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साभार- सोशल मीडिया

अलौकिक महत्व है अक्षय तृतीया का, एक आध्यात्मिक अवलोकन

  • आयोजन पर मंडरा रहा है कोरोना का प्रकोप

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अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर

आज पूरा विश्व वैश्विक महामारी कोरोना के सक्रमण के दौर से गुजर रहा है. कोरोना की दहशत और उससे बचाव के लिए पूरा विश्व तथा विश्व मानवता अपने-अपने घरों में कैद हो चुका है. वहीं पर्व-त्यौहारों का देश भारत में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी धर्मों के पर्व-त्यौहार अपने-अपने घरों तक सिमटकर रह गये हैं. सभी देवालयों में देवी-देवतागण बिना भक्त के एकांतवास में हैं. सभी देवी-देवताओं की पूजा मात्र औपचारिकता के रुप में ही हो रही है. 2020 की होली नहीं मनाई गई. वैशाखी नहीं मनाई गई. ओड़िया नववर्ष नहीं मनाया गया. भुवनेश्वर महाप्रभु लिंगराज भगवान की रुक्णा रथयात्रा नहीं निकली. ऐसे में पुरी धाम में 2020 अक्षय तृतीया 26 अप्रैल को कैसे मनाई जाएगी, यह तो सिर्फ महाप्रभु जगन्नाथजी ही बता सकते हैं.

लगभग हजार वर्षों की ओडिशा के पुरी धाम में मनाई जानेवाली अक्षय तृतीया की सुदीर्घ और गौरवशाली परम्परा रही है. अक्षय तृतीया के दिन से भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए उनके नये रथों के निर्माण का कार्य बड़दाण्ड पर पुरी के गजपति महाराजा के राजमहल श्रीनाहर के सामने आरंभ होता है. पुरी के चंदन तालाब में जगन्नाथ भगवान की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदन यात्रा आरंभ होती है तथा ओडिशा के किसान अपने -अपने खेतों में बोआई का कार्य आरंभ करते हैं. वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है. इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं. इस पवित्र तिथि का कभी क्षय नहीं होता है. इसीलिए इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है. आर्याव्रत की पवित्र धरती पर अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का आविर्भाव हुआ था. उसी दिन त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था. अक्षय तृतीया के दिन से ही भगवान बदरीनाथ के दर्शनों के लिए उनके मंदिर के कपाट उनके भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं. अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्रीकृष्ण का विशेष रुप से पूजन का भी महत्त्व है.

पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ के रथों के निर्माण की फाइल फोटो।

अक्षय तृतीया की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी. उन्होंने यह बताया था कि उसी दिन सतयुग का आरंभ हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार प्राचीन काल में एक बड़ा ही गरीब और धर्मभीरु ब्राह्मण था. उसने किसी पण्डित के श्रीमुख से अक्षय तृतीया के महात्म्य की कथा सुनी थी. दान दिया था, जिसके फलस्वरुप वह राजा बना था. उसके राज्य में अक्षय तृतीया व्रत का पालन हर कोई करता था. स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड के वैशाख मास महात्म्य में पृष्ठसं.384 में यह वर्णित है कि जो मनुष्य अक्षय तृतीया के सूर्योदय काल में प्रातः स्नान करता है, भगवान विष्णु की पूजा तथा उनकी कथा का श्रवण करता है, वह मोक्ष पाता है. जो उस दिन श्री मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए दान करता है, उसका वह पुण्य कर्म भगवान की आज्ञा से अक्षय फल देता है. वैशाख मास की पवित्र तिथियों में शुक्ल पक्ष की द्वादशी समस्त पाप -राशि का विनाश करने वाली मानी जाती है.

