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लगभग 400 परिवारों को अध्ययन में शामिल किया जाएगा
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भुवनेश्वर और परिधीय क्षेत्रों में एक पायलट परियोजना के रूप में होगा शुरू
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10 स्नेक हेल्पलाइन स्वयंसेवकों को एम्स के विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षित किया गया
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राज्य में प्रति वर्ष लगभग 800 सर्पदंश से होती हैं मौतें
भुवनेश्वर. ओडिशा में सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्या में तेजी देखी जा रही है. यह प्रति वर्ष लगभग 800 मौतों के साथ सर्पदंश से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है. सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा होने के नाते, स्थिति को कम करने और सुधारने के लिए आम लोगों की भागीदारी महत्वपूर्ण है. इस संदर्भ में एम्स भुवनेश्वर ओडिशा में सर्पदंश की घटनाओं को कम करने के लक्ष्य के साथ एक शोध अध्ययन कर रहा है. एम्स भुवनेश्वर का फोरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग मौजूदा मौसम में मानव-सांप संघर्ष से निपटने के लिए यह वैज्ञानिक अध्ययन कर रहा है.
फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर व एमडी डॉ सुदीप्त रंजन सिंह ने कहा कि यह प्रायोगिक अध्ययन राज्यभर में किए जाने वाले अनुसंधान की प्रस्तावित परियोजना का हिस्सा है. शुरुआत में इसे भुवनेश्वर और इसके आसपास के इलाकों में लागू किया जाएगा. शोध अध्ययन में लगभग 400 परिवारों को शामिल किया जाएगा. अध्ययन भुवनेश्वर और आसपास के क्षेत्रों में आयोजित किया जाएगा. इस अध्ययन का शीर्षक है “जिस घर से सांप को बचाया गया है, वहां के निवासियों में प्राथमिक उपचार, उपचार और सर्पदंश की रोकथाम पर ज्ञान, दृष्टिकोण और अभ्यास (केएपी) का एक पार अनुभागीय अध्ययन. डॉ सिंह अध्ययन के अन्वेषक भी हैं तथा डॉ. मनोज कुमार मोहंती, प्रोफेसर और विभाग के विभागाध्यक्ष सह-अन्वेषक हैं. बताया गया है कि यह एक क्रॉस-सेक्शनल अवलोकन अध्ययन है, जो ओडिशा में सांपों के बचाव और पुनर्वास में लगे एक अधिकृत पंजीकृत संगठन “स्नेक हेल्पलाइन” के स्वयंसेवकों के सहयोग से आयोजित किया जाएगा. सांप बचाव के स्वयंसेवक उन घरों के सदस्य से प्रश्नावली द्वारा क्षेत्र से डेटा एकत्र करेंगे, जहां से सांप के बचाव के लिए कॉल किया गया था. प्रश्नावलियां स्थानीय ओड़िया और अंग्रेजी भाषा में होंगी. यह अध्ययन अध्ययन समूह के बीच उचित प्राथमिक चिकित्सा पद्धति, प्रचलित वर्जनाओं, सांप के काटने के मामलों में स्वास्थ्य देखभाल की मांग और घरेलू परिसर में सांप के प्रवेश, प्रजनन और काटने या डंसने को कम करने के लिए निवारक अभ्यास के बारे में जागरूकता के स्तर का विश्लेषण करने में मदद करेगा.
इस अध्ययन के लिए सांप हेल्पलाइन के 10 स्वयंसेवकों को कल फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों द्वारा सैंपलिंग के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया गया था. नागरिकों से सांप, सर्पदंश, प्राथमिक उपचार, रोकथाम आदि पर सरल प्रश्न पूछे जाएंगे. नागरिकों से डेटा प्राप्त करने के बाद अध्ययन प्रतिभागियों को सांप और सर्पदंश के बारे में उनके ज्ञान में सुधार करने के लिए एक जागरूकता पत्रक भी सौंपा जाएगा.
हालांकि, अध्ययन को पहले मंजूरी दी गई थी, लेकिन कोविद-19 के प्रतिबंधों के कारण इसे शुरू नहीं किया जा सका. एम्स भुवनेश्वर की शोध टीम ने स्नेक हेल्पलाइन की मदद से अध्ययन के सभी नैतिक मानदंडों को अंतिम रूप दिया है. स्नेक हेल्पलाइन के महासचिव शुभेंदु मलिक अध्ययन के लिए अनुसंधान समन्वयक हैं.
इस पर अध्ययन के अन्वेषक डॉ. सुदीप्त रंजन सिंह ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने “स्नेक बाइट” को एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग घोषित किया है. यह ओडिशा में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है. इस हादसों से होने वाली मौतों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. हालांकि सर्पदंश के लिए निश्चित उपचार की उपलब्धता है, अधिकांश लोग पारंपरिक चिकित्सकों की मदद लेते हैं और देर से अस्पतालों में रिपोर्ट करते हैं. ऐसे और भी कई मुद्दे हैं जिनका समाधान किए जाने की जरूरत है. हालांकि, अस्पताल के लिए विभिन्न सड़क ब्लॉकों के संबंध में वैध शोध डेटा की कमी है. अध्ययन को इन कम चर्चित कठिनाइयों की पहचान करने और ओडिशा की स्थिति में सुधार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. डॉ. सिंह ने अध्ययन में भुवनेश्वर के नागरिकों का सहयोग भी मांगा है.
उल्लेखनीय है कि एम्स भुवनेश्वर ने स्नेक हेल्पलाइन के सहयोग से सर्पदंश पर लोगों की मदद के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन और वेबसाइट विकसित की है. एफएम एंड टी विभाग के मार्गदर्शन में ‘स्नेक हेल्पलाइन ऐप’ और एक गतिशील वेबसाइट लॉन्च की गई है.