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पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में तृणमूल गदगद, विपक्ष की ग्रोथ से ममता का टेंशन बढ़ा

  • माकपा-कांग्रेस की हो रही है वापसी

कोलकाता। बुधवार को आए बंगाल के पंचायत चुनाव नतीजों में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस को तो बढ़त मिली है। साथ ही विपक्ष भी चुनावी नतीजों से गदगद है। राज्य की 63 हजार ग्राम पंचायतों में जहां सत्तारूढ़ पार्टी ने 42 हजार से अधिक सीटों पर कब्जा जमाया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी करीब 10 हजार सीटों पर है और माकपा, कांग्रेस तथा अन्य उम्मीदवारों ने भी मिलकर 10 हजार सीटें हासिल की हैं।

पिछले चुनाव में विपक्ष इस मामले में बिल्कुल शून्य था। भाजपा का केवल एक ग्राम पंचायत पर कब्जा था, जबकि इस बार 212 ग्राम पंचायतों पर कब्जा जमाने में भाजपा सफल रही है। इतने ही ग्राम पंचायतों पर माकपा कांग्रेस और अन्य दलों के उम्मीदवारों ने कब्जा जमाया है। यह दर्शाता है कि विपक्ष ने 2018 के पिछले ग्रामीण चुनावों से कहीं ज्यादा अपनी जगह बढ़ा ली है। तथ्य यह है कि पिछली बार 2018 में लगभग 34 प्रतिशत सीटें तृणमूल ने निर्विरोध जीती थीं, इस साल निर्विरोध सीटों की संख्या बहुत कम रही।

वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार और सलाहकार रजत रॉय ने कहा कि पिछली बार विपक्ष ग्राम पंचायत की केवल 20 प्रतिशत सीटें हासिल करने में कामयाब रहा था, इस बार उन्होंने अब तक लगभग 27-28 प्रतिशत सीटें ले ली हैं। इस बार की हिंसा भी पिछले वर्षों की तरह एकतरफा नहीं थी। वास्तव में, सत्तारूढ़ दल के अधिक कार्यकर्ताओं की मौतें हुईं। हालांकि कोई भी मौत निंदनीय है, हिंसा की प्रकृति बदल गई है और इससे जमीनी हकीकत में काफी बदलाव आया है।

2018 में माकपा और कांग्रेस द्वारा मिलकर लगभग 1500 सीटें जीतने और भाजपा ने 48,650 सीटों में से लगभग 5,800 ग्राम पंचायत सीटें जीतने में सफल थे। पंचायत चुनाव के नतीजे बताते हैं कि एक बार फिर पश्चिम बंगाल में माकपा और कांग्रेस वापसी कर रहे हैं जिसका बड़ा असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर होगा।

माकपा नेता सायरा शाह ने कहा कि रणनीति में बदलाव, प्रवासी श्रमिकों, गरीब किसानों और गांवों से बड़े शहरों में रोजाना यात्रा करने वाले मजदूर वर्ग जैसे विशिष्ट लक्ष्य समूहों पर ध्यान केंद्रित करने, युवा उम्मीदवारों को खड़ा करने और युवा प्रचारकों का उपयोग करने से हमें जीत हासिल करने में काफी मदद मिली है। बड़ी संख्या में तृणमूल के बागी उम्मीदवारों की उपस्थिति, जिनमें से कई 2,000 से अधिक निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में जीते हैं।

रॉय ने कहा कि वामपंथ-कांग्रेस का पुनरुत्थान उल्लेखनीय है। हालाँकि इस घटना का मतलब यह भी है कि भाजपा के साथ सत्ता विरोधी वोटों का विभाजन होगा और यह 2024 के चुनावों में तृणमूल के पक्ष में काम कर सकता है।

पोस्ट – इण्डो एशियन टाइम्स
सभार – हिस

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