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भारतीय मूल के कलाकारों ने बिखेरे लोक संस्कृति के कई रंग

  • पूर्वोत्तर भारत व पूर्वांचल की प्रस्तुतियां भी सराही गई।

कुशीनगर। कुशीनगर के जोगिया जनेबी पट्टी गांव में आयोजित दो दिवसीय लोकरंग महोत्सव 2024 में देशी विदेशी लोककला व संस्कृति के अनेकों रंग देखने को मिले। देर रात सोमवार को मुक्ताकाशी मंच पर सूरीनाम व नीदरलैंड से आए भोजपुरी गायक राजमोहन, रैपर रग्गा मेन्नो, सोंदर व किशन हीरा तथा वरुण नंदा के साथ किन्नर समाज की रुबी नायक, वैशाली, जमुनी व माला नायक ने नृत्य करते सोहर गाया तो पुरातन लोक संस्कृति जीवंत हो उठी। लोग भावविभोर हो उठे। पूर्वोत्तर भारत के सिक्किम व असम की मंडली ने नालबारी, भोरताल, कोडा डांस, मारूनी नृत्य का लोगों ने लुत्फ उठाया। दोनों प्रस्तुतियों ने भारतीय लोक संस्कृति की समृद्ध विरासत की अनुभूति कराई।

सिवान जीरादेई बिहार की परिवर्तन रंग मंडली ने ‘दगा हो गए बालम’ नाटक का मंचन किया। जिसके माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। इसका निर्देशन आशुतोष मिश्रा ने किया। विष्णु कुमार मांझी, आकाश कुमार,रोजादीन आलम, डोमा राम, साहिल कुमार, पीयूष सिंह, संजना कुमारी, दिव्या कुमारी, अंशू आदि ने अपनी अपनी भूमिकाएं निभाईं।
अंत में लोकरंग सांस्कृतिक समिति के अध्यक्ष सुभाष चंद्र कुशवाहा ने आयोजन के 17 वर्ष की विकास यात्रा को बताया। कहा कि क्षेत्रीय लोगों का सहयोग हमारी पूंजी है। देशी विदेशी लोक कलाकारों के आने से हमारा उत्साह बढ़ता है। इस अवसर पर सहायक प्रोफेसर कोलकाता डा. आशा सिंह, प्रो. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, शोध छात्र राहुल मौर्य व नरेंद्र शर्मा, गांव के लोग की सह संपादक अपर्णा आदि ने भी संबोधित किया। संचालन प्रो. रामजी यादव ने किया। नितांत सिंह, विष्णुदेव राय, भुनेश्वर राय, इसरायल अंसारी, मंजूर अहमद, संजय कुशवाहा आदि लोक रंग सांस्कृतिक समिति के लोग मौजूद रहे।

लोक व संस्कृति एक दूसरे की पूरक
लोक संस्कृति के समावेशी तत्व विषयक विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नीरज खरे ने कहा कि लोक व संस्कृति एक दूसरे के पूरक हैं। इनके सम्मेलन से जन संस्कृति का प्रदुर्भाव होता है। व्यवसायिक सोच ने समाज का बड़ा नुकसान किया है। नव पूंजीवादी सोच सामूहिकता की विरोधी है। इससे परिवार व समाज में विघटन बढ़ता है। संस्कृतियों के संरक्षण में महिला की भूमिका महत्वपूर्ण है। नारी को सशक्त करके कई समस्याएं हल हो सकती हैं। महिला शिक्षा को बढ़ाना जरुरी है। ग्रामीण भारत कृषि पर आधारित भारत है। जो सच्चे अर्थों में जन संस्कृति का वाहक है।
साभार – हिस

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