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ललक करती सवाल, मैं कौन हूं….!!!

मैं कौन हूं,
खुद को तलाशता हूं,
पत्थरों पर तराशता हूं,
मैं कौन हूं।।

जिंदगी की राह पर बिखरे,
पत्थरों ने चलना सिखाया,
हर चुनौतियों ने मुझे
परिस्थितियां चीरना सिखाया।।

मैं कौन हूं,
खुद को तलाशता हूं,
पत्थरों पर तराशता हूं,
मैं कौन हूं।।

जब-जब खुदको तलाशा,
कुछ खास नहीं पाया,
जब-जब खुदको तरासा,
कुछ नायाब नहीं पाया।।

मैं कौन हूं,
खुद को तलाशता हूं,
पत्थरों पर तराशता हूं,
मैं कौन हूं।।

ललक ललकारती गई,
खुदको तलाशती गई,
पत्थरों पर तरसती गई,
वह खुद लहलहाती गई।।

मैं कौन हूं,
खुद को तलाशता हूं,
पत्थरों पर तराशता हूं,
मैं कौन हूं।।

रिश्तों के बाजार में,
अपने संग बेगाने भी पाये,
कांटों में जाकर छुपी
खुशियां आखिर ढूंढ ही पाये।।

मैं कौन हूं,
खुद को तलाशता हूं,
पत्थर पर तराशता हूं,
मैं कौन हूं।।

ना सफर रूका,
ना मैं थका,
चुनौतियों को चीरकर
मंजिल का दरवाजा भी पाया।।

फिर भी
ललक की सवाल वही,
मैं कौन हूं,
खुद को तलाशता हूं,
पत्थर पर तराशता हूं,
मैं कौन हूं।।

लेखक – हेमन्त कुमार तिवारी

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