Home / Odisha / शरीर पर चित्रकारी कर विस्थापन के दर्द को बयां किया

शरीर पर चित्रकारी कर विस्थापन के दर्द को बयां किया

  •  अधिकार की मांगपर सर्वोच्च न्यायालय का वकील पहुंचा आरडीसी के पास

संबलपुर। हीराकुद बांध निर्माण के दौरान सैकड़ो गांव बांध के पानी में समा गया और हजारों लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा। विस्थापित अधिकांश लोग आज भी पुनर्वास एवं मुआवजा की मांगपर दर-दर की ठोकर खा रहे हैं, किन्तु उनकी सुननेवाला कोई नहीं है। विस्थापन का दंश झेल रहे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता राधाकांत त्रिपाठी ने मजबूरन अपने शरीर में अपनी व्यथा को उकेरा और उत्तरांचल राजस्व आयुक्त निरंजन साहू से मुलाकात कर न्याय की मांग किया है। इस दौरान उन्होंने आरडीसी के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा। इस दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए श्री त्रिपाठी ने कहा कि हीराकुद बांध निर्माण के दौरान विस्थापित हुए परिवार पिछले 70 सालों से न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। दशकों से विस्थापित लोग विभिन्न फोरम में अपनी व्यथा सुना रहे हैं, किन्तु उनकी सुननेवाला कोई नहीं है। पिछले दिनों राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रदेश सरकार को दिशा-निर्देश देते हुए कहा था कि विस्थापितों को जल्द से जल्द मुआवजा उपलब्ध कराया जाए। विडंबना का विषय यह है कि आयोग के इस निर्देश को प्रदेश सरकार ने गंभीरता से लिया ही नहीं। मसलन विस्थापितों की समस्या आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई। हर मोर्चे पर निराशा मिलने के बाद मजबूरन उन्होंने अपने शरीर में उन व्यथाओं का चित्र उकेरा और आरडीसी के पास पहुंचा। उसने बताया कि प्रधानमंत्री को सौंपे ज्ञापन में प्रत्येक विस्थापित परिवार को दस डिसमील जमीन उपलब्ध कराए जाने, विस्थापन प्रमाणपत्र जारी किए जाने, राष्ट्रीय मानव अधिकार के निर्देश का पालन किए जाने एवं विस्थापितों के 34 गांव को राजस्व गांव की मान्यता दिए जाने की मांग की गई है। ज्ञापन सौंपने के दौरान श्री त्रिपाठी के साथ हीराकुद बूड़ी अंचल (डूबान क्षेत्र) संग्राम समिति लखनपुर के सचिव गोपीनाथ माझी, हरिप्रिया माझी एवं नरेश चंद्र प्रमुख रूप से उपस्थित थे। यहांपर बताते चलें कि हीराकुद बांध निर्माण का शिलान्यास 15 मार्च 1946 को किया गया था। 21 अपै्रल 1948 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री बांध के कंक्रीट कार्य की आधारशीला रखा। 13 जनवरी 1957 को इस बांध का विधिवत उदघाटन किया गया। जबकि विस्थापित होने जा परिवार ने बांध निर्माण की योजना बनते ही विरोध आरंभ कर दिया था। इसके बावजूद उनके जमीनों का अधिग्रहण किया गया और उन्हें बेसहारा बना दिया गया। आज यह बांध अपनी स्थापना के 64 वें पायदान पर पहुंच गया है, किन्तु इससे पहले से अपने अधिकार की मांग कर रहे लोगों को न्याय आजतक नहीं मिल पाया है। हीराकुद विस्थापित कल्याण समिति से मिले आंकड़े के अनुसार बांध निर्माण के दौरान 369 गांव एवं 1.5 लाख एकड़ जमीन जलमग्न हो गया तथा 26 हजार 501 लोग विस्थापित हुए थे। जबकि सरकारी आंकड़े के अनुसार 218 गांव के जलमग्न होने एवं 22 हजार परिवार के विस्थापन की बात कही गई है।

Share this news

About desk

Check Also

पूर्व विधायक रमारंजन बलियार सिंह ने पार्टी छोड़ी

भुवनेश्वर। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता तथा सत्यवादी के पूर्व विधायक रमारंजन बलियार सिंह ने …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *