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काशी में भगवान गणेश के त्रिनेत्र स्वरूप की होती है पूजा, जानिए क्यों खास है ये मंदिर…!!!

हिन्दू धर्म में बुधवार के दिन पूरे विधि विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भगवान गणेश भक्तों पर प्रसन्न होकर उनके दुखों को हरते हैं और सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जानी जरूरी है. भगवान गणेश सभी लोगों के दुखों को हरते हैं.

उत्तर प्रदेश के काशी में जिसे खासतौर पर भगवान शिव की नगरी कहा जाता है, उनके पुत्र भगवान गणेश के लिए भी प्रचलित है. काशी में ही शिव जी के पुत्र भगवान गणेश अपने विशेष रूप में स्थापित हैं. काशी में स्थापित स्वंयभू भगवान गणेश जी की यह मूर्ति त्रिनेत्र स्वरूप की है. मान्यता है कि इस मंदिर में जाकर विघ्नहर्ता गणेश जी के त्रिनेत्र रूप की आराधना करने से भक्तों के जीवन की सभी बाधांए दूर हो जाती हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

40 खम्भों वाला मंदिर
भगवान गणेश का स्वंभू त्रिनेत्र प्रतिमा वाला यह मंदिर बनारस के लोहटिया नामक इलाके में स्थित है. इन्हें बड़ा गणेश भी कहा जाता है. मान्यता है कि जब काशी में गंगा मां के साथ मंदाकिनी नदी भी बहती थी, उस समय भगवान गणेश की यह प्रतिमा यहां मिली थी. माना जाता है कि उस दिन माघ मास की संकष्टी चतुर्थी का दिन था, तब से इस दिन यहां मेले का आयोजन होता है. गणेश जी का यह मंदिर 40 खम्भों की विशेष शैली में बना है, जो यहां आने वाले सभी भक्तों को एक अद्भुत नजारा प्रदर्शित करता है.

बड़ा गणेश मंदिर में गणपति बप्पा की महिमा
लोहटिया स्थित भगवान गणेश के मंदिर में दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन कोरोना के चलते फिलहाल इस पर पाबंदी लगाई गई है. यहां पर भगवान गणेश अपनी दोनों पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि और संतानों शुभ-लाभ के साथ विराजमान हैं. मान्यता है कि गणेश जी के इस रूप की आराधना करने से व्यक्ति को अपने जीवन में ऋद्धि-सिद्धि तथा शुभ-लाभ की प्राप्ति होती है. इस मंदिर में गणेश जी की बंद कपाट पूजा का विशेष महत्व है, जिसे देखने की अनुमति किसी को भी नहीं है. यहां मन्नत मांगने के लिए पहुंचने वालों और अपने कष्ट को दूर करने की मुराद लेकर आने वाले भक्तों की हमेशा भीड़ लगी रहती है. मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन भगवान के दर्शन का विशेष लाभ मिलता है.

साभार पी श्रीवास्तव

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