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(महात्मा गांधी की पुण्य तिथि /30 जनवरी विशेष) अगर न मगर-अहिंसा की डगर

नई दिल्ली,राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर 30 जनवरी को कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें याद करेगा। साल 1949 से इस परंपरा का निर्वहन हम करते आ रहे हैं। अहिंसा की राह पर चलते हुए देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने वाले गांधी ने पूरी दुनिया को अपने विचारों से प्रभावित किया है। उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर कई किताबें भी लिखीं, जो हमें आज भी जीवन की नई राह दिखाती हैं क्योंकि उनके ये अनुभव, उनका अहिंसा का सिद्धांत, उनके विचार आज भी उतने ही सार्थक हैं, जितने उस दौर में थे। उनके जीवन के तीन महत्वपूर्ण सूत्र थे, जिनमें पहला था सामाजिक गंदगी दूर करने के लिए झाडू का सहारा। दूसरा, जात-पात और धर्म के बंधन से ऊपर उठकर सामूहिक प्रार्थना को बल देना। तीसरा, चरखा, जिसे आगे चलकर आत्मनिर्भरता और एकता का प्रतीक माना गया।

गांधी अक्सर कहा करते थे कि प्रसन्नता ही एकमात्र ऐसा इत्र है, जिसे आप अगर दूसरों पर डालते हैं तो उसकी कुछ बूंदें आप पर भी गिरती हैं। वे कहते थे कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से होती है। दूसरों की तरक्की में बाधा बनने वालों और नकारात्मक सोच वालों में सकारात्मकता का बीजारोपण करने के उद्देश्य से ही उन्होंने कहा था कि आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को ही अंधा बना देगी। लोगों को समय की महत्ता और समय के सही सदुपयोग के लिए प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा था कि जो व्यक्ति समय को बचाते हैं, वे धन को भी बचाते हैं और इस प्रकार बचाया गया धन भी कमाए गए धन के समान ही महत्वपूर्ण है।
वह कहते थे कि आप जो कुछ भी कार्य करते हैं, वह भले ही कम महत्वपूर्ण हो सकता है किन्तु सबसे महत्वपूर्ण यही है कि आप कुछ करें। लोगों को जीवन में हर दिन, हर पल कुछ न कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करते हुए गांधी कहा करते थे कि आप ऐसे जिएं, जैसे आपको कल मरना है लेकिन सीखें ऐसे कि आपको हमेशा जीवित रहना है। उनकी बातों का देशवासियों के दिलोदिमाग पर गहरा असर होता था।

जिस समय द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, उस समय देश के अधिकांश नेता इस बात के पक्षधर थे कि अब देश को अंग्रेजों से आजाद कराने का बिल्कुल सही मौका है। इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाते हुए इस समय देश में बड़े पैमाने पर आन्दोलन छेड़ देना चाहिए। दरअसल उन सभी का मानना था कि अंग्रेज सरकार द्वितीय विश्व युद्ध में व्यस्त रहने के कारण भारतवासियों के इस आन्दोलन का सामना नहीं कर पाएगी। आखिरकार उसे आन्दोलन के समक्ष सिर झुकाना ही पड़ेगा और स्वतंत्रता पाने में आसानी होगी।

जब यही बात गांधी के सामने उठाई गई तो उन्होंने अंग्रेजों की मजबूरी से फायदा उठाने से साफ इन्कार कर दिया। हालांकि उस दौरान अंग्रेजों के खिलाफ गांधी ने आन्दोलन तो जरूर चलाया लेकिन उनका वह आन्दोलन सामूहिक न होकर व्यक्तिगत था। मोहनदास करमचंद गांधी की शादी पोरबंदर के एक व्यापारी परिवार की बेटी कस्तूरबा के साथ हुई थी। शादी के कुछ समय बाद वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए। वकालत की पढ़ाई करके स्वदेश लौटे और स्वतंत्रता संगाम में कूदे।
1919 में उन्होंने अंग्रेजों के रॉलेट एक्ट कानून का विरोध किया, जिसमें बिना मुकदमा चलाए किसी भी व्यक्ति को जेल भेजने का प्रावधान था। इस कानून के खिलाफ उन्होंने सत्याग्रह की घोषणा की। 1906 में महात्मा गांधी ने ट्रासवाल एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट के खिलाफ पहला सत्याग्रह शुरू किया । 12 मार्च 1930 को नमक सत्याग्रह शुरू किया। इसके लिए अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिन तक पैदल मार्च किया। देश की आजादी के लिए उन्होंने दलित आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, नागरिक अवज्ञा आन्दोलन, दांडी यात्रा और भारत छोड़ो आन्दोलन आदि का नेतृत्व किया।

गांधी के विचारों में ऐसी शक्ति थी कि विरोधी भी उनकी तारीफ किए बगैर नहीं रह सकते थे। 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। 02 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर में जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी ने राजनीति में कभी कोई बड़ा पद हासिल नहीं किया लेकिन अपने कार्यों की बदौलत साधारण से नागरिक से महात्मा गांधी बन गए और आज राष्ट्रपिता के रूप में जाने जाते हैं। दरअसल 06 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो स्टेशन से पहली बार महात्मा गांधी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
साभार- हिस

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