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पुरी में महाप्रभु श्री जगन्नाथ की चंदनयात्रा शुरू

पुरी. पुरी में महाप्रभु श्री जगन्नाथ की चंदनयात्रा कल से शुरू हो गयी है. हर साल की तरह इस साल भी अक्षय तृतीया के दिन चंदनयात्रा आरंभ हुई. उल्लेखनीय है कि लगभग एक हजार वर्षों से श्री जगन्नाथ पुरी धाम में चंदन तालाब, जिसे नरेन्द्र तालाब भी कहा जाता है, में अक्षय तृतीया के पवित्रतम दिवस से 21 दिवसीय बाहरी चंदन यात्रा आरंभ होती है. चंदन तालाब को पूरी तरह से स्वच्छ तथा उसके आसपास की जगह को साफसुथरा कर उसे बिजलीबत्ती की रोशनी से आलोकित कर दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म के रुप में भगवान जगन्नाथ एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही सांसारिक सुख-दुख का अनुभव करते हैं. वे वैशाख-जेठ की भाषण गर्मी से परेशान होकर जलक्रीड़ा करना चाहते हैं. नौका विहार करना चाहते हैं. चंदनयात्रा उनकी उसी मानवीय लीला का एक जीवंत प्रमाण है. प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया से वे अपनी विजय प्रतिमा मदनमोहन के रुप में चंदनयात्रा करते हैं. अक्षय तृतीया के दिन श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर नियमित जातभोग ग्रहणकर अपराह्न बेला में अपनी विजय प्रतिमा मदनमोहन, रामकृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती आदि के साथ विशेष पालकी में आरुढ़ होकर जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढ़ियों पर आते हैं, जहां पर पहले से ही प्रतीक्षारत पांच पाण्डव, लोकनाथ, नीलकण्ठ, मार्कण्डेय, कपालमोचन तथा जम्बेश्वर के साथ अतिमोहक शोभायात्रा के मध्य चंदन तालाब आते हैं. शोभायात्रा के आगे-आगे बनाटी रणकौशल प्रदर्शन, तलवार चालन प्रदर्शन, पाइक प्रदर्शन तथा परम्परांगत वाद्यः घण्टमर्दन, तुरही, भेरी आदि की सुमधुर ध्वनियों के मध्य भजन-संकीर्तन के साथ हरिबोल, जय जगन्नाथ के गगनभेदी जयकारे के साथ चंदन तालाब आते हैं. गौरतलब है कि चंदन तालाब लगभग तीन एकड़ में फैला हुआ पवित्रतम तालाब है, जिसका जल स्वच्छ, शीतल तथा पवित्र होता है. सभी देवगण नगर परिक्रमा कर चंदन तालाब आते हैं, जहां पर पहले से ही गजदंत आकार की तथा हंस की आकृति की नौकाएं एकसाथ जोड़कर तथा पूरी तरह से सजाकर रखी होतीं हैं. उन पर आरुढ़ होकर वे अपना नौकाविहार आरंभ करते हैं. अक्षय तृतीया के दिन दिन में एकबार तथा सायंकाल 21 बार वे नौका विहार करते हैं. उसके उपरांत चंदन तालाब के बीच निर्मित चंदनघर में वे आते हैं. उनके शरीर पर चंदन का लेप लगाकर उन्हें मलमलकर नहलाया जाता है. रात्रि में कुछ देर चंदनघर में विश्राम कराकर देवप्रतिमाओं को रात में श्रीमंदिर लाया जाता है. 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा वास्तव में भगवान जगन्नाथ की अलौकिक मानवीय लीला है, जिसको देखने के लिए देश-विदेश जगन्नाथ भक्त पुरी आते हैं.

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