Home / International / कोरोना का खेल-एक कविता

कोरोना का खेल-एक कविता


लाखों जत्थे निकल पड़े हैं शहरों ने जिन्हें निकाला।
पैदल चलते भूखे मरते मुख में नहीं निवाला।।
पानी पैसा नहीं पास ना घुसने पाते गाँव में।
नगें पावों चलते जाते छाले पड़ गए पावँ में।।
कुत्ते भौंक रहे हैं भूखे गोबर गाय का खाते हैं।
जब मिलता है मानव कोई उसे काटने आते हैं।।
नहीं दिखाई देते भाई जो वोट माँगने आये थे।
बातों के पुल पानी पर भाषण में घोल पिलाये थे।।
खरीफ फसल का क्या होगा कैसे करें कटाई अब।
आना जाना शादी वादी बंद हुई गाँव हताई अब।।
बीबी बोले सब्जी लाओ आटा भी अब खत्म हुआ।
नहीं टमाटर मिर्ची घर में सत्तू भी सब खत्म हुआ।।
बच्चे करते धम्मा चौकड़ी और कॅरोना आये तो।
आना जाना बस्ता ढोना ऐ सब बंद हो जाये तो।।
मम्मी पापा चिंता करते सूरत से बेटा आये तो।
यदि कोरोना डसले उसको गाँव नहीं दफनाये तो?
कैसी यह महामारी आई पूरे विश्व की बर्बादी का।
कहाँ गया चैनल और बौद्धिक चिंतक था आबादी का।।
सिर्फ शहर की चिंता में पागल सब आवाज हुई।
चलो गाँव की ओर वहाँ भी कॅरोना की आगाज हुई।।
किशन खंडेलवाल, भुवनेश्वर

Share this news

About desk

Check Also

इजराइल सैन्य खुफिया प्रमुख अहरोन हलीवा का इस्तीफा

तेल अवीव। इजराइल डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) ने कहा कि उसके खुफिया कोर के प्रमुख ने …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *