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पद्मिनी एकादशी के व्रत से विष्णुलोक को जाता है मनुष्य

इण्डो एशियन टाइम्स, भुवनेश्वर।

आज है पद्मिनी एकादशी अधिक मास या पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं। इसे कमला एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। अन्य एकादशियों के समान ही इस व्रत के विधि विधान हैं। इस व्रत में दान का विशिष्ट महत्त्व है। इस दिन कांसे के पात्र में भोजन, मसूर की दाल, चना, कांदी, शहद, शाक, पराया अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन नमक का प्रयोग भी न करें तथा कंदमूल फलादि का भोजन करें। अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देने वाली है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। यह अनेक पापों को नष्ट करने वाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाली है। इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक पढ़ें

दशमी के दिन व्रत शुरू करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पुण्य क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए। उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान करने से पहले शरीर में मिट्टी लगाते हुए उसी से प्रार्थना करनी चाहिए:- ‘हे मृत्तिके ! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ। तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो। समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करने वाली, तुम मुझे शुद्ध करो। ब्रह्मा के थूक से पैदा होने वाली ! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो। हे शंख चक्र गदाधारी देवों के देव ! जगन्नाथ ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये। इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए। उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें। भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए। अधिक मास की शुक्लपक्ष की ‘पद्मिनी एकादशी’ का व्रत निर्जल करना चाहिए। यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए। रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए। प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए। द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें इसके पश्चात स्वयं भोजन करें।

पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए। इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेध यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है। एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है। इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णु के परम धाम को जाते हैं।

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