नई दिल्ली, दिल्ली के साकेत कोर्ट ने कुतुब मीनार परिसर में पूजा की अनुमति देने की मांग करने वाली याचिका पर कुंवर महेंद्र ध्वज की पक्षकार बनाने की मांग करने वाली याचिका पर फैसला टाल दिया है। एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज दिनेश कुमार ने 19 सितंबर को फैसला सुनाने का आदेश दिया।
13 सितंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और परिसर में पूजा-अर्चना का अधिकार मांग रहे याचिकाकर्ताओं ने कुंवर महेंद्र ध्वज की याचिका का विरोध करते हुए खारिज करने की मांग की थी। महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह का कहना था कि उनके पूर्वज आगरा प्रांत के शासक थे। कुतुब मीनार समेत दक्षिणी दिल्ली में उनका शासन था। लिहाजा कुतुब मीनार जिस जमीन पर है, उस पर उनका मालिकाना हक है। इसलिए सरकार कुतुबमीनार के आसपास की जमीन पर फैसला नहीं ले सकती है।
पिछली सुनवाई के दौरान आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद की अर्जी का विरोध करते हुए कहा था कि उनकी याचिका सुनने का कोई औचित्य नहीं है। एएसआई ने कहा था कि जमीन के मालिकाना हक को लेकर 1947 के बाद से किसी भी कोर्ट में अपील दायर नहीं की गई। एएसआई ने कहा था कि संरक्षित इमारत में कोई भी पूजा या इबादत करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।
24 मई को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने कहा था कि पिछले आठ सौ वर्षों से इस परिसर का इस्तेमाल मुस्लिमों ने नहीं किया है। उन्होंने कहा था कि जब मस्जिद के काफी पहले यहां मंदिर था तो पूजा की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती है। हरिशंकर जैन ने एंशियंट मॉनुमेंट्स एंड आर्कियोलॉजिकल साईट्स एंड रिमेंस एक्ट की धारा 16 का हवाला दिया था, जिसमें पूजा स्थल की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। उन्होंने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया था, जिसमें कहा गया है कि देवता हमेशा देवता रहेंगे और ध्वस्तीकरण से उसका चरित्र या उसकी गरिमा नहीं खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा था कि मैं एक पूजा करने वाला व्यक्ति हूं। वहां के चित्र अभी भी दिखाई देते हैं। अगर देवता हैं तो पूजा करने का अधिकार भी है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि याचिकाकर्ता को कौन से कानूनी अधिकार हैं। मूर्ति के होने पर कोई विवाद नहीं है। पूजा करने के अधिकार पर विवाद है। सवाल है कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार है। क्या ये एक संवैधानिक अधिकार है या दूसरे तरह का अधिकार। क्या याचिकाकर्ता को पूजा के अधिकार से रोका जा सकता है। अगर ये मान लिया जाए कि कुतुब मीनार का मुसलमान मस्जिद के रूप में उपयोग नहीं करते हैं तो क्या इससे याचिकाकर्ता को पूजा करने का अधिकार किस आधार पर मिल जाता है। आठ सौ साल पहले हुए किसी घटना के आधार पर आपको कानूनी अधिकार कैसे मिल सकता है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने कोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा था कि जब एएसआई ने स्मारक पर नियंत्रण लिया था, तब वहां पूजा नहीं होती थी। एएसआई ने कहा था कि कानूनन संरक्षित स्मारक में पूजा का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए याचिका खारिज की जाए। तीन अप्रैल को कोर्ट ने एएसआई को निर्देश दिया था कि वो कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद परिसर में रखी हुई भगवान गणेश की मूर्तियों को परिसर से ना हटाए। इस मामले में पहले से ही पूजा अर्चना अधिकार को लेकर याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता ने नई अर्जी में कहा है कि गणेश जी की मूर्तियों को नेशनल म्युचुअल अथॉरिटी के दिये सुझाव के मुताबिक नेशनल म्यूजियम या किसी दूसरी जगह विस्थापित नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय उन्हें परिसर में ही पूरे सम्मान के साथ उचित स्थान पर रखा जाए।
वकील विष्णु जैन के जरिये दायर मुख्य याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर ये मस्जिद बनाई गई है। जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और भगवान विष्णु को इस मामले में याचिकाकर्ता बनाया गया था। गौरतलब है कि 29 नवंबर, 2021 को सिविल जज नेहा शर्मा ने याचिका खारिज कर दी थी। सिविल जज के याचिका खारिज करने के आदेश को डिस्ट्रिक्ट जज की कोर्ट में चुनौती दी गई है।
याचिका में कहा गया है कि कुतुबद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू और जैन मंदिरों की जगह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बना दिया। ऐबक मंदिरों को पूरी तरीके से नष्ट नहीं कर सका और मंदिरों के मलबे से ही मस्जिद का निर्माण किया गया। याचिका में कहा गया था कि कुतुब मीनार परिसर के दीवारों, खंभों और छतों पर हिन्दू और जैन देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं। इन पर भगवान गणेश, विष्णु, यक्ष, यक्षिणी. द्वारपाल. भगवान पार्श्वनाथ, भगवान महावीर, नटराज के चित्रों के अलावा मंगल कलश, शंख, गदा, कमल, श्रीयंत्र, मंदिरों के घंटे इत्यादि के चिह्न मौजूद हैं। ये सभी बताते हैं कि कुतुब मीनार परिसर हिंदू और जैन मंदिर थे। याचिका में कुतुब मीनार को ध्रुव स्तंभ बताया गया था।
याचिका में एएसआई के उस संक्षिप्त इतिहास का जिक्र किया गया था जिसमें कहा गया था कि 27 मंदिरों को गिराकर उनके ही मलबे से कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण किया गया। याचिका में मांग की गई थी कि इन 27 मंदिरों को पुनर्स्थापित करने का आदेश दिया जाए और कुतुब मीनार परिसर में हिंदू रीति-रिवाज से पूजा करने की इजाजत दी जाए।
साभार-हिस