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खाद्यान्न उत्पादन में करें नई तकनीकी का उपयोग – राष्ट्रपति

  •  भारतीय राइस कांग्रेस में द्रौपदी मुर्मू ने वैश्विक खाद्य संकट पर डाला प्रकाश

  • भारत खाद्यान्न निर्यात में निभाता है अग्रणी भूमिका

कटक। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे खाद्यान्न उत्पादन में नवीनतम तकनीकी का उपयोग करें, क्योंकि भारत खाद्यान्न निर्यात में अग्रणी भूमिका निर्वहन करता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज यहां दूसरा भारतीय राइस कांग्रेस को संबोधित कर रही थीं। दूसरा भारतीय चावल कांग्रेस आज शहर के बाहरी इलाके विद्याधरपुर में राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (एनआरआरआई) में शुरू हुई। ओडिशा की दो दिवसीय यात्रा पर आई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज एनआरआरआई परिसर में कार्यक्रम का उद्घाटन किया।

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने चल रहे वैश्विक खाद्य संकट पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत खाद्यान्न निर्यात में अग्रणी भूमिका निभाता है और हमारे वैज्ञानिकों को प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखते हुए नवीनतम तकनीकों का उपयोग करके खाद्यान्न उत्पादन की दिशा में काम करना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि धान या चावल सिर्फ एक मुख्य भोजन नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा में इसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। सभी शुभ कार्यों में उनका उपयोग भारतीयों के लिए चावल और धान के महत्व को दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि एनआरआरआई के वैज्ञानिक चावल की विभिन्न किस्मों का आविष्कार करके देश में कुपोषण को खत्म करने में सफल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि किसान बीमा और मुआवजा योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं। इस वर्ष के बजट में कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण आवंटन किया गया है। भारत न केवल आत्मनिर्भर बना है, हम आपदाओं से जूझ रहे अन्य देशों को चावल निर्यात करने में भी अग्रणी हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि चावल भारत में खाद्य सुरक्षा का आधार है और हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भी एक प्रमुख कारक है।

उन्होंने कहा कि भारत आज चावल का अग्रणी उपभोक्ता व निर्यातक है, जिसका काफी श्रेय इस संस्थान को जाता है, लेकिन जब देश आजाद हुआ था तब स्थिति अलग थी, उन दिनों हम अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर थे। राष्ट्रपति ने कहा कि पिछली शताब्दी में जैसे-जैसे सिंचाई सुविधाओं का विस्तार हुआ, चावल नए स्थानों पर उगाए जाने लगे और नए उपभोक्ता मिलने लगे। धान की फसल के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन दुनिया के कई हिस्से जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। सूखा, बाढ़, चक्रवात अब अधिक बार आते हैं, जिससे चावल की खेती अधिक कमजोर हो जाती है। उन्होंने कहा कि भले ही चावल नई जमीन पर उगाए जा रहे हों, लेकिन ऐसे स्थान भी हैं जहां पारंपरिक किस्मों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आज हमें बीच का रास्ता खोजना है, एक ओर पारंपरिक किस्मों का संरक्षण करना है और दूसरी तरफ पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है। मिट्टी को रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से बचाने की चुनौती भी है, हमें मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए ऐसे उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की जरूरत है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वैज्ञानिक पर्यावरण के अनुकूल चावल उत्पादन प्रणाली विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि चावल हमारी खाद्य सुरक्षा का आधार है, इसलिए इसके पोषण संबंधी पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए। कम आय वाले समूहों का बड़ा वर्ग चावल पर निर्भर करता है, जो अक्सर उनके लिए दैनिक पोषण का एकमात्र स्रोत होता है, इसलिए चावल के जरिये प्रोटीन, विटामिन व आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने से कुपोषण से निपटने में मदद मिल सकती है। एनआरआरआई द्वारा देश का पहला उच्च प्रोटीन चावल विकसित करने पर उन्होंने कहा कि इस तरह की जैव-फोर्टिफाइड किस्मों का विकास आदर्श है एवं विश्वास जताया देश का वैज्ञानिक समुदाय चुनौती का सामना करने में सफल होगा।

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