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मातृ और पितृ सत्ता में संतुलन के बिना नहीं बन सकता सुसंस्कृत समाज

  • भक्त से अधिक देवी मां की चाह – व्यास श्रीकांत शर्मा

भुवनेश्वर। राजधानी स्थित श्रीराम मंदिर में मामस भुवनेश्वर के सौजन्य से चल रही देवी भागवत कथा में व्यासपीठ से पण्डित श्रीकांत शर्मा ने श्रोताओं को सावित्री और सत्यवान की रोचक कथा सुनाई। कथाक्रम में उन्होंने तुलसी-शालीग्राम की कथा सुनाई। लक्ष्मी-सरस्वती की कथा सुनाई। व्यासजी ने बताया कि मनुष्य दुखी है, इसलिए सुख की कामना करता है। क्षणिक सुख मिल भी जाए, पर सामयिक सुख स्थिर नहीं रहता। अवछिन्न शाश्वत सुख तो ब्रह्म संबंध से ही हो सकता है, पर जो दुर्भाग्यशाली होते हैं, भजन नहीं कर पाते, केवल दुख सागर में डूबे रहते हैं। इसलिए कलयुग के आगमन के साथ श्रीमद् देवी भागवत शास्त्र प्रगट हुआ।

उसमें कहा गया है जीव भजन करने में असमर्थ है, तो उन्हें पुकार या कथा श्रवण करे।

 आपको समझ आयेगा मां भगवती राजराजेश्वरी बुला रही हैं। आप से अधिक करोड़ गुणा आपको पाने की आकांक्ष से वह पुकार रही हैं। सर्वे भूत मनोहरं-वे बीणा धारी हैं। तुम असमर्थ हो, वो पुकार रही हैं मिलन के लिए।

  || कंवा दयालु शरणम् व्रजे म||

ऐसा कौन दयालु है करूणामय को छोड़ कौन दुख दूर कर सकता है। मानव जहां प्रेम मिले वहां रहना चाहता है, पर मां का स्वभाव ऐसा नहीं है, वे तो प्रेम जीव मात्र से करती ही हैं। जितना गंभीर प्रेम होगा, उतना वो प्रेम करेंगी। ये यथा मां प्रपद्यंते।

महान भक्तों के रहते भी भगवान क्षुद्र भक्तों की उपेक्षा नहीं करते। इसलिए भक्तवत्सल कहलाते हैं। मदन्यत्ते न जानंति नाहं तेभ्यो मनागपि। वे मेरे अतिरिक्त किसी को नहीं जानते। मैं भी उनके सिवा अन्य को नहीं जानता। “ना मैं देखूं और को नाथ तोय देखन देवू”,

मैं उनका वे हमारे। शक्ति स्वरूपा मां जब आवश्यकता समझती है, तब आशीर्वाद देती है, कृपा की दृष्टि रखती है, लेकिन अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ रणचंडी बन कर दोषियों को दंड देने के लिए भी तत्पर रहती है। अगर प्रकृतिक में शक्ति का संचार ना हो, तो सभी प्रकृतिक प्रदत्त पदार्थ निर्जीव समझ में आने लगेंगे और उनका उपयोग नहीं हो सकेगा। सजीवता के लिए शक्ति आवश्यक हैं। जिस की संचालिका मां भगवती हैं। आज प्रीत सत्तात्मकता की बात की जा रही है। परंतु सनातन धर्म हमेशा से मातृ सत्ता और पितृ सत्ता के संतुलन की बात करता रहा है। जब तक इन दोनों सत्ताओ में संतुलन नहीं आएगा, हमारा समाज एक सुसंस्कृत समाज नहीं बन सकता। फिर भी परिवार में संतुलन के लिए माता का विशेष योगदान होना आवश्यक है। आज भी देखा जाता है, जिस परिवार में माता सुसंस्कृत और विद्वान होती है, वहां की संतानें भी सदाचार की ओर अग्रसर रहती हैं और प्रतिभाशाली होती हैं। बालव्यास ने मामस भुवनेश्वर की अध्यक्ष नीलम अग्रवाल और उनकी पूरी टीम को भुवनेश्वर में देवी भागवत कराने के लिए उनको आशीर्वाद दिया और कथा को विराम देने से पूर्व उन्होंने सभी से गायत्री मंत्र जपने का निवेदन किया।

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