Home / Odisha / रथयात्रा – रथों के निर्माण की है अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा, तीन बजे से निकलेगी रथयात्रा

रथयात्रा – रथों के निर्माण की है अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा, तीन बजे से निकलेगी रथयात्रा

अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर 

प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आयोजित होनेवाली भगवान श्री जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा एक सांस्कृतिक महोत्सव है. वह दशावतार यात्रा, गुण्डिचा यात्रा, जनकपुरी यात्रा, घोष यात्रा, पतितपावनी यात्रा, नव दिवसीय यात्रा होती है. भगवान जगन्नाथजी की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रतिवर्ष तीन नये रथों का निर्माण होता है. निर्माण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा है. इस पावन कार्य को वंशानुक्रम से सुनिश्चित बढईगण ही करते हैं. रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायतगण सहयोग करते हैं. जिस प्रकार पंचतत्वों से मानव-शरीर का निर्माण हुआ है,  ठीक उसी प्रकार काष्ठ, धातु, रंग, परिधान तथा सजावट आदि की सामग्रियों से रथों का पूर्णरुपेण निर्माण होता है.

तालध्वज रथ : यह रथ बलभद्रजी का रथ है, जिसे बहलध्वज भी कहते हैं. यह 44 फीट ऊंचा होता है. इसमें 14 चक्के लगे होते हैं. इसके निर्माण में कुल 763 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है. इस रथ पर लगे पताकों का नाम उन्नानी है. इस रथ पर लगे नये परिधान के रुप में लाल-हरा होता है. इसके घोड़ों का नामः तीव्र, घोर, दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ हैं. घोड़ों का रंग काला होता है. रथ के रस्से का नाम बासुकी होता है. रथ के पार्श्व देव-देवतागण के रुप में गणेश, कार्तिकेय, सर्वमंगला, प्रलंबरी, हलयुध, मृत्युंजय, नतंभरा, मुक्तेश्वर तथा शेषदेव हैं. रथ के सारथि हैं मातली तथा रक्षक हैं-वासुदेव.

देवदलन रथ : यह रथ सुभद्राजी का है, जो 43 फीट ऊंचा होता है. इसे देवदलन तथा दर्पदलन भी कहा जाता है. इसमें कुल 593 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है. इसपर लगे नये परिधान का रंग लाल-काला होता है. इसमें 12 चक्के होते हैं. रथ के सारथि का नाम अर्जुन है. रक्षक जयदुर्गा हैं. रथ पर लगे पताके का नाम नदंबिका है. रथ के चार घोड़ें हैं – रुचिका, मोचिका, जीत तथा अपराजिता. घोड़ों का रंग भूरा है. रथ में उपयोग में आनेवाले रस्से का नाम स्वर्णचूड़ है. रथ के पार्श्व देव-देवियां हैं – चण्डी, चमुण्डी, उग्रतारा, शुलीदुर्गा, वराही, श्यामकाली, मंगला और विमला हैं.

नन्दीघोष रथ : यह रथ भगवान जगन्नाथजी का है, जिसकी ऊंचाई 45 फीट होती है. इसमें 16 चक्के होते हैं. इसके निर्माण में कुल 832 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है. रथ पर लगे नये परिधानों का रंग लाल-पीला होता है. इसपर लगे पताके का नाम त्रैलोक्यमोहिनी है. इसके सारथी दारुक तथा रक्षक हैं –गरुण. इसके चार घोड़े हैं – शंख, बलाहक, सुश्वेत तथा हरिदाश्व. इस रथ में लगे रस्से का नामः शंखचूड़ है. रथ के पार्श्व देव-देवियां हैं- वराह, गोवर्धन, कृष्ण, गोपीकृष्ण, नरसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान तथा रुद्र. 2021 की रथयात्रा 12 जुलाई को है. इसीलिए 11 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा के दिन तीनों ही रथों को पूर्णरुपेण निर्मितकर रथखला से लाकर उसे पूरी तरह से सुसज्जितकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने खड़ा कर दिया गया है, जिसमें 12 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन चतुर्धा देवविग्रहों को पहण्डी विजयकर रथारुढ़ किया जाएगा. पुरी के शंकराचार्य जगतगुरु परमपाद स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग गोवर्द्धन मठ से अपने परिकरों के साथ आकर रथों का अवलोकन करेंगे. पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्य सिंहदेवजी महाराज रथों पर छेरापंहरा का पवित्र दायित्व निभाएंगे. उसके उपरांत आरंभ होगी रथयात्रा.

रथयात्रा की नीतियां

मंगला आरती – सुबह 4.30 बजे

मयलम व रोसहोम – सुबह 5.00 बजे

तड़पलागी – सुबह 5.00 बजे

अवकाश –  सुबह 5.30 बजे

सूर्य पूजा – सुबह 5.40 बजे

द्वारपाल पूजा, वेशशेष – सुबह 6.00 बजे

गोलपाल बल्लभ और सकाल धूप (खिचड़ी भोग) – सुबह 6.30 से 7.30 बजे तक

रथ प्रतिष्ठा – सुबह 8.00 बजे

मंगला अर्पण – सुबह 8.15 बजे

पहंडी आरंभ – सुबह 8.30 बजे

पहंडी समाप्त – सुबह 11.30 बजे

मदन मोहन बिजे –  दोपहर 12 से 12.30 बजे तक

चितालागी – दोपहर 12.30 से 1.00 बजे तक

वेशशेष – दोपहर 12.30 बजे

छेरापहंरा – दोपहर 12.45 से 2.00 बजे तक

चारमालाफीटा, घोड़ा और सारथी लागी – दोपहर 2.00 से 3.00

रथ खींचना आरंभ – शाम 3.00 बजे से

Share this news

About desk

Check Also

उत्कल बिल्डर्स का 15 दिवसीय जलछत्र का उद्घाटन

भीषण गर्मी में पहले दिन लगभग एक हजार लोगों को दही का शर्बत पिलायी गयी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *