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BHUBANESHWAR

पिता दिवस पर काव्य गोष्ठी में श्रोताओं की आंखें हुईं नम

  • पिता की करुण अरदास ने मौजूदा परिस्थितों से रू-ब-रू कराया

भुवनेश्वर। पिता दिवस के अवसर पर उत्कल अनुज वाचनालय में विशेष काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान हिंदी व ओड़िया के 10 कवियों ने अपनी मौलिक कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कवि रामकिशोर शर्मा की करुण रस की कविता “पिता की करुण अरदास” ने कवि एवं श्रोताओं की आंखें नम कर दी। इस कविता में पिता अपने बेटे से शादी के बाद बनी दूरियों, बदलाव, रिश्ते-नाते, अपना-बेगाना तथा नौकरी के नाम पर पलयान को लेकर अरदास करता है, जिससे हर पक्ति करुणामय हो जाती है। अंतिम अवस्था में पिता को बेटे की बचपन की यादें सांसों को जोड़े रखती। शर्मा की कविता की अंतिम पंक्तियां – तू गया विदेश नौकरी करने, मुझे पता नहीं था, तू रम जायेगा। रुकती स्वांसे आ जाती हैं, जब सुनता हूं तू आ जायेगा…श्रोताओं के आंखों को नम कर देती है।

शादी से पहले मेरा था, अब कुछ कुछ मेरा लगता है,
मैं चलता तेरी राहों पर, फिर भी न मुझे तू मिलता है,
मैं बदला, या तू बदला , पर बदला बदला लगता है।।
मेरा नाती तेरा बेटा है, मेरी नातिन तेरी बेटी है
बहु मेरी तेरी पत्नी, मेरी पत्नी तेरी मम्मी है
मेरे घर का हर कोना मुझ को, क्यों बेगाना लगता है
तू गया विदेश नौकरी करने , मुझे पता नही था, तू रम जायगा
रुकती स्वांसे आ जाती हैं, जब सुनता हूं तू आ जायगा
भीड़ भरा तेरा शहर मेरे एकाकी पन को ठगता है ।।

ठीक इसी तरह से कवि विक्रमादित्य सिंह की कविता ने माता-पिता के प्रति अटूट श्रद्धा सम्मान वाली पुरातन परंपरा को बनाए रखने का युवाओं से आवाहन किया।

उनकी यह पंक्तियां ने श्रोताओं का मन अपने गांव की मिट्टी की ओर खींच ले गयीं।

पुरखों की हवेली बेच कर, दर बदर न भटका करो
सारी दुनिया घूम ले, पर एक पैर गांव में रखा करो
काल भी तेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकता
मां पिता के चरणों में, अपना सिर रखा करो।

कवि आशीष कुमार साह की कविता “अपने घर के प्रति वफादार हो गया हूं मैं, आजकल जिम्मेदार नागरिक हो गया हूं मैं” ने पिता के चले जाने के बाद, पुत्र किस तरह जिम्मेवारी निभाता, इसका सटीक एहसास करा दिया। प्रो डॉ विद्युत प्रभा गंतायत की कविता “तेरी चौखट पर” ने भारतीय परिवारों में भावनात्मक लगाव, जुड़ाव, मान मर्यादायों को दिलों में उतार दिया।

कवि किशन खंडेलवाल के हास्य, व्यंग, विनोद भरे सफल संचालन में मुरारी लाल लढानिया, सुधीर कुमार सुमन, कविता गुप्ता, ओड़िया कवि नमिता दास, निशित बोस आदि के गीत, गजल कविताओं ने श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। किशन खंडेलवाल की कविता “पतंग” से श्रोता हंसी से लोटपोट हो गए।

कवि सम्मेलन के आरंभ में राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित विशेष शिक्षाविद एवं जगन्नाथ भक्त अशोक कुमार पाण्डेय ने महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की रोचक जानकारी बहुत ही सुंदर भाषा शैली में दी। वाचनालय के मुख्य संरक्षक सुभाष भुरा ने पुणे से पधारी कवि गीतकार, चित्रकार, मूर्तिकार नमिता दास को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।

इस मौके पर विशेष अतिथि के रूप में नालको को पूर्व कार्यकारी निदेशक नरेंद्र जैन की गरिमामय उपस्थिति रही।

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