-
21 जुलाई को चतुर्धा देवविग्रहों का होगा सोना वेष
-
22 को अधरपड़ा तथा 23 जुलाई को नीलाद्रि विजय
अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर
वैश्विक महामारी कोरोना की दूसरी लहर के कारण जिस प्रकार 2021 की भगवान श्री जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 12 जुलाई को एक करिश्माई रथयात्रा सिद्ध हुई, ठीक उसी प्रकार 20 जुलाई को पुरी में गुंडिचा मंदिर के सामने अनुष्ठित होनेवाली उनकी बाहुड़ा यात्रा के भी करिश्माई होने की अपेक्षा समस्त जगन्नाथ भक्तों को है, जिसमें भी श्रीमंदिर के लगभग 1500 सेवायतों का योगदान रहेगा. कुल सात दिनों तक गुंडिचा घर में विश्राम करने तथा गुंडिचा महोत्सव का आनन्द उठाकर भगवान जगन्नाथजी बाहुड़ा यात्रा कर श्रीमंदिर वापस लौटेंगे. बाहुड़ा यात्रा के दिन 20 जुलाई को गुंडिचा मंदिर में चतुर्धा देवविग्रहों की मंगल आरती होगी. मयलम होगा. तड़पलागी, रोसडा भोग होगा. अवकाश, सूर्यपूजा, द्वारपाल पूजा, शेषवेष आदि पूरे विधि-विधान से साथ संपन्न होगा. चतुर्धा देवविग्रहों को गोपालवल्लव भोग, जिसे खिचड़ी भोग भी कहते हैं, निवेदित होगा. उसके उपरांत देवविग्रहों को एक-एक कर पहण्डी विजय कराकर उनके सुनिश्चित रथों पर आरुढ़ किया जाएगा. उस दिन भगवान जगन्नाथ का दिव्य रुप लक्ष्मी-नारायण रुप होता है, जिसके दर्शन की लालसा समस्त जगन्नाथ भक्तों की रहती है. भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा दिव्य सिंहदेव अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में आकर तीनों रथों पर चंदन मिश्रित पवित्र जल छिड़ककर छेरापंहरा करेंगे. तीनों रथों पर नारियल की बनी सीढ़ियों को हटा दिया जाएगा. तीनों रथों तालध्वज, देवदलन तथा नंदिघोष को उनके अपने-अपने सुनिश्चित घोड़ों के साथ जोड़ दिया जाएगा. जय जगन्नाथ तथा हरिबोल के जयघोष के साथ बाहुड़ा यात्रा आरंभ होगी. श्रीमंदिर के सेवायतगण तीनों रथों को खींचकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के ठीक सामने लाकर खड़ा कर देंगे. रथ पर ही चतुर्धा देवविग्रहों का 21 जुलाई को सोना वेष होगा, जिसमें श्रीमंदिर रत्नभण्डार से कुल बारह हजार तोले के सोने के अनेक आभूषणों से, हीरे-ज्वाहरातों आदि से चतुर्धा देवविग्रों को नख से लेकर मस्तक तक सुशोभित किया जाएगा. दूरदर्शन ओड़िया तथा अन्य ओड़िया क्षेत्रीय चैनलों पर सोना वेष का सीधा प्रसारण किया जाएगा, जिसका अवलोकन समस्त जगन्नाथ भक्त कोरोना के कारण अपने घर से ही देखेंगे. 22 जुलाई को चतुर्धा देवविग्रहों का अधरपड़ा होगा. 23 जुलाई को नीलाद्रि विजय कराकर उन्हें पुनः उनके रत्नवेदी पर आरुढ़ कराया जाएगा. सबसे रोचक बात नीलाद्रि विजय की यह होती है कि तीन देवविग्रहों को देवी लक्ष्मीजी तो रत्नवेदी पर पुनः आरुढ़ होने की अनुमति तो दे देती हैं, लेकिन जगन्नाथजी को रोक देती हैं, क्योंकि जगन्नाथजी जब रथयात्रा पर गुंडिचा मंदिर गये थे, तो अपने बड़े भाई बलभद्रजी को, लाडली बहन सुभद्राजी को तथा सुदर्शन जी को साथ लेकर गये थे और उनको श्रीमंदिर में अकेले ही छोड़ दिये थे. गत 16 जुलाई को भी देवी लक्ष्मीजी जब जगन्नाथजी से मिलने के लिए गुंडिचा मंदिर गईं तो जगन्नाथजी के सेवायतगण उनको जगन्नाथजी से उन्हें मिलने नहीं दिये. इससे वह गुस्से में रहती हैं. कहते हैं कि जगन्नाथजी देवी लक्ष्मीजी को मनाने के लिए उन्हें रसगुल्ला खिलाकर ही उन्हें प्रसन्न करते हैं. ऐसी मान्यता है कि लगभग हजार सालों की भगवान जगन्नाथ के नवकलेवर की सुदीर्घ परम्परा है और नवकलेवर के आरंभ से ही नीलाद्रि विजय के दिन जगन्नाथजी द्वारा देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए रसगुल्ला भोग की भी परम्परा है, जो श्रीमंदिर में ही तैयार होता है. 23 जुलाई, 2021 से पुरी धाम के जगन्नाथ मंदिर के रत्नवेदी पर आरुढ़ होकर भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को पुनः नित्य दर्शन देंगे.