गुरू गोविन्द दोऊ खड़े,
काके लागूं पांय,
बलिहारी गुरू अपने,
गोविन्द दियो बताय।।
अब कापी-किताब डिजिटल हुए,
गुगल गुरु बिन पांय,
बच्चा दर-दर भटके,
काके लागूं पांय।।
संस्कार डिजिटल में पढ़े,
डांट-फटकार पढ़े शब्दार्थ,
प्यार-मोहब्तत गुगल में छिपा,
काके लागूं पांय।।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े,
काके लागूं पांय,
बलिहारी गुरू अपने,
गोविन्द दियो बताय।।
शिक्षक दिवस पर कोलाज बने,
नाता-वाता फोटो से जुड़ जाये,
विडियो में सेलिब्रेशन मने,
काके लागूं पांय।।
आशीर्वाद डिजिटल हुआ,
भाया तो ठेंगा पाया,
नहीं तो उल्टा घुमाया,
इमोजी नचाकर मन भाया।।
गुगल गुरु बिन पांय,
काके लागूं पांय।।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े,
काके लागूं पांय,
बलिहारी गुरू अपने,
गोविन्द दियो बताय।।
तकनीकी के पाठ में,
चेला हो गये चिन्नी,
साउंड-कैमरा लॉककर,
खूब पढ़ावे पाठ।।
गुगल गुरु बिन पांय,
काके लागूं पांय।।
गुणा-गणित की पद्धति गयी,
कलकुलेटर करे हिसाब,
सुलेखनी सुंदर भयी,
फंट बदलकर करे बात।।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े,
काके लागूं पांय,
बलिहारी गुरू अपने,
गोविन्द दियो बताय।।
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर