Home / National / युवा पीढ़ी को क्यों भार लग रहे हैं अपने माता-पिता? सोशल मीडिया पर तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं…

युवा पीढ़ी को क्यों भार लग रहे हैं अपने माता-पिता? सोशल मीडिया पर तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं…

देश में बढ़ते वृद्धाश्रमों की संख्या और युवाओं की अपने माता-पिता के प्रति बदलती स्वभाव बेहद चिंताजनक और दुःखद है। संयुक्त परिवार दिनों दिन सिकुड़ता जा रहा है। अगर ये कहा जाए कि संयुक्त परिवार की जगह हम दो हमारे दो ने ले लिया है, तो गलत नहीं होगा। यानी मियां बीबी और एक या दो बच्चों तक परिवार सिमटता जा रहा है। परिवार के सिकुड़ने के अनेकों कारण सामने आ रहे हैं, जिसमें नौकरी, रोजगार, बच्चों की शिक्षा आदि हैं, लेकिन एक कारण यह भी है कि माता-पिता की वृद्धावस्था में हो रही, शारिरीक परेशानियों को बच्चे निर्वहन करने में असमर्थ प्रतीत हो रहे हैं।
बदलते समय के साथ लोगों में, खासकर आज की युवा पीढ़ी में अपनों के प्रति दया, करुणा, प्रेम और रिश्ते निभाने की कर्तव्य परायणता लगातार बढ़ रही है। फिर चाहे वह किसी गरीब, भूखा या बेसहारा के प्रति दया-करुणा दिखाने की बात हो या फिर अपने माता-पिता के प्रति अटूट रिश्ते निभाने की बात हो। यह पढ़कर मन में कितनी प्रसन्नता हो रही है न? परंतु यह प्रसन्नता छणिक मात्र है। यह जानकर आप हैरान, परेशान और आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि ये जो दया, करुणा और प्रेम की गंगा बह रही है या बढ़ रही है, वह अधिकतर फेसबुक और व्हाट्सएप पर ही है। आज की युवा पीढ़ी अपने माता-पिता के साथ रहकर भी अपने माता पिता की उतनी सेवा नहीं कर पा रही है जितनी सेवा उन्हें करनी चाहिए। या जितनी सेवा के वे हकदार हैं। लेकिन अफसोस तब होता है जब अपने माता-पिता की अनदेखी करने वाले युवा ही फेसबुक और व्हाट्सएप पर माता-पिता की सेवा करने का ज्ञान लोगों को भर-भरकर देते हैं। लेकिन यह सब बेहद दुःखद और चिंताजनक है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता का स्थान तो ईश्वर तुल्य माना गया है, लेकिन अपनी यह संस्कृति और विरासत लुप्त होती जा रही है। हमारा समाज आखिर किस ओर जा रहा है ? युवा पीढ़ी को क्यों भार लग रहे हैं अपने माता-पिता? अपने देश में क्यों बृद्ध आश्रमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है?
कल तक हमारा समाज अपनी जिस संस्कृति का दंभ पूरे विश्व में भर रहा था, अपनी संयुक्त परिवार की गाथा गा रहा था, आज वहीं गली गली में वृद्ध आश्रम खुल रहे है। क्या यही हमारी प्रगति है ? या हमारी युवा पीढ़ी अपने कर्त्तव्य से विमुख हो रही है ? क्या हो गया है हमें की हम आज केवल स्वार्थी होकर रह गए है ? स्वार्थ के अलावा हमें कुछ दिखता नहीं है। हमारा करिअर, हमारी तरक्की, हमारे बच्चे। बस हम दो हमारे दो के अलावा हमारा अपना कोई नहीं ? अपनेपन का मीठा अहसास न जाने कहा लुप्त हो गया है। पड़ोसी, अपने सगे सम्बन्धी, सारे रिश्ते-नाते जैसे दिखावे के छलावे में कैद हो गए हैं। ये हम किस और जा रहे है ? क्या यह सही हो रहा है? श्रीराम, श्रवण कुमार, नचिकेता, भीष्म पितामह, परशुराम के आदर्शों पर चलने वाले युवाओं की संख्या ना के बराबर रह गयी है। वर्तमान समय में व्यक्तिगत सुख सुविधा और भौतिकता के प्रभाव में आकर लोग माता पिता को भगवान तो क्या एक इंसान का दर्जा भी नहीं दे रहे हैं। स्वार्थ और लोभ में अंधे होकर अपने कर्तव्य पथ से विमुख होते जा रहे हैं। जीवित रहने पर माता पिता की अनदेखी और उनके गुज़र जाने पर फेसबुक और व्हाट्सएप पर उनके तस्वीरों के साथ रोना, आंसू बहाना छलावा-दिखावा और पाखंड नहीं तो और क्या है? दुनिया वाले भले ही असलियत नहीं जानते हों लेकिन परिवार के बाकी सदस्य और रिश्तेदार तो सत्य से भली भांति परिचित होंगे। आज के युवाओ को अपनी असली संस्कृति की तरफ लौटने की जरूरत है। यह ध्यान रहे कि जो कर्म आज की तारीख में हम अपने माता पिता के साथ करेंगे उसी का फल हमें मिलेगा जब हम बृद्ध अवस्था में पहुंचेंगे। जिस प्रकार का बात व्यवहार और मान सम्मान हम अपने माता पिता के साथ आज करेंगे, वही सभ्यता हमारे बच्चे हमसे सीखेंगे और वैसा ही व्यवहार हमारे बच्चे हमारे साथ आगे चलकर करेंगे। इसलिए मन में करुणा भाव रखते हुए हमें अपने परिवार, माता पिता तथा समाज के जरूरत मंद लोगों की सेवा पूरी निष्ठा से करनी है। यह फेसबुक और व्हाट्सएप पर दिखाने वाला नहीं होंना चाहिए। समय ऐसा चल रहा है कि बगल में ही माता पिता या भाई बंधु रहते हैं लेकिन हम उनके पास व्यक्तिगत रूप से नहीं पहुंचकर सारे कर्तव्य पालन फेसबुक और व्हाट्सएप पर ही कर रहे हैं। यह चिंता का विषय है। जो माता पिता हमारे पालन पोषण में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं वही माता-पिता छोटी-छोटी चीजों के लिए तरसते रहें तो यह हमारे लिए शर्म और चिंता की बात होनी चाहिए। समय परिवर्तनशील है। यह हम सब जानते हैं फिर भी वास्तविकता से मुंह मोड़ लेते हैं। जिस प्रकार का कर्त्तव्य पालन आज हमलोग अपने माता पिता के साथ करेंगे, वहीं चीज हमारे बच्चे सीखेंगे। और बच्चे जो आज हमसे सीखेंगे वही हमारे बुढ़ापे में हमारे साथ करेंगे। पैसा तो हाथ का मैल है। आज है कल नहीं भी रह सकता है। लेकिन संस्कार और सभ्यता वह पूंजी है जो अच्छाई के लिए जितना खर्च होगा वह जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी रहेगा। इसलिए माता-पिता, भाई बंधु, रिश्ते नाते व्यक्तिगत रूप से निभाया जाय वही सबके लिए बेहतर रहेगा।

विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)

Share this news

About desk

Check Also

जेपी नड्डा के आवास पर एनडीए घटक दलों के नेताओं ने की बैठक

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के आवास पर बुधवार को …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *