हैदराबाद/नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को जलवायु परिवर्तन को छोटे किसानों के लिए बड़ी चुनौती बताया और कहा कि इससे किसानों को बचाने के लिए हमारा ध्यान पुराने तरीकों और नई तकनीक के मिलेजुले स्वरूप को अपनाने पर केन्द्रित है। हमारा ध्यान देश के उन 80 प्रतिशत से अधिक छोटे किसानों पर है, जिनको हमारी सबसे अधिक जरूरत है।
प्रधानमंत्री शनिवार को हैदराबाद के पाटनचेरु में अंतरराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) की 50वीं वर्षगांठ समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आईसीआरआईएसएटी की सराहना करते हुए कहा कि आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में दालों के उत्पादन को बढ़ाने में संस्था का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण कृषि को मजबूत करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लगातार इस बात पर काम कर रहे हैं कि डिजिटल तकनीक का उपयोग करके किसानों को कैसे सशक्त बनाया जाए। चाहे वह फसल मूल्यांकन हो, भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण हो, पोषक तत्वों का छिड़काव हो और ड्रोन के माध्यम से कीटनाशकों का प्रयोग हो। ऐसे क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग बढ़ाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत ने दुनिया से जलवायु चुनौती से निपटने पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया है। भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। हमने जीवन और पर्यावरण के लिए अनुकुल जीवन शैली की ज़रूरत के महत्व को रेखांकित किया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में 15 कृषि जलवायु क्षेत्र हैं। हमारे यहां, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर 6 ऋतुएं भी हैं। यानि हमारे पास कृषि से जुड़ा बहुत विविध और बहुत प्राचीन अनुभव है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘प्रो, प्लानेट, पीपल’ एक ऐसा मूवमेंट है जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए हर समुदाय और हर व्यक्ति को जलवायु जिम्मेदारी से जोड़ता है। ये सिर्फ बातों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत सरकार के कार्यों में झलकता है।
साभार-हिस