भुवनेश्वर. आचार्य महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि जिनेश कुमार के सानिध्य में तथा तेरापंथ सभा के तत्वावधान में तप अभिनंदन का कार्य क्रम तेरापंथ भवन में आयोजित हुआ. इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति में तप का अध्यधिक महत्व है. यहां सत्ता से भी अधिक महत्व तप को दिया गया है. जिसका मनोबल मजबूत होता है, वही तपस्या कर सकता है. एक उपवास करना भी कठिन होता है, जहां आठ-आठ दिनों तक निराहार रहना बहुत ऊंची साधना है. मुनि ने आगे कहा कि तपस्या अध्यात्म की उज्ज्वल कहानी है. तप निर्धूम दीप शिखा है. तप जीवन की ज्योति है. तप से काया कुंदन होती है. तप से व्यक्ति सर्वव्याधियों से मुक्त होकर परम समाधि को प्राप्त होता है. आज के उपभोक्ता वादी युग में तपस्या अपने आपमें एक आश्चर्य से कम नहीं हैं. मुनि ने आगे कहा अध्यात्म साधना के चार स्वर्णिम सूत्र है. सम्यगज्ञान, सम्यग्र दर्शन, सम्पग चारित्र और सम्पग्रल. तप ज्ञान दर्शन, चारित्र के साथ जुड़ जाए, तो सोने में सुहागा जैसी कहावत चरितार्थ होती है. तप के साथ स्वाध्याय, ध्यान, जप का क्रम चलना चाहिए. तपस्या अनासक्ति की साधना है. खाघ पदार्थों के प्रति आशक्ति को छोड़ना ही सच्ची तपस्या है. मुनि ने आगे कहा तपस्या सामन्यतया चातुर्मास में होती है, लेकिन शेषकाल में बिन मौसम में तपस्या करना विशेष बात होती है. रोशन पुगलिया व अल्पना दूगड़ ने आठ दिनों की तपस्या कर के साहस का परिचय दिया. इस अवसर पर अखिल भारतीय तेरापंथ महासभा के अध्यक्ष मनसुख सेठिया, तेरापंथ सभा के अध्यक्ष बच्छराज बेताला, विशाल दूगड़ धनराज पुगलिया, सुजीत बोधरा व पुगलिया परिवार की सदस्यों ने तपस्या गीत के माध्यम से भावना प्रस्तुत की. तेरापंथ सभा के द्वारा तपस्वियों का स्मृति साहित्य के द्वारा सम्मान किया गया. इस अवसर पर कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता, जाजपुर, कूचबिहार आदि के लोग उपास्थित थे. मुनि कुणाल कुमार ने गीत किया प्रस्तुत किया. मुनि परमानंद ने कुशल संचालन किया.
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