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कोचिंग और ट्यूशन पर बच्चों की बढ़ती निर्भरता उठा रही शिक्षकों की कार्यशैली पर सवाल
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर।
भारत में ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को लागू करने का उद्देश्य छात्रों के मानसिक दबाव को कम करना और स्कूल ड्रॉपआउट की दर को घटाना था। इस नीति के तहत कक्षा 8 तक किसी भी छात्र को फेल नहीं किया जा सकता था। हालांकि, अब इस नीति के समाप्ति के प्रस्ताव के साथ ही अभिभावकों के बीच इसकी उपयोगिता और शिक्षकों की जवाबदेही पर चर्चा तेज हो गई है।
शिक्षा में गिरावट का कारण?
‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ लागू होने के बाद स्कूलों में छात्रों की शैक्षिक गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। कक्षा 8 तक छात्रों को प्रमोट किए जाने का नियम बन जाने के बाद पढ़ाई में लापरवाही देखने को मिली। अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों में छात्रों को न तो नियमित रूप से होमवर्क दिया जा रहा था और न ही उनकी नियमित कॉपियों का मूल्यांकन किया जा रहा था।
शिक्षकों की कार्यशैली अचानक बदल गयी थी। कई शिक्षक अपने काम को गंभीरता से नहीं ले रहे थे, क्योंकि छात्रों को प्रमोट करना तय था। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ ने शिक्षा प्रणाली में लापरवाही को बढ़ावा दिया?
अभिभावकों की बढ़ती चिंता
अभिभावकों का मानना है कि स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता में गिरावट के कारण वे बच्चों को कोचिंग और ट्यूशन के सहारे पढ़ाने पर मजबूर हो गए हैं। सरकारी और निजी दोनों स्कूलों में यह समस्या समान रूप से देखी गई है। अभिभावकों का कहना है कि जब स्कूलों में ही बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलेगी, तो मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए अलग से कोचिंग का खर्च उठाना कठिन हो जाता है।
शिक्षकों की जवाबदेही तय करने की मांग
इस नीति की समाप्ति के प्रस्ताव के साथ ही अभिभावकों और शिक्षाविदों की राय है कि शिक्षकों की जवाबदेही तय करना अनिवार्य है। यदि छात्रों की शैक्षिक प्रगति का नियमित रूप से मूल्यांकन किया जाए और शिक्षकों की कार्यशैली पर नजर रखी जाए, तो शिक्षा प्रणाली में सुधार संभव है।
शिक्षकों को नियमित प्रशिक्षण और मूल्यांकन प्रणाली से जोड़ा जाना चाहिए। इसके अलावा, छात्रों को होमवर्क और प्रोजेक्ट्स के जरिए उनकी पढ़ाई को नियमित रूप से परखा जाना चाहिए।
स्कूलों की जिम्मेदारी बढ़ी
अभिभावकों का यह भी कहना है कि ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ की समाप्ति के बाद स्कूलों की जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी। अब यह सुनिश्चित करना स्कूलों का कर्तव्य होगा कि वे छात्रों को गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करें। साथ ही, छात्रों को परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए तैयार करना भी स्कूलों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
आगे का रास्ता
‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ की समाप्ति के साथ ही यह आवश्यक हो गया है कि स्कूल, शिक्षक और अभिभावक एक साथ मिलकर छात्रों की शैक्षिक प्रगति को सुनिश्चित करें। स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों को पर्याप्त ध्यान और संसाधन मिलें।
अंततः, शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाना नहीं, बल्कि छात्रों को एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है। इसके लिए ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को समाप्त करने से पहले शिक्षकों और स्कूलों की जवाबदेही सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।
नो डिटेंशन पॉलिसी में शिक्षकों की जिम्मेदारियां स्पष्ट और प्रभावी ढंग से निर्धारत की जानी चाहिए। शिक्षकों को छात्रों की प्रगति का नियमित मूल्यांकन करने, होमवर्क और प्रोजेक्ट्स के माध्यम से पढ़ाई की गुणवत्ता सुनिश्चित करने, और उनके व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित करने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। इसके अलावा, शिक्षकों के प्रशिक्षण और प्रदर्शन मूल्यांकन की एक ठोस प्रणाली लागू की जानी चाहिए ताकि शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।
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