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उलेमा युवाओं को चरमपंथ के दुष्प्रभाव से बचायें – अजीत डोभाल

नई दिल्ली, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर अजीत डोभाल ने सोमवार को इस्लामिक उलेमाओं से युवाओं को चरमपंथ के दुष्प्रभाव से बचाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि उन्हें इस्लाम के असल सहिष्णु और संतुलित सिद्धांत लोगों के सामने लाने चाहिए ताकि उग्रवाद से मुकाबला किया जा सके।

डोभाल आज भारत और इंडोनिशया के भारतीय इस्लामिक सांस्कृतिक केन्द्र में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। ‘भारत और इंडोनेशिया में अंतरधार्मिक शांति और सामाजिक सद्भाव की संस्कृति को बढ़ावा देने में उलेमा की भूमिका’ पर आयोजित संवाद में उन्होंने उद्घाटन भाषण में उक्त बातें कहीं।

दिन भर चलने वाले इस कार्यक्रम में उलेमा ‘इस्लाम: निरंतरता और परिवर्तन’, ‘सामंजस्यपूर्ण अंतर-विश्वास समाज’ और ‘भारत और इंडोनेशिया में कट्टरता और उग्रवाद का मुकाबला’ विषयों पर तीन सत्रों में भाग लेंगे।

डोभाल ने कहा कि भारत और इंडोनेशिया को सभ्य समाज होने के नाते चरमपंथ का मुकालबा करने के लिए समान नजरीया पेश करना चाहिए। दोनों देश आतंकवाद और चरमपंथ का समान रूप से सामना कर रहे हैं। दोनों देशों में दुनिया की एक बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है। इंडोनेशिया जहां सबसे ज्यादा मुसलमानों का घर है, वहीं भारत में इस्लाम को मानने वाली दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी है।

अजीत डोभाल ने कहा कि हमें युवाओं पर विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए। वे चरमपंथी विचारधारा से सबसे ज्यादा और शीघ्र प्रभावित होते हैं। उन्हें इससे बचाने के लिए उनकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाना होगा। सही दिशा में ऊर्जा लगने से वे समाज परिवर्तन के अग्रदूत और प्रगतीशील समाज के हिस्से बनेंगे। इसके लिए जरूरी है कि समुदायों के बीच सह अस्तित्व की सोच को बढ़ावा देना और उसके खिलाफ किए जा रहे भ्रामक प्रचार का मुकाबला करना है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम ने वंचितों को अपनाया और सहिष्णुता का संदेश दिया। हालांकि मोहम्मद साहेब के जाने के बाद इस्लामिक एकता में दरारें पड़ गई। खुद को वारिस बताने के प्रतिस्पर्धा में कट्टरपंथी व्याख्या को आगे रखा गया।
साभार-हिस

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