शुक्ल द्वादशी को जो अन्न का दान दिया जाता है, उसके एक-एक दाने में कोटि-कोटि ब्राह्मणों के भोजन कराने का पुण्य प्राप्त होता है. शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन जो भक्त भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए जागरण करता है, वह जीवनमुक्त होता है. जो भक्त वैशाख की द्वादशी तिथि को तुलसी के कोमल दलों से भगवान विष्णु की पूजा करता है, वह समुचे कुल का उद्धार करके बैकुण्ड लोक प्राप्त करने का अधिकारी बनता है. जो मानव त्रयोदशी तिथि को दूध-दही,शक्कर, घी और शुद्ध मधु आदि पंचामृतों से भगवान की प्रसन्नता के लिए उनकी पूजा करता है तथा जो पंचामृत से भक्तिपूर्वक श्रीहरि को स्नान कराता है, वह संपूर्ण कुल का उद्धार करके भगवान विष्णु के लोक को प्राप्त होता है. जो भक्त भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सायंकाल उन्हें शर्बत निवेदित करता है, वह अपने पुराने पापों से शीघ्र मुक्त हो जाता है. वैशाख शुक्ल द्वादशी के दिन भक्त जो कुछ पुण्य करता है, वह अक्षय फल देने वाला होता है. अक्षय तृतीया के दिन ही ‘सुदामा ’ नामक गरीब ब्राह्मण अपने बाल सखा और द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण से मिलने के लिए जाता है. बिना उनके मांगे हुए उसके बाल सखा द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को द्वारका नगरी के द्वारकाधीश जैसा राजमहल का अलौकिक सुख प्रदान कर दिया. सनातनी मान्यता के आधार पर अक्षय तृतीया के दिन अपने स्वर्गीय आत्मीय जनों की आत्मा की चिर शांति के लिए नाना प्रकार के फल, फूल आदि का दान जो भक्त करता है, उसका प्रत्यक्ष लाभ उसको वर्तमान में ही उसके जीवनकाल में प्राप्त होता है. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु को चने की दाल का भोग लगाना हरप्रकार से श्रेयस्कर माना जाता है.

अक्षय तृतीया के दिन जो कोई भी निष्ठापूर्वक इस व्रत का पालन करता है, वह संपत्तिवान बनता है और आजीवन तन,मन और धन से सुखी रहता है. ओडिशा के घर-घर में अक्षय तृतीया का अति विशिष्ट सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, लौकिक एवं सांकेतिक महत्त्व देखने को मिलता है. बैकुण्ठ पुरी धाम में तो प्रतिवर्ष अक्षय तृतीय के दिन से ही जगन्नाथजी की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को अनुष्ठित होनेवाली उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए उनके नये रथों के निर्माण का पवित्र कार्य आरंभ होता है. श्रीमंदिर में विराजमान उनकी विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा उसी दिन से पुरी धाम के पवित्र एवं अति शीतल चंदन तालाब में अपराह्न बेला से आरंभ होती है. अक्षय तृतीया के दिन से ही ओडिशा में किसान अपने खेतों में नई फसल की बोआई का शुभारंभ करते हैं.

प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के दिन से ही ओडिशा में मौसम में बदलाव का सिलसिला आरंभ हो जाता है जो प्रकृति और मानव के अटूट संबंधों को प्रदर्शित करता है. अक्षय तृतीया के दिन से ही पूरे ओडिशा प्रदेश में खुशी का आनंदमय माहौल आरंभ हो जाता है. नये गृह का निर्माण कार्य, नये घरों में गृह-प्रवेश, नई दुकानों का श्रीगणेश, नये कारोबार का आरंभ, आपसी नये मेल-मिलाप का आरंभ, विवाह-शादी आदि के लिए नये रिश्तों की शुभ बातचीत, ब्रह्मचारियों का जनेऊ संस्कार आदि पूरी रीति-नीति के साथ अक्षय तृतीया के पावन दिवस से ही आरंभ होता है. सच कहा जाय तो पुरी धाम में अक्षयतृतीय मनाये जाने की तमाम तैयारियां आरंभ हो चुकी है. देखना अब शेष है कि 26 अप्रैल को महाप्रभु जगन्नाथ किस प्रकार अपनी लीलाओं से अक्षय तृतीया अनुष्ठित कराते हैं और 23 जून, 2020 को अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा की सुदीर्घ परम्परा को जीवित रखते हैं?

 

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