भुवनेश्वर. ब्रह्मगिरि स्थित भगवान अलारनाथ के मंदिर में दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ इन दिनों उमड़ रही है. भगवान अलारनाथ मंदिर का निर्माण नौवीं सदी में राजा चतुर्थभानुदेव ने कराया था, जो स्वयं दक्षिण भारतीय वैष्वभक्त थे. यह मंदिर प्रकृति के उन्मुक्त तथा सुषमायुक्त वातावरण में अवस्थित है. श्री जगन्नाथ मंदिर के देवस्नान मण्डप पर 14 जून को भगवान जगन्नाथ की देवस्नान पूर्णिमा पूरे आध्यात्मिक परिवेश में संपन्न हुई. चतुर्धा देव विग्रहों को 108 कलश पवित्र तथा शीतल जल से मलमल कर महास्नान कराया गया. अपनी मानवीय लीला के तहत महास्नान के उपरांत चतुर्धा देवविग्रह बीमार पड़ गये और उन्हें अगले 15 दिनों के लिए एकांत उपचार के लिए अपने बीमार कक्ष में ले जाया गया, जहां पर उनका आर्युर्वेदसम्मत उपचार प्रतिदिन चल रहा है. उनके शरीर पर फुलरी के तेल लगाया जा रहा है. श्रीमंदिर का कपाट 15 जून से आगामी 15 दिनों के लिए भक्तों के लिए बन्द कर दिया गया. उस दौरान पुरी से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ के रुप में भगवान जगन्नाथ के दर्शन हो रहा है. सत्युग में स्वयं ब्रह्माजी आकर वहां पर प्रतिदिन तपस्या किया करते थे. दक्षिण भारत में आज भी विष्णुभक्त चतुर्भुज नारायण के रुप में उनकी पूजा करते हैं. ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ मंदिर की देवमूर्ति काले पत्थर की बनी है, जो साढ़े पांच फीट की है. 1510 ई. में महाप्रभु चैतन्यजी स्वयं वहां आकर भगवान अलारनाथ के दर्शन किये थे. मंदिर में भगवान अलारनाथ को खीर का भोग प्रतिदिन निवेदित होता है, जो काफी स्वादिष्ट होता है और उसकी मान्यात पुरी धाम के श्री जगन्नाथ मंदिर जैसी ही है. पिछले कई वर्षों से ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ मंदिर की साफ-सफाई आदि का जिम्मा स्वयं ओडिशा सरकार ने ले रखी है. यह भी देखने को मिलता है कि ओडिशा के बड़े-बुजुर्ग जगन्नाथभक्त उन 15 दिनों में कम से कम एकबार ब्रह्मगिरि जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन अवश्य करते हैं. भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा आगामी पहली जुलाई को है, जिसमें रथारुढ़ महाबाहु श्री जगन्नाथ के दर्शनकर समस्त जगन्नाथ भक्त अपने मानव-जीवन को सार्थक बनाएंगे.
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