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अब भी हर महीने 15 हजार रुपये की आर्थिक मदद देते हैं पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर
खूंटी, कई बार विश्व कप सहित कई अंतरराष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले और 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में जाबांज सैनिक की भूमिका निभाने वाले गोपाल भेंगरा आज अपने गांव में गुमनाम जीवन जी रहे हैं। कभी परिवार के भरण-पोषण के लिए पत्थर तोड़कर मजदूरी करने वाले गोपाल भेंगरा अब हॉकी का नाम भी लेना नहीं चाहते।
वे बताते हैं कि उन्होंने 1978 में अर्जेंटाइना में आयोजित विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उसी वर्ष उन्होंने पाकिस्तान के साथ टेस्ट मैच में भी भाग लिया था। कई वर्षों तक वे पश्चिम बंगाल के कप्तान भी रहे। वर्ष 1979 में बैंकाक में हुई दक्षिण एशिया हॉकी प्रतियोगिता में भारतीय टीम के हिस्सा थे। मोहन बागान की ओर से भी उन्होंने कई बार खेला है। इतना होने के बाद जब वे सेवानिवृत्त हो गये और उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गयी, तो किसी ने उनकी सुधि नहीं ली।
गोपाल भेंगरा बताते हैं कि वे सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उन्होेंने पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 हुई लड़ाई में भी भाग लिया था। सेवानिवृत्ति के बाद उनकी पेंशन इतनी कम थी कि परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया। मजबूर होकर उन्होंने पत्थर तोड़ने का काम शुरू किया और उसी मजदूरी से परिवार की गाड़ी खींचने लगे। वे बताते हैं कि पत्थर तोड़ने की खबर एक पत्रिका में छपने के बाद महान क्रिेकेटर सुनील गावस्कर की नजर इस पर पड़ी और वे हर महीने उन्हें आर्थिक मदद देने लगे।
भेंगरा ने कहा कि आज भी हर महीने गावस्कर उन्हें 15 हजार रुपये भेजते हैं। पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल कहते हैं कि उपेक्षा से वे इतने त्रस्त हो गये कि अब उन्हें हॉकी के नाम पर ही चिढ़ होती है। मूल रूप से तोरपा प्रखंड के उयुर गांव के रहने वाले 75 वर्षीय गोपाल भेंगरा इन दिनों खेती-बारी कर जीवन गुजार रहे हैं और अपने पुश्तैनी खपरैल मकान में परिवार के साथ रहते हैं। दो वर्षों तक वे खूंटी के एसएस हाई स्कूल की हॉकी अकादमी के कोच भी रहे। कोच के रूप में उन्हें एक हजार रुपये का भत्ता मिलता था।
गोंपाल भेंगरा कहते हैं कि हॉकी में जब तक आप के सितारे बुलंद हैं, तब तक ही आपकी पूछ है। खेल छोड़ने के बाद कोई पूछने वाला नहीं है, भले ही आप कितने बड़े खिलाड़ी ही क्यों न हो, जबकि दूसरे खेलों में ऐसी बात नहीं है। वे कहते हैं कि हॉकी ने तो उन्हें पूरी तरह ठुकरा दिया लेकिन महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने उन्हें अपना लिया। गोपाल बताते हैं कि जब भारत-आस्ट्रेलिया मैच में कॉमेंट्री करने गावस्कर रांची आये थे, तो उन्होंने उनसे मिलकर उनके प्रति आभार जताया था।
साभार-हिस