासर पुलिस की नाकामयाबी को दर्शाता है। सरकार और प्रशासन की इस ढुल मूल रवैये से ही आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। किसान आंदोलन पूर्ण रूप से हाईजैक हो चुका है। अब यदि हमारे तथाकथित किसान नेता इस आंदोलन को समाप्त करना भी चाहें तो वे समाप्त नहीं कर सकते हैं। इसका दूसरा महत्वपूर्ण कारण विपक्षी पार्टियों का राजनीतिक संरक्षण भी है। जो समय समय पर इसको जिंदा रखने के लिए एड़ी चोटी एक किये हुए हैं। पूरे देश में किसानों का चक्का जाम क्या गुल खिलायेगा ये तो समय ही बताएगा। लेकिन एक बात साफ है कि कृषि कानून और किसान आंदोलन सिर्फ एक बहाना है, देश को अशांत करना और खालिस्तान आंदोलन को बढ़ाना मकसद है।

 

 

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