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शिक्षकों के तबादले पर सांसद-विधायकों को कोटा पर सियासी घमासान

  • विपक्ष ने फैसले को बताया भ्रष्टाचार को बढ़ावा

  • सरकार बोली—जनप्रतिनिधियों की शिकायतों के समाधान के लिए कदम

  • तबादलों में पात्रता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने का दावा

भुवनेश्वर। ओडिशा सरकार के उस हालिया फैसले ने राज्य में राजनीतिक बहस छेड़ दी है, जिसमें सांसदों  और विधायकों को हर साल अपने जिले में 15 स्कूल शिक्षकों के तबादले की अनुशंसा करने का अधिकार दिया गया है। सरकार के इस कदम को लेकर एक ओर जहां शिक्षक संगठन ने स्वागत किया है, वहीं विपक्षी दलों और शिक्षा विशेषज्ञों ने इसके दूरगामी दुष्परिणामों को लेकर गहरी चिंता जताई है।

इस फैसले के आलोचकों का कहना है कि इससे शिक्षा व्यवस्था में राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार बढ़ने का खतरा है। उनका मानना है कि तबादलों में पारदर्शिता बनाए रखना पहले से ही एक चुनौती है और इस तरह के कोटा से हालात और जटिल हो सकते हैं।

बीजू जनता दल (बीजद) और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इस निर्णय की तीखी आलोचना की है। बीजद विधायक शरदा प्रसन्न जेना ने कहा कि हम हमेशा कहते आए हैं कि शिक्षा क्षेत्र एक ‘मनुष्य निर्माण की प्रयोगशाला’ है और उसमें किसी तरह की राजनीतिक संकीर्णता नहीं होनी चाहिए। 15 तबादलों की सीमा से जनप्रतिनिधियों के सामने और अधिक समस्याएं खड़ी होंगी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश कुमार राउतराय ने भी इसी तर्ज़ पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि इसमें पारदर्शिता बनी रह सकती है। शिक्षा और स्वास्थ्य विभागों को पूरी तरह से स्वतंत्र रखना चाहिए। जनप्रतिनिधियों को शिक्षकों के तबादले की अनुशंसा करने देना सही निर्णय नहीं है।

शिक्षकों के संगठन ने जताई मिश्रित प्रतिक्रिया

ओडिशा शिक्षक संघ ने इस निर्णय का आंशिक रूप से समर्थन करते हुए कहा कि इससे स्थानीय स्तर पर शिक्षकों की परेशानियों का समाधान हो सकेगा। हालांकि उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यदि तबादलों की प्रक्रिया राज्य स्तर पर केंद्रीकृत की जाए तो यह और अधिक लाभकारी हो सकती है। संघ के प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि एक निर्वाचन क्षेत्र में प्रति वर्ष 15 शिक्षकों के तबादले की सीमा शिक्षकों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हो सकती है।

हर वर्ष 15 मई से 15 जून तक देनी होगी अनुशंसा सूची

सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, सांसदों और विधायकों को 15 मई से 15 जून के बीच अपने जिले के जिला कलेक्टरों को अनुशंसा सूची सौंपनी होगी। वहीं, राज्यसभा सांसदों को यह सूची माध्यमिक शिक्षा निदेशालय को भेजनी होगी।

शिक्षा मंत्री ने किया बचाव

विद्यालय एवं जन शिक्षा मंत्री नित्यनंद गोंड ने इस नीति का बचाव करते हुए कहा कि यह निर्णय जनप्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए जनगण की शिकायतों को सुलझाने के लिए लिया गया है।

उन्होंने कहा कि यहां कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा। तबादले केवल पात्रता के आधार पर ही होंगे। आखिर शिक्षक क्यों किसी को रिश्वत देंगे? यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रहेगी।

पूर्व में मुख्य सचिव ने दी थी चेतावनी

गौरतलब है कि नवंबर 2023 में राज्य के मुख्य सचिव मनोज आहूजा ने तबादलों में बाहरी दबाव और अनुचित हस्तक्षेप को लेकर अधिकारियों को चेतावनी दी थी। उन्होंने स्पष्ट किया था कि यदि कोई अधिकारी तबादला प्रक्रिया में नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

चुनावी रणनीति से जोड़कर देख रही है विपक्ष

सूत्रों के अनुसार, 2024 के आम चुनावों से पहले बीजद सरकार ने सांसदों और विधायकों को 10 शिक्षकों के तबादले की अनुशंसा का अधिकार दिया था, जिसे तब विपक्ष ने चुनावी रणनीति और शिक्षकों को प्रभावित करने की कोशिश के रूप में देखा था। अब नई सरकार ने उस कोटे को 15 तक बढ़ा दिया है, जिससे यह बहस फिर तेज हो गई है कि क्या शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में राजनीतिक दखल उचित है।

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