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भारत का सबसे पुराना जलपोत प्रहरी है फॉल्स प्वाइंट लाइटहाउस

  •  केंद्रापड़ा जिले में स्थित यह ऐतिहासिक स्थल कभी था समुद्री व्यापार का मुख्य केंद्र

  • ओडिशा अकाल राहत का बना था जीवनदायी बंदरगाह

  • फॉल्स प्वाइंट आज भी समुद्री यात्रियों की राह कर रहा है रोशन

  • बत्तीघर गांव में स्थित ऐतिहासिक स्थल बना पर्यटक आकर्षण

केंद्रापड़ा। ओडिशा के केंद्रापड़ा जिले के बत्तीघर गांव में स्थित फॉल्स प्वाइंट लाइटहाउस आज भी भारत की समुद्री विरासत की गौरवगाथा सुनाता है। करीब दो सौ साल पहले 1838 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनवाया गया यह लाइटहाउस देश का सबसे पुराना चालू लाइटहाउस है, जो आज भी समुद्री यात्रियों के लिए आशा की किरण बना हुआ है।

यह लाइटहाउस समुद्र से लगभग दो किलोमीटर अंदर बसा है, जिससे यह तेज मानसूनी हवाओं से सुरक्षित रहता है। हर 20 सेकंड में दो सफेद किरणें छोड़ने वाला यह लाइटहाउस आज भी 40 किलोमीटर दूर से दिखाई देता है।

नाम जो बना नाविकों के लिए चेतावनी

‘फॉल्स प्वाइंट’ नाम का अर्थ है – भ्रामक बिंदु। अंग्रेजों ने इसे यह नाम इसलिए दिया क्योंकि पुराने समय में कई जहाज इसे प्वाइंट पालमायर्स समझकर भ्रमित हो जाते थे और महानदी को हुगली समझ बैठते थे। इस भ्रम को दूर करने के लिए इस स्थान को ‘फॉल्स प्वाइंट’ कहा जाने लगा।

ऐतिहासिक वास्तु और तकनीकी विकास

लाइटहाउस की मीनारनुमा संरचना को बाराबाटी किले से लाए गए लेटराइट पत्थरों से बनाया गया है। शुरुआत में इसमें नारियल तेल की बाती जलाकर रोशनी दी जाती थी। बाद में 1879 में छह बातियों वाली कैपिलरी लाइट और 1931 में पेट्रोलियम वेपर लैंप लगाया गया। आज यह अत्याधुनिक तकनीक से संचालित हो रहा है और संचालन की जिम्मेदारी डायरेक्टरेट जनरल ऑफ लाइटहाउस एंड लाइटशिप्स के पास है।

व्यापारिक बंदरगाह के रूप में चमका था फॉल्स प्वाइंट

1860 में जब यह बंदरगाह चालू हुआ, तब इसे हुगली और बॉम्बे के बीच का सबसे सुरक्षित पोर्ट माना गया। कटक से नहर मार्ग द्वारा जुड़ने के बाद यहां से चावल, तिलहन और अन्य सामग्रियां फ्रांस, मॉरीशस और अन्य उपनिवेशों को भेजी जाती थीं।

1866 के भीषण अकाल में बना था जीवन रेखा

जब 1866 में ओडिशा में भीषण अकाल पड़ा, तब फॉल्स प्वाइंट बंदरगाह एकमात्र ऐसा स्थान था जहां राहत सामग्री सुरक्षित रूप से पहुंचाई जा सकती थी। यह बंदरगाह और लाइटहाउस उस समय हजारों लोगों की जान बचाने में मददगार साबित हुए थे।

धीरे-धीरे गुमनामी में गया बंदरगाह

1872 में चांदबाली पोर्ट, 1885 में कोस्ट कैनाल और 1899 में रेलवे लाइन बनने के बाद फॉल्स प्वाइंट का महत्त्व धीरे-धीरे घटने लगा। समुद्री तूफानों और मिट्टी जमने की समस्या ने भी इसके संचालन को प्रभावित किया। लेकिन इसके बावजूद, लाइटहाउस आज भी पूरी मजबूती से खड़ा है।

विरासत स्थल के रूप में नई पहचान

आज यह लाइटहाउस न सिर्फ पारादीप पोर्ट के आसपास नौवहन में मदद करता है, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचान पा चुका है। भारत सरकार के पोत, परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय द्वारा इसे ‘इंडियन लाइटहाउस फेस्टिवल’ के तहत विरासत पर्यटन में शामिल किया गया है।

फॉल्स प्वाइंट अब पर्यटकों के लिए इतिहास, वास्तुकला और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम बन चुका है – जहां समय के साथ लाइटहाउस की रोशनी भले बदली हो, पर इसका महत्व अब भी पहले जैसा है।

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